राष्ट्रिय
विश्व के सबसे महानतम विद्वान, बोधिसत्व, राष्ट्रभक्त, वीसवीं सदी के महान स्मृतिकार Dr Babasaheb Ambedkar
विश्व के सबसे महानतम विद्वान, बोधिसत्व, राष्ट्रभक्त, वीसवीं सदी के महान स्मृतिकार बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर ने ५ दिसम्बर की रात, अपने सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘बुद्ध और उनका धम्म’ की भूमिका पूर्ण लिख कर सुख की नींद सो गए। ६ दिसम्बर ‘‘गुरूवार’’ १९५६ को सवेरे छ: बजे नौकर चाय लेकर गया तो-बाबासाहेब निद्रावस्था में ही चल बसे थे। रात को किस समय उनका देहान्त हुआ, यह कोई न जान सका। वह चुपचाप ही चल दिए। जीवन भर अन्याय तथा अत्याचार के विरूद्घ सतत् संघर्ष करते हुए विद्रोह की आवाज बुलंद करने वाले विद्वान विद्रोही वीर अपना जीवन कार्य समाप्त करके राग और द्वेष का नाता तोडक़र बिना किसी तरह की आवाज आहट किये चुपचाप ही चल दिये। इतिहास का एक अध्याय समाप्त हुआ।
उनकी मृत्यु के समाचार से राजधानी और देश-विदेश में शोक छा गया। तत्कालीन नेताओं ने उनको मार्मिक श्रद्घांजलियां समर्पित कीं। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा-‘‘डॉ. अम्बेडकर हिन्दू समाज की दमनात्मक नीति के विरूद्घ किए गए विद्रोह के प्रतीक थे।’’
डॉ.अम्बेडकर का शव खास विमान से दिल्ली से मुम्बई ले जाया गया। बम्बई के शांताकु्रज विमान स्थल पर शव रात को दो बजे पहुंचने वाला था, परन्तु उससे बहुत पहले ही उत्तर बम्बई की सडक़ों पर जनसमूह एकत्र होने लगा। महाराष्ट्र के मूलनिवासी लोगों के ह्रदय में डॉ.अम्बेडकर के प्रति जो श्रद्घा और प्रेम की भावना थी, वह कितनी अधिक गहरी थी यह उनकी मृत्यु से ही मालूम हुआ। बाबा साहब को श्रद्घांजलि अर्पित करने के लिए लोग इतने अधिक उत्सुक थे और भीड़ इतनी ज्यादा थी कि यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि माहिम और कुर्ला से रानी बाग तक के क्षेत्र की जनता ने बिना सोय ही सारी रात बिता दी। बाबा साहब का शव लेकर खास विमान रात को दो बजे शांताकु्रज विमान स्थल पर पहुंचा। उस समय वहां लगभग पचास हजार लोग उपस्थित थे। विमान स्थल से बाबासाहेब का शव म्युनिसिपल वाहन से ‘राजगृह’ ले जाया गया। 5 मील के मार्ग पर दोनों तरफ हजारों स्त्री-पुरूष आंखों में आंसू और हाथों में पुष्प या पुष्पमाला लिए बाबासाहेब के अन्तिम दर्शन के लिए खड़े थे। शव सवेरे 5 बजे ‘राजगृह’ पहुंचा वहां उस समय लगभग दो लाख जनता दर्शन के लिए एकत्रित हो गई थी। अधिकांश लोगों की आंखों से आंसू बह रहे थे।
फूल मालाओं से अच्छी तरह ढका हुआ शव दर्शन के लिए भवन के अहाते में ऊंचे स्थान पर रखा गया। बौद्घ भिक्षु मन्त्रोचार कर रहे थे। जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया दर्शनार्थियों की भीड़ भी बढ़ती गई। राजगृह पहुंचने के लिए प्रयत्नशील लोगों की इतनी अपार भीड़ हो गई कि व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस को भी बीच-बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा।
शुक्रवार 7 दिसम्बर को दोपहर के दो बजे बाबासाहेब की महानिर्वाण यात्रा राजगृह से शुरू हुई। इस महायात्रा में लगभग २० लाख लोग शामिल हुए थे, सर्वत्र शोकग्रस्त लोगों की भीड़ ही भीड़ नजर आ रही थी। समस्त मार्ग पर दोनों ओर जनता खड़ी थी। पांच मील लम्बी महायात्रा साढे पांच बजे शिवाजी पार्क की की चौपाटी पर पंहुची। बौद्घ भिक्षुओं ने अंत्य-विधि पूरा किया और बाबासाहेब का शव चंदन की चिता पर रखा गया। सात बजकर बीस मिनट पर बिगुल बजा और बाबासाहेब के एकमात्र पुत्र श्री यशवंतराव अम्बेडकर ने अग्रि संस्कार किया। सशस्त्र पुलिस दल ने आकाश में खाली गोलियां दाग कर परिनिर्वाण प्राप्त नेता के प्रति श्रद्घांजलि अर्पित की। चिता जल उठी और बाबासाहेब का पार्थिव देह अनंत में विलीन हो गया। श्मशान सभा में महाराष्टï्र दलित फेडरेशन के अध्यक्ष श्री दादासाहेब गायकवाड़ बोले-‘16दिसम्बर को लाखों मूलनिवासीयों को बौद्घ धर्म की दीक्षा देने के लिए बाबा साहेब 14 दिसम्बर को यहां आने वाले थे। दुर्भाग्य से वह आज इस रूप में यहां आये हैं। बाबा साहेब जो काम करने वाले थे, वह अब हम स्वयं करें।’’ इसके बाद भिक्षु डॉ. भदन्त आनन्द कौसल्यान ने त्रिशरण पंचशील का उच्चारण करवाकर लगभग तीन लाख मूलनिवासीयों को बौद्घ धर्म की दीक्षा दी।
डॉ.अम्बेडकर का जीवन महान् था और उनकी मृत्यु भी महान् थी। उनकी मृत्यु के बाद महाराष्टï्र सहित उतर प्रदेश, मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों के मूलनिवासीयों में धर्मान्तर की लहर दौड़ गई। मूलनिवासी लोग लाखों की संख्या में बौद्घ हुए। भारत में एक वर्ष में लगभग चालीस लाख मूलनिवासी लोग बौद्घ धर्म में दीक्षित हुए। एक व्यक्ति के धर्मान्तर करने से लाखों का धर्मान्तर संसार के धार्मिक इतिहास में एक अद्भुत तथा अपूर्व घटना है। वास्तव में डॉ.अम्बेडकर एक असामान्य व्यक्ति थे।और हम सबको छोड़ देंगे।
करन बौद्ध कलमकार
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