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निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में कहा है कि राममंदिर के सबूत वाले उनके कागज़ात चोरी हो गए। अब क्या होगा

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SD24 News Network Network : Box of Knowledge
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को अयोध्या (Ayodhya) के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद ( Ram Janmabhoomi-Babri Masjid case ) पर सुनवाई हुई. कोर्ट में राम लला विराजमान ने अपना पक्ष रखा. उसके वकील परासरन ने कहा कि जब कोर्ट किसी संपत्ति को जब्त करता है तो कब्जाधारी के अधिकार को मामले के निपटारे तक छीना नहीं जाता. उन्होंने विवादित स्थल पर राम की जन्म भूमि होने के पक्ष में कई तर्क दिए. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश राज में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब इस स्थान का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह को राम जन्म स्थान का मंदिर माना. परासरन ने कहा कि इतिहास में कई लोगों ने अपने अनुभव लिखे हैं कि 1858 में निगम सिंह नामक व्यक्ति ने वहां पूजा की. इसके बाद वहां फसाद जैसी स्थिति हुई.
बुधवार को अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ( Ram Janmabhoomi-Babri Masjid case ) में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े से जानना चाहा कि विवादित स्थल पर अपना कब्जा साबित करने के लिए क्या उसके पास कोई राजस्व रिकार्ड और मौखिक साक्ष्य है? कोर्ट ने निर्मोही अखाड़े के वकील से कहा कि वे अपना दावा करने के लिए सभी सबूतों को कोर्ट में प्रस्तुत करें. अखाड़ा अपने दस्तावेज तैयार करे तब तक राम लला विराजमान दलीलें रखेंगे.
निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट से कहा कि 1982 में उनके यहां डाका पड़ा था. जमीन के मालिकाना हक के कागजात डकैत ले गए. जस्टिस अशोक भूषण ने कहा- खतौनी का रिकॉर्ड कहां है? अखाड़ा ने कहा कि हम हैंडीकैप हैं. इसके बाद जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि खतौनी भी डाकू ले गए? इस पर निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि हमें नहीं पता, उपलब्ध कागजात देंगे.
रामलला विराजमान के वकील पारासरन ने कहा कि राम जन्मभूमि स्थान देवता की पहचान बन गया है. यह अपने आप में हिंदुओं के लिए पूजा की वस्तु बन गया है. श्रीराम का जन्म होने के कारण ही हिंदुओं के लिए यह जगह ज्यादा पूज्य है. परासरन ने वाल्मीकि रामायण का उदाहरण दिया कि स्वयं विष्णु ने देवताओं से कहा था कि वे अयोध्या में दशरथ राजा के यहां मानव रूप में जन्म लेंगे.
परासरन ने कहा कि ऐसे उद्धरण पौराणिक ग्रंथों में कई जगह मिलते हैं जिनमें यह साक्ष्य पुष्ट होता है कि यही वह स्थान है जहां राम ने जन्म लिया. ब्रिटिश राज में भी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने जब इस स्थान का बंटवारा किया तो मस्जिद की जगह को राम जन्म स्थान का मंदिर माना. परासरन ने कहा कि इतिहास में कई लोगों ने अपने अनुभव लिखे हैं कि 1858 में निगम सिंह नामक व्यक्ति ने वहां पूजा की. इसके बाद वहां फसाद जैसी स्थिति हुई.
परासरन ने कहा कि इतने साल बाद आप कैसे साबित करेंगे कि राम का जन्म यहीं हुआ, यह आस्था की बात है. ऐतिहासिक साक्ष्य देते हुए उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में भी तब की अदालत ने एक फैसले में वहां बाबर की बनाई मस्जिद और जन्मस्थान मंदिर का जिक्र किया है.
जस्टिस बोबड़े ने पूछा कि ऐसा ही किसी धार्मिक स्थान को लेकर दो समुदायों का कोई सवाल या विवाद दुनिया मे कहीं किसी भी अदालत में कभी आया है क्या?  कोर्ट ने कहा, क्या जीसस क्राइस्ट बेथलहम में पैदा हुए थे, ऐसा सवाल कभी कोर्ट में आया क्या?  इस पर परासरन ने कहा कि मैं चेक कराऊंगा. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि जिस तरह से रामलला विराजमान का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया है, इस तरह का मामला दुनिया में कभी आया है, जब भगवान राम या जीसस ने अदालत का दरवाजा खटखटाया हो? इस पर परासरन ने कहा कि इस बारे में जानकारी नहीं है, पता करना पड़ेगा.
