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कोरोना महामारी से भारत की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी को संक्रमण का उच्च स्तरीय खतरा
SD24 News Network
कोरोना महामारी से भारत की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी को संक्रमण का उच्च स्तरीय खतरा है. “द लैंसेट” के अध्ययन में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, तेलंगाना और झारखंड जैसे 9 राज्य व्यापक गरीबी और खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण महामारी के प्रति सबसे ज्यादा संवेनदशील हैं. यहां अगर महामारी अपने खराबतर रूप में फैलती है तो इन राज्यों के कई जिलों में कोई सुविधाएं मौजूद नहीं हैं.
उम्मीद है कि विधायकों की खरीद-बिक्री, मंदिर-मस्जिद और हिंदू-मुसलमान करके देश इस खतरे से निपट लेगा. ताली और थाली का कारनामा तो हम सब देख ही चुके हैं. हजारों मरीज बिना इलाज के मर रहे हैं. कई मरीज अस्पताल के बाहर खत्म हो गए. उनके परिवार पूछ रहे हैं कि इस मौत की जिम्मेदारी किसकी है? जवाब देने वाला कोई नहीं है.
एकाध रवीश कुमार चिल्लाता रहता है, लेकिन सुनता कौन है? ऐसा लगता है कि जैसे हमारा समाज ही बहरा हो गया है. भारत अब इतना गरीब नहीं रह गया है कि हर अस्पताल में बिस्तर, एंबुलेंस, आक्सीजन वगैरह की व्यवस्था न कर सके. हम सब चलते फिरते मुर्दे हैं. अपनी अपनी बॉलकनी थाली बजाते हुए मर जाने के लिए अभिशप्त हैं.
कुछ डॉक्टर चिल्लाते रह गए कि सुविधाएं नहीं हैं. जो सरकार शुरुआत में उत्सव मना रही थी, अब वह खामोशी से अगले स्टंट के बारे में सोच रही होगी. वे डॉक्टर भी शांत हो चुके हैं. जब कोई सुनने वाला नहीं होता, तो बोलने वाला बोलना बंद कर देता है. हम सब बोलना बंद कर चुके हैं.
दुनिया भर में फैली कोरोना महामारी के बीच, भारत की 60 फीसदी से ज्यादा आबादी को संक्रमण का उच्च स्तरीय खतरा है. देश के सबसे ज्यादा आबादी वाले नौ राज्य ऐसे हैं जिन्हें महामारी से सबसे ज्यादा खतरा है. ये राज्य हैं- उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, तेलंगाना और झारखंड. व्यापक गरीबी और खराब स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण ये नौ राज्य कोरोना महामारी के प्रति सबसे ज्यादा संवेनदशील हैं. ये बातें मेडिकल जर्नल “द लैंसेट” में प्रकाशित एक अध्ययन में कही गई हैं.
इस अध्ययन में सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, जनसांख्यिकी, आवास और स्वच्छता, महामारी विज्ञान और स्वास्थ्य सुविधाओं के पांच मानकों पर इन राज्यों का आकलन किया गया है. इसमें पाया गया कि इन नौ राज्यों में कई जिले बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं. अगर महामारी अपने खराबतर रूप में यहां फैलती है तो ये जिले इससे निपट पाने में सक्षम नहीं होंगे.
इस अध्ययन के मुख्य लेखक राजीब आचार्य दिल्ली स्थित पापुलेशन काउंसिल से जुड़े हैं. उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि कमजोर स्वास्थ्य सुविधाएं कोविड-19 के प्रसार में सबसे बड़ी चुनौतियों में एक है. आचार्य ने इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) को बताया, “कुछ जिले सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों के संदर्भ में असुरक्षित हैं, कई जिले स्वच्छता और आवास की स्थिति के कारण असुरक्षित हैं. हालांकि, इनमें से ज्यादातर जिले स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़े बुनियादी ढांचे की कमी के कारण असुरक्षित हैं.”
इस अध्ययन में कोरोना वायरस केसों की व्यापकता को संभालने के लिए जिलों की क्षमता का आकलन किया गया है. अध्ययन कहता है, “संवेदनशीलता सूचकांक में संक्रमण के खतरे की जगह इस पर विचार किया है कि उस आबादी पर कोरोना वायरस संक्रमण के परिणामों का क्या असर पड़ेगा.”
अध्ययन में पाया गया कि पांच राज्यों के 20 जिले सबसे ज्यादा संवेदनशील/असुरक्षित हैं. बिहार में ऐसे सबसे अधिक (आठ) जिले हैं, उसके बाद उत्तर प्रदेश (छह) और मध्य प्रदेश (चार) में हैं. संवेदनशीलता सूचकांक के अनुसार, राजस्थान और झारखंड में एक-एक जिले ऐसे हैं जो उच्च जोखिम वाले हैं.
सबसे कम जोखिम वाले जिले पूर्वोत्तर राज्यों असम, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम में हैं. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अधिकांश जिले भी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. अध्ययन के अनुसार, बिहार का दरभंगा जिला इस संवेदनशीलता सूची में सबसे ऊपर है, जबकि दक्षिणी सिक्किम सबसे नीचे है.
अध्ययन में कहा गया है कि यह स्थिति भारत के ग्रामीण इलाकों में कोरोना वायरस फैलने से पहले की है. इसके आधार पर व्याख्या करते हुए आचार्य कहते हैं, “यह एक अवलोकन था, यह कोई अनुमान नहीं है… ज्यादा केस वाले क्षेत्रों से प्रवासी मजदूर घर लौट आए हैं; इनमें से कई ग्रामीण इलाकों में होंगे. संभव है कि वायरस उनके साथ आ गए हों. आप देख सकते हैं कि दो महीने पहले भारत के लगभग 60 प्रतिशत जिले ही प्रभावित थे. अब सभी जिले प्रभावित हैं. यह स्वाभाविक है.”
संवेदनशीलता सूचकांक कोविड-19 प्रसार से निपटने के लिए जिलों की क्षमता को मापने का एक उपकरण है. इस अध्ययन के लेखकों ने नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे (NHFS 2015-16), जनगणना 2011 और नेशनल हेल्थ प्रोफाइल (2019) के जिलेवार आंकड़ों के आधार पर एक समग्र सूचकांक तैयार किया है.
इस सूचकांक में 15 संकेतक शामिल हैं, जैसे गरीब परिवारों की संख्या, प्रति कमरा लोग, स्वच्छता सुविधाएं और सार्वजनिक अस्पतालों की उपलब्धता वगैरह. इन 15 संकेतकों के आधार पर लेखकों ने पांच व्यापक मापदंडों का उपयोग किया है.
संवेदनशीलता सूचकांक इन पांच मानदंडों पर आधारित है- सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जनसांख्यिकी, आवास और स्वच्छता, महामारी विज्ञान और स्वास्थ्य सुविधाएं. इनके साथ 17 जून, 2020 तक कोविड-19 केस के आंकड़े भी शामिल किए गए हैं.