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अपूर्ण, त्रुटिपूर्ण और पक्षपात युक्त निष्कर्ष के आधार पर अख़लाक़ के परिजनों के विरुद्ध आरोप पत्र अदालत में दाखिल

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SD24 News Network Network : Box of Knowledge
अपूर्ण, त्रुटि पूर्ण और पक्षपात युक्त निष्कर्ष के आधार पर अख़लाक़ मरहूम के परिजनों के विरुद्ध बछड़े का कथित वध किये जाने के मामले में आरोप पत्र अदालत में दाखिल
कानूनी विकल्प का होगा उपयोग.
case crime number 132 दिनांक 15 जुलाई 2016 थाना जारचा ज़िला गौतम बुद्ध नगर उत्तरप्रदेश.
वादी –सूरज पाल पुत्र रघुराज सिंह.
FIR के तथ्य 
1. वादी सूरज पाल ने धारा 156(3) Crpc के अंतर्गत प्रार्थना पत्र अदालत में दिया जिस पर अदालत ने आदेश पारित किये और FIR दर्ज हुई. ये प्रार्थना पत्र दिनांक 9 जून 2016 अदालत में दिया गया था, जब की कथित घटना दिनांक 25 सितम्बर 2015 की बताई गयी थी. यानि घटना के साढ़े आठ माह बीत जाने के बाद 156(3) के अंतर्गत प्रार्थना पत्र अदालत में दिया गया .
2. वादी सूरजपाल ने अपने प्रार्थना पत्र में आरोपीत किया कि दिनांक 25 सितम्बर 2015 को बकरा ईद वाले दिन दोपहर 12 बजे गाँव के रणवीर पुत्र राजेंदर और जतन पुत्र मुसद्दी ने देखा कि अख़लाक़ और उनका बेटा दानिश एक बछड़े को डंडों से पीटते हुए उसको घेर कर ले जा रहे थे. जब उनसे रणवीर और जतन उक्त ने पूछा तो अख़लाक़ और दानिश ने कहा कि सामने जान मोहम्मद का मकान जो बंद पड़ा है उस में इस को बंद कर देता हूँ.
2. इसके पश्चात् प्रेम सिंह पुत्र विशमबर ने समय करीब 12.30 बजे दोपहर अख़लाक़ के भाई जान मोहम्मद के बंद मकान से बछड़े के रम्भाने की आवाज़ सुनी तो प्रेम सिंह ने मदन सिंह के मकान के सामने गली से देखा कि अख़लाक़, दानिश शाइस्ता व अन्य आरोपियों ने बछड़े को गिरा कर पकड़ रखा है और जान मोहम्मद अपने हाथ में लिये हुए छुरे से उस बछड़े की गर्दन को काट रहा है. प्रेम सिंह यह देख कर भय भीत हो गया और उसने ये बात किसी को भी नहीं बताई.
3. इस प्रथम सूचना रिपोर्ट के पैरा 5 में ये उल्लेख किए गया है कि दिनांक 27 सितम्बर 2015 को गाँव में चर्चा हुई कि बछड़ा 2 दिन से गायब है और लोग समूह बनाकर इधर -उधर तलाशने लगे लेकिन बछड़े का कहीं पता नहीं चला. FIR के पैरा 1 में उल्लेख किए गया है कि गांव बिसहाडा में इस बछड़े से गांव के लोगों की आस्था जुडी हुई थी और इसी आस्था से लोग आटे की लोइ और रोटी उसको खिला दिया करते थे.
प्रश्न 1. अगर गवाह रणवीर और जतन ने वास्तव में 25 सितम्बर 2015 को अख़लाक़ और दानिश को उक्त बछड़े को पीट पीट कर जान मोहम्मद के घर में ले जाते हुए देखा था तो उन्होंने ये बात गाँव के लोगों को 27 सितम्बर 2015 को क्यों नहीं बताई जब लोग कथित रूप से समूह बनाकर उक्त बछड़े को तलाश कर रहे थे. ये बात पहली बार 156(3) के प्रार्थना पत्र में लिखी गयी. अख़लाक़ मर्डर केस की (केस क्राइम नंबर 241 सन 2015 की तफ्तीश के दौरान भी किसी भी अभियोजन के गवाह अथवा उस केस के अभियुक्तों ने ये आरोपित नहीं किया कि उसने 25 सितम्बर 2015 को अख़लाक़ और दानिश को बछड़े को जान मोहम्मद के घर में ले जाते और वहां उसको काटते हुए देखा.