रामलला विराजमान की तरफ से कोर्ट में कहा गया कि एक पल को मान लिया कि 22-23 दिसम्बर 1949 की रात को भगवान की मूर्ति रखना गलत था, लेकिन जब कोर्ट ने रिसीवर को नियुक्त किया तो आखिर मूर्ति क्यों वहां रही. कोर्ट गलत चीज की परंपरा को आगे तो नहीं बढ़ा सकता. अगर गलती होती तो कोर्ट अपने आदेश में मूर्ति रखने की परंपरा को आगे नहीं बढ़ाता. अगर वहां मंदिर था तो उसमें मूर्ति रखने में गलत क्या है? मंदिर है तो मूर्ति तो होगी ही. जस्टिस बोबडे ने पूछा कि क्या मूर्ति को कार्बन डेटिड किया गया है?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने मूल वादकारों में शामिल निर्मोही अखाड़े की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ वकील सुशील जैन से कहा कि चूंकि वह इस समय कब्जे के बिन्दु पर है, इसलिए हिन्दू संस्था को अपना दावा साबित करना होगा. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.    
संविधान पीठ ने कहा, ‘अब, हम कब्जे के मुद्दे पर हैं. आपको अपना कब्जा साबित करना है. यदि आपके पास अपने पक्ष में कोई राजस्व रिकार्ड है तो यह आपके पक्ष में बहुत अच्छा साक्ष्य है.’ निर्मोही अखाड़ा विभिन्न आधारों पर विवादित स्थल पर देखभाल करने और मालिकाना हक का दावा कर रहा है. अखाड़ा का कहना है कि यह स्थल प्राचीन काल से ही उसके कब्जे में है और उसकी हैसियत मूर्ति के संरक्षक की है.    पीठ ने जैन से सवाल किया, ‘राजस्व रिकार्ड के अलावा आपके पास और क्या साक्ष्य है और कैसे आपने अभिभावक  के अधिकार का इस्तेमाल किया.’ जैन ने इस तथ्य को साबित करने का प्रयास किया कि इस स्थल का कब्जा वापस हासिल करने के लिए हिन्दू संस्था का वाद परिसीमा कानून के तहत वर्जित नहीं है. जैन ने कहा, ‘यह वाद परिसीमा कानून, 1908 के अनुच्छेद 47 के अंतर्गत आता है. यह संपत्ति दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के तहत मजिस्ट्रेट के कब्जे में थी. परिसीमा की अवधि मजिस्ट्रेट के अंतिम आदेश के बाद शुरू होती है. चूंकि मजिस्ट्रेट ने कोई अंतिम आदेश नहीं दिया है, इसलिए कार्रवाई की वजह जारी है, अत: परिसीमा द्वारा वर्जित होने का कोई सवाल नहीं उठता है.’    
जैन ने कहा कि हमारा वाद तो मंदिर की देखभाल के लिए संरक्षक के अधिकार की बहाली का है और इसमें प्रबंधन और मालिकाना अधिकार भी शामिल है. उन्होंने कहा कि 1950 में जब कब्जा लिया गया तो अभिभावक का अधिकार प्रभावित हुआ और इस अधिकार को बहाल करने का अनुरोध कब्जा वापस दिलाने के दायरे में आएगा. जैन से कहा कि कब्जा वापल लेने के लिए परिसीमा की अवधि 12 साल है. हमसे कब्जा लेने की घटना 1950 में हुई. इस मामले में 1959 में वाद दायर किया गया और इस तरह से यह समय सीमा के भीतर है.    
संविधान पीठ अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है. इस विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से सर्वमान्य समाधान खोजने के प्रयास विफल होने के बाद छह अगस्त से अपीलों पर सुनवाई शुरू हुई है. अयोध्या मामले में सुनवाई गुरुवार को भी जारी रहेगी.
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