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भारत में APARTHEID नही होता तो आज जस्टिस कर्णन मुख्य न्यायधीश होते
SD24 News Network
भारत में APARTHEID नही होता तो आज जस्टिस कर्णन मुख्य न्यायधीश होते
भारत में APARTHEID नही होता तो आज सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शरद अरविन्द बोबडे नही, जस्टिस कर्णन मुख्य न्यायधीश होते !
भारत में सेकंड थर्ड डिग्री लॉ पास कर वकील बनते हैं, फिर बिना परीक्षा के कॉलिजियम के तहत हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के जज बन जाते हैं. यह सब एक विशेष जाति के होते हैं जो एक पवित्र धागे से आपस में बंधे हुए हैं !
पूरी दुनिया में भारत ही एक मात्रा देश है जहां MINORITY ब्राह्मण को जज बनने की प्रक्रिया बड़ी सरल है और MAJORITY वर्ग ओबीसी एससी एसटी के लिए जज बनना मुश्किल इसलिए है कारण विशेषाधिकार जाति के लोग जज बनते हुए देखना नही चाहते !
जजों की सबसे कठिन परीक्षा चीन आयोजित करता है, एक साथ कुल 17 विषय पढ़ना होता है. इस परीक्षा में हर प्रश्न एक कठिन केस की तरह होता है. कठिन प्रतियोगिता कराने का उद्देश्य – उच्च स्मृति की जांच करना, केस को समझने के किए उच्च स्मृति की शक्ति की आवश्यकता होती है. कठिन मामलों में तेज़ी से विश्लेषण करने की उच्च क्षमता को परखना !
इस राष्टीय ज्यूडिशरी परीक्षा में सिर्फ 7% पास होते हैं, 93% फेल कर दिए जाते हैं. तब जाकर चीन में कोई जज बनता है. लेकिन भारत में कॉलिजियम पंचायत में बैठे चार ब्राह्मण जज भारत के पूरी न्याय प्रणाली को चला रहे हैं !
न्यायपालिका कोई मंदिर मठ नही है जो दो चार ब्राह्मण मिलकर सारे फैसले करें. अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट का जज राष्ट्रपति सीनेट की सलाह से नियुक्त करते हैं. भारत के पार्लियामेंट को जजों की नियुक्ति से अलग क्यों रखा गया है ?
जस्टिस कर्णन और मुख्य न्यायाधीश बोबडे के बीच LIVE लिखीत परीक्षा हो, तब पता चल जाएगा कौन योग्य है कौन अयोग्य है !
आखिर बिना परीक्षा के कैसे पता चलेगा बोबडे साहब में केस को समझने की उच्च स्मृति शक्ति है या नही, कठिन मामलों में तेजी से विश्लेषण करने की क्षमता है की नही ?
– स्वतंत्र पत्रकार क्रांति कुमार के निजी विचार