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असली मुद्दे हैं गायब, खत्म होती नौकरियां, ज़मीन की लूट, जंगल की लूट, पब्लिक सेक्टर

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असली मुद्दे हैं गायब, खत्म होती नौकरियां, ज़मीन की लूट, जंगल की लूट, पब्लिक सेक्टर..
असली मुद्दे हैं गायब, खत्म होती नौकरियां, ज़मीन की लूट, जंगल की लूट, पब्लिक सेक्टर को खत्म करना, कामगार-किसानों के सामने मुंह फाड़े महंगाई , नष्ट होती खेती’ परन्तु ये लड़ेंगे किस पर… एक फर्जी राष्ट्रवाद पर तो दूसरा दिखावटी सोशलिज्म पर और कैसे ?

आरक्षण नामक सुखी हड्डी को और सुखा रहे हैं तथा आपको और ज्यादा आरक्षण देने का वायदा करेंगे जो आपके किस काम का है, दूसरा पक्ष नेहरु के भूत को लेकर आएगा, एक बोलेगा सत्तर साल तो दूसरा बोलेगा पांच साल पर… हकीक़त में आप गौर से देखो और बताओ कौन से निर्णय हैं जो नई सरकार’ आने पर इन्हें बदलती है। अध्यादेश जारी करना, उसे कैसे व तुरंत प्रभाव से लागू करना’ तीनों अलग-अलग मुद्दे हैं’

कुछ एक उदाहरण से इसे समझते हैं 
नोटबंदी को ही ले लीजिये’ करनी थी पर कर नही पाए इसलिए सत्ता हस्तांतरण करना जरूरी था। 2012 में इसका प्लान किया था और बताएँगे क्या कि उस वक़्त हो नहीं सकता था.. ऐसे ही जीएसटी को लीजिये’ कब इसका प्रोसेस शुरू हुआ और जिन देशों ने इसको लागू किया वहां भी इस तरह की समस्याएँ आती हैं।
पर इलाज़ क्या है ?

आप अपने क्षेत्र में एक मजबूत व्यक्ति को बिना किसी चुनावी खर्च के चुने , आप आवाज़ उठाएं’ अनुपातिक प्रतिनिधित्व के लिए…, खेती को उद्योग का दर्जा देने के लिए , 1969 में समाप्त हुई लीज की ज़मीन पर अपना हक मांगो, आदिवासियों के लिए स्वायतशासी प्रशासनिक क्षेत्र मांगने के साथ-साथ इसे तुरंत प्रभाव से लागू कराओ, जमीन के ऊपर नीचे जो कुछ भी है’ उसका मालिकाना हक उस जमीन के मालिक किसान का ही हो।
#हमारा_जूत #सबसे_मजबूत बशर्ते मिलकर इन्हें जूत की नोक पर रखने की दिमागी ताकत होनी चाहिए.
-Hansraj Dhanka


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