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ज्योतिरादित्य सिंधिया अब क्या बनेंगे…? “गोडसेवादी या गांधीवादी”
1857 का एक बड़ा गद्दार था सिंधिया! यह बात इतिहास के पन्नों में कई रूपों में दर्ज है।
1857 का एक बड़ा गद्दार था सिंधिया! यह बात इतिहास के पन्नों में कई रूपों में दर्ज है।
ये तो खानदानी है, राजे रजवाड़े परिवार से हैं और इनके पिता माधवराव सिंधियाजी पक्के कांग्रेसी विचारधारा के होने से राजीवजी के सबसे अधिक करीबी मित्र थे,अंतरंग थे ! सुपुत्र की पृष्ठभूमि तो बड़ी साफ सुथरी है. कांग्रेसी है !! यानी सुपुत्र को गांधी जी की सत्य, अहिंसा, सर्वधर्म समभाव सामाजिक न्याय, इंसानियत और देशभक्ति को जानने, समझनेवाली मानसिकता की 100% गारंटी ली जा सकती हैं. यही है कांग्रेसी विचारधारा…?
कहा जा रहा है, अब ये ज्योतिरादित्य सिंधिया BJP में जा रहे हैं, यानी अब इन्हें RSS की घृणा, द्वेष, नफरत और हिंसा वाली नाथूराम की जुबान में मीडिया के सामने !
– AAP के कपिल मिश्रा की तरह हिंसा की पैरवी करनी होंगी !
– नाथूराम गोडसे को देशभक्त और सावरकर को राष्ट्रनिर्माता और महान देशभक्त स्वीकार करना होगा !
– BJP के लोग सिंधिया परिवार पर भी देश से गद्दारी करने के आरोप लगाया करते थे !
– कांग्रेस ने इन्हे सम्मान, आदर, देशभक्त परिवार की प्रतिष्ठा दिलवाई !
इन सभी बातों को समझते हुए, मुझे तो विश्वास नहीं हो रहा है कि ये…गांधीजी के विचारों के विरूद्ध और अंग्रेजों के तलवे चाटने वाले और नाथूराम समर्थको के बीच जाकर मात्र सत्ता की लालसा में. बैठ जाएंगे..?? फिर भी कलयुग है ! आस्तिनों के सांपों की, धोखेबाज स्वार्थी नेताओं की, हमारे देश में कोई कमी नहीं है….?
Kailash Prakash Singh सन् 1857 दोहराया गया। सिंधिया ने इस बार फिरंगियों के मुखबिरों का हाथ पकड़ा है।
गद्दारी जारी रहेगी!
जिसे आप गद्दारी कह रहे हैं वह किसी के लिए एक सुनहरी मौका हो सकती है! सिंधिया खानदान अतीत से इस गद्दारी को मौके में बदलता आया है! रानी लक्ष्मी बाई की शहादत के बाद झांसी कई दिन लूटी गई। उस लूट में ग्वालियर का सिंधिया बहुत सारी दौलत के साथ रानी झांसी के बचपन का पालना लूट ले गया था! रानी का वह ऐतिहासिक पालना आज भी सिंधिया की दौलत का हिस्सा है!
1857 का एक बड़ा गद्दार था सिंधिया! यह बात इतिहास के पन्नों में कई रूपों में दर्ज है।
यही नहीं जब रानी झांसी के घायल पिता मोर पंत तांबे ग्वालियर के सिंधिया के संपर्क में आए तो मदद कि जगह उनको मरने के लिए छोड़ दिया। तांबे का एक पैर कट गया था और वे एक पैर से घुड़सवारी करते ग्वालियर गए की कुछ हो सकता है। लेकिन सत्ता के लोभ में सिंधिया ने अंग्रेज़ प्रभुओं को चुना! गद्दारी कोई नई बात नहीं है। उस गद्दारी को महान कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान ने भी अपनी कविता में दर्ज किया है।
“रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार, घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार, यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार, विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार। अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी, ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।” ऐसी सत्ता लोभी गद्दारी जारी रहेगी। जनता और दलों को अपना हिसाब सोचना होगा