राष्ट्रिय
15 करोड़ किसान और 10 करोड़ प्रवासी मज़दूरों की तकलीफ़ों की गूँज भी संसद में नहीं सुनायी दी
SD24 News Network
सवाल तो पूछेंगे इस संकट में संसद कहां है ?
कोरोना संकट के दौर में भारत की जिस एक संस्था ने अपनी ऐतिहासिक भूमिका का बिल्कुल ही निर्वाह नहीं किया है, वह है भारतीय संसद.
भारत ने कोरोना से निपटने का जिम्मा पूरी तरह से कार्यपालिका यानी एग्जिक्यूटिव के हवाले कर दिया है, जो व्यावहारिक रूप से अफसरों के शासन में तब्दील हो चुका है.
इस समय ढेर सारी नीतियां बनाने की जरूरत है, इसलिए अगर संसद काम कर रही होती, तो शायद स्थितियां बेहतर होतीं.
दुनिया के लगभग 100 देशों के सांसदों ने अपने आवाम की तकलीफ़ों को लेकर अपनी-अपनी संसद में सरकारों के कामकाज का हिसाब लिया है.
तमाम देशों ने सांसदों की सीमित मौजूदगी वाले संक्षिप्त संसद सत्रों का या वीडियो कान्फ्रेंसिंग वाली तकनीक का सहारा लेकर ‘वर्चुअल सेशन’ का आयोजन किया है.
भारत में सरकार ने अभी तक संसद का विशेष कोरोना सत्र बुलाने को लेकर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखायी है.
प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री दोनों ने मिलकर जिस 21 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज और आर्थिक सुधार का ऐलान किया उसके लिए संसद की मंजूरी लेना बहुत ज़रूरी है. ज्यादातर देशों की सरकारें पैकेज के लिए संसद के पास गई जहां पैकेज को मंजूर किया गया.
संविधान साफ कहता है कि सरकार लोकसभा की मंज़ूरी के बगैर सरकारी खज़ाने का एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकती.
क़रीब 15 करोड़ किसान और 10 करोड़ प्रवासी मज़दूरों की तकलीफ़ों की गूँज भी संसद में नहीं सुनायी दी.
जनता के प्रतिनिधियों को मौका नहीं मिला कि वो प्रधानमंत्री को स्थिति का दूसरा पक्ष भी बता सकें. सरकार से जवाब-तलब करने वाला प्रश्नकाल भी ख़ामोश है.
लॉकडाउन के बावजूद यदि न्यायपालिका, ख़ासकर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट, यदि आंशिक रूप से सक्रिय रह सकते हैं, तो संसद को निष्क्रिय रखना लोकतंत्र के लिए बेहद चिंताजनक है.
सरकार को पूरी तकनीक का इस्तेमाल करके और सारी सावधानियां बरतते हुए यथाशीघ्र संसद का विशेष कोरोना सत्र बुलाना चाहिए.
-Soumitra Roy