राष्ट्रिय
मोदी और अमित शाह ‘ ऐनी फ्रेंक हाउस’ जाये और देखें नस्लवाद मानवता का कैसा अंत करती है – विक्रम चौहान
Vikram Singh Chauhan
भारत में नाजीवाद के पदचाप स्पष्ट सुनाई दे रहा है।यातना गृह भी बन रहे हैं ।मुझे ऐसे में दूसरे विश्व युद्ध की विभीषिका ,नाजियों के यहुदियों पर जुल्म,क़त्लेआम के बीच 15 साल की यहूदी बच्ची ऐनी फ़्रैंक की लिखी डायरी की याद आ रही है।ऐनी और उसकी बहन मार्गेट की मौत एक यातना गृह में हो गई थीं।उससे पहले उस बच्ची ने 13 वर्ष की जन्मदिन पर गिफ्ट में मिली डायरी में दर्द का दस्तावेज़ लिख डाला था।ऐनी ने डायरी को ‘केटी’ नाम दिया था और उसे अपनी सहेली लिखा करती थीं।ऐनी, उससे दो वर्ष बड़ी बहन मार्गेट और उसकी माँ एडिथ की मौत यातना गृह में हो गई थीं, लेकिन उनके पिता ओटो प्रैंक उन 8 लोगों में से एक थे जो जीवित थे।रुसी सेना ने उन्हें मुक्त कराया था।वे पुरुषों के यातना गृह में थे।यह परिवार जर्मनी से भागकर कई साल तक एम्स्टर्डम में छिपा था।लेकिन जब नीदरलैंड में भी नाजियों ने कब्ज़ा कर लिया तो वहाँ छुपे यहूदियों को जर्मनी के बैर्गेन बेलसेन यातना गृह और आउशवित्स नाजी यातना गृह में रखा गया।बैर्गेन बेलसेन में 70 हज़ार यहूदी मारे गए थे।जिनमें ऐनी, मार्गेट और एडिथ भी थीं।इस यातना गृह में महिलाएं और उनके बच्चे थे।आउशवित्स में 11 लाख यहूदी मारे गए।बहरहाल ओटो प्रैंक जब जीवित बाहर आये तो उन्हें अपने परिवार में से कोई जीवित नहीं मिला,उन्हें मिला वह डायरी जो अपनी बच्ची को जन्मदिन में दिया था। डायरी 2 जून 1942 से शुरू होकर 1 अगस्त 1944 तक लिखी गई।
4 अगस्त 1944 को उन्हें यातना गृह में डाल दिया गया। 1945 में ऐनी की मृत्यु हो गई। बेर्गन बेलसेन में ऐनी की कब्र भी है। फ्रैंकफर्ट में पैदा होने वाली ऐनी ने अपनी जिंदगी में कई सपने देखे. अपनी डायरी में उसने लिखा, “मैं बेकार में नहीं जीना चाहती, जैसे ज्यादातर लोग जीते हैं।मैं उन लोगों को जानना चाहती हूं जो मेरे आसपास रहते हैं लेकिन मुझे नहीं जानते, उनके काम आना और उनके जीवन में खुशी लाना चाहती हूं।मैं और जीना चाहती हूं, अपनी मौत के बाद भी.”। एक जगह वह लिखती हैं उसकी जिंदगी सिमट गई है।वह डर के साये में जी रही हैं।वह लिखती हैं मैं इस घुटन से आज़ादी चाहती हूँ।तितलियों,पतंगों की तरह खुले आसमान में उड़ना चाहती हूँ।फिर वह खुद से सवाल भी करती हैं कि क्या यह दिन नसीब होंगे? एक जगह ऐनी लिखती हैं,उनके बड़े सपने है,वह पत्रकार और प्रसिद्ध लेखिका बनना चाहती है।एक जगह ऐनी लिखती हैं शुक्र है मेरे पास डायरी है।मेरे जिन्दा रहने की वजह ,अगर यह नहीं होतीं तो मेरा तो दम ही घुट जाता।डायरी के अगले पन्ने में ऐनी लिखती हैं हम घर के पिछले हिस्से में छुप कर रह रहे हैं।
ब्रश,कपडे सब पुराने यूज़ कर रहे हैं।जो यहूदी हमारी तरह छुप कर जिंदगी नहीं जी रहे हैं तो उनकी जिंदगी स्वर्ग जैसी होगी।डायरी के आखिरी पन्नो में ऐनी ने लिखा है हालैंड रेडियो बता रहा है कि लोगों को गैस चेम्बर में डाला जा रहा है।जिसमें छोटे यहूदी बच्चे भी है।इसी के बाद वह मनहूस दिन आता है जब प्रैंक परिवार पकड़ा जाता है।3 अगस्त 1944 को वह पिता को अंतिम बार देखती है।1945 में यातना गृह में उस बच्ची और उस जैसे हज़ारो बच्चों की मौत बीमारी,भूख और यातनाओं से हो जाती है।लेकिन उसकी डायरी एक दूसरे हाथों से गुजरते हुए सुरक्षित रहती है और उसके पिता को आज़ाद होने के बाद मिलती है।उसके पिता की जिंदगी की एक ही मकसद शेष रह जाती है वह उसकी बच्ची की डायरी का प्रकाशन करें।1947 में यह डायरी ‘पिछवाड़े का घर’ नाम से प्रकाशित होती है,फिर अंग्रेजी में ‘द डायरी ऑफ़ अ यंग गर्ल ऐनी फ्रैंक’ के नाम से प्रकाशित होता है।इस किताब का तब से लेकर अब तक 3 करोड़ प्रतियां बिकी है।
विश्व के 67 भाषाओं में अनुवाद हो चूका है।ऐनी अपनी मौत के बाद किसी प्रसिद्द लेखिका से कम नहीं है।दूसरे विश्व युद्ध ,नस्लवाद और नाजीवाद पर यह युद्घ कालीन डायरी एक जीवंत दस्तावेज़ है।एम्स्टर्डम में जहाँ ऐनी ने यह डायरी लिखी अब वह ‘ऐनी फ्रेंक हाउस’ है।वहां हर साल 10 लाख लोग आते हैं।मैं चाहता हूँ हमारे यहाँ से भी मोदी और अमित शाह ‘ ऐनी फ्रेंक हाउस’ जाये और देखें नस्लवाद मानवता का कैसा अंत करती है।बच्चों के सपनों को कैसे कुचलती है।और अंत में हासिल क्या आता है।ऐसे ही किसी बच्ची की डायरी! उसकी कब्र,उसके आसूं जो कभी पोछे नहीं गए!
( Vikram Singh Chauhan एक स्वतन्त्र पत्रकार है यह उनके निजी विचार है. इस लेख को एसडी24 ने संपादित नहीं किया )
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