ये आश्चर्य कि बात है कि जिस बछड़े से गाँव के लोगों कि आस्था जुडी हुई थी , उसको 25 सितम्बर 2015 को ले जाते हुए व काटते हुए देखा गया . ये बात क्यों कर नहीं बताई गयी उसका कोई उचित कारण नहीं है. कहा जा रहा है कि प्रेम सिंह बछड़े को काटा जाना प्रत्यक्ष देख कर घबरा और डर गया था तो रणवीर और जतन तो नहीं डरे थे???? इससे प्रमाण होता है कि रणवीर, जतन और प्रेम सिंह ने कुछ भी नहीं देखा और वे झूठी गवाही दे रहे हैं.
प्रार्थनापत्र 156(3) में पैरा 13 में उल्लेख किए गया कि वादी सूरज पाल ने 8 अक्टूबर 2015 को रजिस्टर्ड प्रार्थना पत्र पुलिस अधिकारिओं को भेजा था. रजिस्टर्ड पोस्ट की रसीद भी लगायी गयी हैं जब की पत्र की मूल प्रति नहीं लगायी गयी है. मूल पत्र में क्या लिखा गया , वह प्रमाणित नहीं होता क्यों की इसके 8 महीने पश्चात् 156(3) प्रार्थना पत्र दिनांक 9 जून 2016 को प्रस्तुत किए गया. इसके पैरा 13, 15, में लिखा है कि पुलिस अधिकारीयों ने अख़लाक़ हत्या केस में तुमको फंसा दिया जाएगा इसलिए दोबारा थाने पर शिकायत लेकर मत आना . तब 8.10.2015 को रजिस्टर्ड डाक से पत्र भेजा गया था .
अख़लाक़ परिवार कि ओर से जन सूचना अधिकार एक्ट के तहत इस प्रार्थना पत्र जो सूरज पाल ने रजिस्टर्ड डाक से पुलिस अधिकारीयों को 8.10.15 को भेजा था, की प्रमाणित प्रति मांगी गयी तो उनके द्वारा ये कहकर मना कर दिया गया कि जांच चल रही है इसलिए नहीं दी जा सकती.
सूरज पाल के इस प्रार्थना पत्र दिनांक 8-10-15 का रिकॉर्ड पर आना आवश्यक है.
यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है कि मथुरा लैब कि रिपोर्ट को सार्वजानिक 31.5.2016 को किया गया. इसके पश्चात् ही 9.6.2016 को 156(3) के तहत प्रार्थना पत्र दुर्भावना पूर्वक असत्य आधार पर दिया गया. मथुरा लैब रिपोर्ट भी अपूर्ण नमूनों पर आधारित थी.
प्रश्न 2.
सूरजपाल वादी ख़ुद चश्मदीद गवाह नहीं है.
वादी सूरजपाल ने अपने प्रार्थना पत्र 156(3) व FIR , और बयान 161 में कहीं भी ये उल्लेख नहीं किया है कि गवाह रणवीर, जतन ने कब उसको बताया कि उन्होंने 25 सितम्बर 2015 को अख़लाक़ व दानिश को बछड़े को जान मोहम्मद के बंद पड़े घर में ले जाते हुए और प्रेम सिंह ने कब सूरज पाल को बताया कि उसने बछड़े को काटते हुए देखा.
सूरज पाल का बयान 161 दिनांक 24 जुलाई 2015 को केस डायरी पर्चा 5 को दर्ज हुआ. इस में उसने नहीं कहा कि वह चश्मदीद गवाह है.
सूरज पाल ने 161 के बयान में यह नहीं कहा कि उसने 8. 10. 15 को या उसके पहले किसी को प्रार्थना पत्र FIR दर्ज करने हेतू भेजे बल्कि उसने कहा है कि –
“मौके पर बरामद मांस को जारचा पुलिस ने जाँच के लिये फोरेंसिक लैब भेजा था जिसकी रिपोर्ट फोरेंसिक लैब मथुरा द्वारा गाय का मीट या गाय के वंश का मीट होने कि पुष्टि की थी , उसी के आधार पर मैंने मुक़दमा दर्ज करने के लिये माननीय अदालत में प्रार्थना पत्र प्रेषित किया था. “
सूरज पाल ने बयान 161 में यह भी नहीं कहा की किसी पुलिस अधिकारी ने उसको अख़लाक़ हत्या में बंद करने की धमकी दी थी
रणवीर, जतन व प्रेम सिंह के बयान 161.
इन तीनों गवाहों के बयान अंतर्गत धारा 161 दिनांक 28 जनवरी 2017 को दर्ज हुए.
