इस्लामी व्यवस्था अपराध का इंतज़ार नही करती:
अपराध ऐसा कैंसर है कि इसके कारण समाज की स्थिति खौफनाक होने लगती है, लेकिन इस्लाम अपराध का इंतजार नहीं करता कि अपराध होने के बाद उसका इलाज किया जाए बल्कि ऐसी व्यवस्था और शिक्षायें देता है कि समाज में अपराध पैदा ही न हो सके।
कन्या की हत्या करने वाले को कुरआन याद दिलाता है कि उनका ये दुष्कर्म उन्हे परलोक मे अल्लाह के प्रकोप का भागी बनायेगा
और जब जीवित गाडी हुई लड़की से पूछा जायेगा कि वो किस कसूर मे मारी गई (81:8,9)
अरबो मे इसलाम से पूर्व लड़कियो को जिन्दा दफन करने का रिवाज था नबी-ए-करीम सल्ल○ की बताई शिक्षाओ के कारण अरब के लोगो की सोच बदली और आज भी इसलाम धर्म के पैरोकार इस जघन्य अपराध से दूर है
इसलाम मानवजाति के लिए रहमत बनकर आया न कि ज़हमत इसलिए निष्पक्ष होकर सम्पूर्ण मानव-जाति को इसलाम का अध्ययन करना चाहिए।
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