संपादकीय

मुस्लिम जस्टिस जिन्होंने शहीद Bhagat Singh को फांसी का फैसला लिखने से पहले अंग्रेजो को सौप दिया इस्तीफा

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जस्टिस सैयद आगा हैदर का जन्म सन 1876 में सहारनपुर के एक संपन्न सैय्यद परिवार में हुआ था सन 1904 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत आरंभ की सन 1925 में लाहौर हाई कोर्ट में जज नियुक्त हुए
“जस्टिस आग़ा हैदर ” यह नाम सहारनपुर के उन जज साहब का था जिन्होंने भगतसिंह और उनके साथियों सुखदेव और राजगुरू को सज़ा से बचाने के लिए गवाहों के बयानों और सुबुतों की बारीकी से पड़ताल की थी मुलज़िमों से जस्टिस आग़ा हैदर साहब की यह हमदर्दी देखते हुए अंग्रेज़ सरकार ने उन्हे इस मुक़दमे की सुनवाई से हटा दिया था

कुछ इतिहासकार लिखते हैं
भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने वाले दो व्यक्ति कौन थे जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ शोभा सिंह ने गवाही दी और दूसरा गवाह था शादी लाल. ईन दोनों को वतन से की गई गद्दारी के लिए अंग्रेज़ों से न सिर्फ सर की उपाधि मिली बल्कि और भी बहुत इनाम मिला था
*शोभा सिंह* को दिल्ली में बेशुमार दौलत अंग्रेजों से मिली थी आज कनौट प्लेस में सर शोभा सिंह स्कूल में कतार लगती है बच्चो को प्रवेश तक नहीं मिलता है।

*शादी लाल* को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली थी आज भी शामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है सर शादीलाल और सर शोभा सिंह, भारतीय जनता कि नजरों मे सदा घृणा के पात्र थे और अब तक हैं। लेकिन शादी लाल को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।

जस्टिस आगा हैदर अंग्रेजी हुकूमत में जज थे जिनपर अंग्रेजी हुकूमत ने अपना दबाव बना कर भगतसिंह को फांसी की सज़ा देने का हुक़्म दिया मगर उन्होंने उस दबाव को नकारते हुए अपना इस्तीफा ही दे दिया जिसके बाद शादीलाल जज ने फांसी लिखकर बहुत नाम कमाया, सैयद आगा हैदर का निधन 5 फरवरी सन 1947 को सहारनपुर में हुआ था जस्टिस आगा हैदर जिन्होंने भगत सिंह को फांसी नहीं लिखी बल्कि अपना इस्तीफा लिख दिया *ऐसे देश भक्त को लाखों सलाम*।
संकलन :अताउल्ला पठाण टूनकी बुलढाणा महाराष्ट्र


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