घटना दिनांक – 25 सितम्बर 2015
156(3) प्रार्थना पत्र 9 जून 2016
FIR दर्ज 15 जुलाई 2016
बयान वादी सूरज पाल 161. दिनांक 24 जुलाई 2016.
निरीक्षण मौका स्थान व एकत्रित नमूना किया जाना दिनांक 30 जुलाई 2016
नोट – केवल संजय और राज पाल की मौजूदगी में 30 जुलाई 2016 को निरीक्षण घटना स्थान किया गया क्यों कि फर्द बरामदगी ईंट व मिट्टी पर संजय व राजपाल के ही हस्ताक्षर अंकित है. वादी सूरज पाल, व गवाहान चश्मदीद रणवीर , जतिन व प्रेमपाल न तो वहां मौजूद थे और न ही उनके हस्ताक्षर ही हैं. यदि 30 जुलाई 2016 को वे वहां मौजूद होते तो फरद बरामदगी और नक्शा नज़री पर इनके हस्ताक्षर होते और बयान 161 भी लिखा जाता जब कि बयान 161 इसके 6 माह बाद 28 जनवरी 2017 को लिखे गए. इनको कई बार तलाश करने का उल्लेख केस डायरी में आया है.
1. अपने बयान 161 में रणवीर और जतन ने (देखें केस डायरी पर्चा 19 दिनांक 28 जनवरी 2017) कहा है उन्होंने 25 सितम्बर 2019 को अख़लाक़ व दानिश को बछड़े को ले जाते हुए देखा था और ये भी कहा कि 27 सितम्बर 2015 से बछड़े की लोग तलाश कर रहे थे मगर ये किसी को भी नही बताया कि उन्होंने 25 तारीख़ को अख़लाक़ और दानिश को बछड़े को ले जाते हुए देखा. अख़लाक़ कि हत्या 28 सितम्बर 2015 की रात को हुई थी इसलिए रणवीर, जतन व प्रेम सिंह को अख़लाक़ की हत्या होने से पहले किसी का भी डर नहीं था कि पुलिस उनको अख़लाक़ कि हत्या में फंसा देगी. इसलिए रणवीर, जतन व प्रेम सिंह को 28 सितम्बर 2015 से पहले ही पुलिस को सूचना न देने की कोई वज़ह नहीं है अलावा इसके कि उन्होने कुछ देखा ही नहीं था और सारी कहानी अख़लाक़ कि हत्या के बाद और मथुरा लैब कि रिपोर्ट के बाद झुठी बनाई गयी ताकि अख़लाक़ परिवार को दवाब में लेकर अख़लाक़ के हत्या आरोपियों को बचाया जा सके.
प्रेम सिंह ने अपने बयान 161 में तो ये भी नहीं कहा कि उसने 25 सितम्बर 2015 को बछड़े के वध करते हुये जब देखा था तो उसने ये बात अख़लाक़ की हत्या 28 सितम्बर 2015 को होने से पूर्व किसी को क्यों नहीं बताई जब की उसको मालूम था कि लोग बछड़े को ढूंढ रहे हैं.
निरीक्षण घटना स्थान दिनांक 30 जुलाई 2016 को हुआ (देखें केस डायरी 7…) IO श्री प्रदीप कुमार को ये जानकारी कैसे हुई कि जान मोहम्मद के मकान में किस स्थान पर बछड़े को काटा गया था जिस का चश्मदीद अकेला गवाह प्रेम सिंह मौके पर मौजूद नहीं था और न ही गवाह रणवीर व जतन मौजूद थे.
मौके पर मौजूद संजय और राजपाल ख़ुद को 25 सितम्बर 2015 को घटित उक्त घटना का चश्मदीद गवाह नहीं बताते. संजय असल में अख़लाक़ मर्डर केस का मुख्य साजिश करता है जिसने अख़लाक़ मर्डर वाली रात 28 सितम्बर 2015 को अपने मोबाइल से 100 नंबर पर गाय काटने कि सूचना पुलिस को दी. इसका उल्लेख केस डायरी और FIR में आया है.
जब गाय काटने कि अफवाह और सूचना पुलिस को 28 सितम्बर 2015 की रात को हुई तो उस में कहीं भी ये बात नहीं थी कि गाय/बछड़े को 25 सितम्बर 2015 को काटते हुए प्रेम सिंह ने देखा था.
FIR में लिखित ये कहानी झूठ है कि अख़लाक़ कोई काली पिन्नी में पशु के अवशेष लेकर उनको फेंकने के लिये गए थे और पकडे जाने पर उन्होंने बताया कि मेरे फ्रीज़ में भी ग़ोश्त रखा है और तब कुछ लोग घर पर आकर फ्रिज से भगोना लेकर गये जो मौके पर पुलिस को मिला जिसके फोटो 156(3) के प्रार्थना पत्र के साथ लगाए गये हैं.
अख़लाक़ मर्डर केस में अभियोजन का पक्ष ये है ही नहीं कि अख़लाक़ किसी काली पिन्नी में पशु के अवशेष रात को फेंकने गये थे और पकडे गए और उनके बताने पर कुछ लोग घर पर आये और फ्रीज़ से भगोना लेकर गए जिसमें पशु के अवशेष और गोस्त था. अख़लाक़ मर्डर केस में अभियोजन का पक्ष है कि अख़लाक़ सहित पूरा परिवार रात को 10 बजे के करीब घर पर था कि मंदिर से एलान हुआ कि गाय काट दी गयी है और कुछ ही देर में अभियुक्त घर पर आ गये और सभी से बुरी तरह मारपीट कि व अख़लाक़ को घसीट कर घर से बाहर ले गए और कुछ दूर सड़क पर ट्रांसफार्मर के पास अख़लाक़ को ले जाकर जख्मी अवस्था में डाल दिया और उनकी मृत्यु हो गयी. अभियोजन का पक्ष ये है कि लोग फ्रिज में से जो गोस्त ले गये थे वह बकरे का पकाया हुआ गोस्त एक बोन चाइना के बर्तन में रखा था.
पुलिस को रात के 1 बजे कोई भगोना भी बरामद घटना स्थल से नहीं हुआ जिस कि फोटो 156(3) के प्रार्थना पत्र के साथ लगाई गयी है.
इस प्रकार अख़लाक़ मर्डर की जो कहानी सूरज पाल ने अपनी FIR में लिखी है वह पूरी तरह अख़लाक़ मर्डर केस ( FIR इकरामन ) से अलग है. सूरज पाल ने अपनी FIR में लिखा है कि कुछ लोग अख़लाक़ के घर के फ्रिज से अख़लाक़ के कहने पर ग़ोश्त भगोना लाये थे मगर उनके नाम नहीं बताये हैं. इस प्रकार ये सभी अख़लाक़ मर्डर केस के अभियुक्त होते हैं.
जान मोहम्मद के मकान का निरीक्षण व वहां से ईंट व मिट्टी को दिनांक 30 जुलाई 2016 को लिया गया. इस निरीक्षण नोट में लिखा है –
” जान मोहम्मद का मकान खुला हुआ पाया गया. उपरोक्त मकान काफ़ी दिन से खुला हुआ पड़ा है मकान के आँगन में काफ़ी घास उगी हुई है…. बाथरूम व रसोईघर आदि बने हुए हैं जो टूटी फूटी स्थिति में हैं.
फोरेंसिक जांच
1. दिनांक 30 जुलाई 2016 को फोरेंसिक जांच के लिये नमूना लिये गये . ये नमूने 27. 10.2016 को आगरा लैब को प्राप्त हुए जिनपर लगभग 2 साल के बाद 8 october 2018 को परिक्षण किया गया इसका उल्लेख परिक्षण रिपोर्ट में किया गया है . इस रिपोर्ट में वस्तु (1) ईट 1, वस्तु (2)ईट 1, वस्तु (5) मिट्टी , जो सभी आँगन से ली गयी बताई जाती हैं “पर रक्त वियोजित पाया गया अतः मूल निर्धारण न हो सका “. वस्तु 3 व वस्तु 4 पर रक्त नहीं पाया गया जो कि ईट के नीचे से ली गयी मिट्टी है.
इस प्रकार इस रिपोर्ट से यह साबित नहीं होता कि जो नमूना जान मोहम्मद के खुले पड़े मकान से लिये गये उनपर किसी गाय वंश का अथवा किसी भी पशु /पक्षी /मानव का रक्त पाया गया. देखें फोटो 2, 3.
उल्लेख किया जाना उचित होगा कि सूरज पाल कि रिपोर्ट में कथित घटना 25 सितम्बर 2015 की बताई जाती है और नमूना जांच के लिए 10 महीने बाद लिया गया जिसपर लैब परिक्षण 27 महीने बाद हुआ.
घटना के दिन(25 सितम्बर ) जान मोहम्मद दादरी थे
बछड़ा काटने की कथित घटना 25 सितम्बर 2015 की बताई है जब की अख़लाक़ की हत्या 28 सितम्बर 2015 की रात्रि में हुई. जान मोहम्मद ने 25 सितम्बर के दिन ख़ुद के दादरी होने के सबूत शपथ पत्रों के साथ विवेचना अधिकारी को भेजे.
अख़लाक़ परिवार के विरुद्ध आरोप पत्र का आधार क्या है ?
विवेचना के बाद और राज्य सरकार से अभियोजन स्वीकृति मिलने के पश्चात अख़लाक़ मरहूम के पुत्र दानिश, पुत्री, पत्नी माता, भाई जान मोहम्मद व अन्य रिश्ते दार के विरुद्ध आरोप पत्र अदालत में दाखिल कर दिया गया . इसका आधार मुख्य रूप से मथुरा लैब की रिपोर्ट को बताया गया है जिसके अनुसार ट्रांसफर चौराहे से पाया गया गया ग़ोश्त गाय का था. कुछ सवाल पैदा होते हैं —–
1. अख़लाक़ परिवार ने ये कभी भी नहीं कहा और कहीं भी स्वीकार नहीं किया कि अख़लाक़ किसी काली पिन्नी में ग़ोश्त और पशु अवशेष फेंकने घर से बाहर गये थे और अगर किसी ने उनको ऐसा करते हुए देखा तो वो कौन कौन हैं उनकी ठोस गवाही सामने नहीं है. घर के फ्रिज से जो ग़ोश्त हमलावर ले गये थे वो पकाया हुआ चीनी के बर्तन में रखा था. इसलिए जिस सैंपल को 28 सितम्बर 2015 की रात को 1 बजे ट्रांसफारमर चौराहा से पुलिस ने बरामद किया वह अख़लाक़ के घर से नहीं ले जाया गया था. कहाँ से लाकर किसने डाल दिया ये साबित करने का भार अख़लाक़ मर्डर केस के अभियुक्त लोगों पर है. जब मंदिर से गाय काटने की झूठी अफवाह और लोगों को इकट्ठा होने का एलान जो लोग करवा सकते है वही लोग ग़ोश्त को भी कहीं से लाकर चौराहे पर डाल सकते हैं.
इसलिये ये तथ्य की जिस गोस्त, व पशु के अन्य अवशेष को पुलिस ने बरामद किया , वह अख़लाक़ द्वारा काली पिन्नी में लाकर डाल दिया गया था, साबित नहीं होता और ये भी साबित नहीं होता कि वह अख़लाक़ के घर के फ्रिज से लाया गया था. तथाकथित भगोना व पशु अवशेष जिस का फोटो 156(3) प्रार्थना पत्र के साथ सूरज पाल ने लगाया है, वह न तो कहीं से बरामद हुआ और न ही केस प्रॉपर्टी है.
जो पशु का मांस 2kg, खाल , मुंह, व 4 पैर पुलिस ने ट्रांसफारमर चौराहा से बरामद किया उसको बरामदगी के समय सील नहीं किया गया. दादरी लैब ने खाल, मुँह और 4 पैर देखकर रिपोर्ट दी कि ये बकरा का ग़ोश्त है. मगर पुलिस ने खाल, मुँह और 4पैरों को मथुरा लैब जांच के लिए भेजा ही नहीं. घटना स्थान से 2 kg कच्चा मांस बरामद किया गया था परन्तु लैब रिपोर्ट में 4-5 kg लिखा गया… ये कैसे बढ़ गया? रिपोर्ट में कहीं उल्लेख नहीं है ये मांस और पशु के अवशेष कितने दिन पुराने हैं?
इस के अलावा दादरी लैब की सील व बर्तन जिसमें ग़ोश्त को रखकर नमूना सील किया गया था उनमें भिन्नता पायी गयी. प्लास्टिक कंटनर में रखा गया था मगर मथुरा लैब शीशे के जार में पहुंचा.
ये सभी तथ्य उच्च न्यायालय इलाहाबाद के समक्ष पहले भी रखे गये थे जिनके आधार पर हाई कोर्ट ने अख़लाक़ परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी.
इस प्रकार मथुरा लैब की रिपोर्ट के आधार पर कोई निष्कर्ष निकालना ग़लत है क्यूंकि मथुरा लैब रिपोर्ट अधूरी सामिग्री पर आधारित जो उसको जांच के लिए भेजी ही नहीं गयी.
आगरा लैब की रिपोर्ट भी निष्कर्ष विहीन है और साबित नहीं करती कि ईंट व मिट्टी पर पाया गया खून गाय का है.
इसलिये बछड़े की कथित हत्या करने का अख़लाक़ परिजनों के विरुद्ध पुलिस द्वारा दाखिल किया गया आरोप पत्र आधारहीन है और रद्द किये जाने योग्य है.
असद हयात
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