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मिनटों का उजाला बनाम सदियों का अंधेरा
Pic: Polish illustrator Dawid Planeta |
SD24 News Network
मिनटों का उजाला बनाम सदियों का अंधेरा ।।
शायद चंद्रकांता की दमदमी माई या क्रूर सिंह का डॉयलॉग था – अंधेराsss कायम रहेsss.वर्धा में पढ़ने वाले Subham Jaiswal ने बताया कि यह डॉयलॉग दरअसल शक्तिमान के तमराज किलबिस का था ।
बहरहाल,अंधेरे की कामना कौन करता है ? यह आम इंसान के “मन की बात” नहीं. इसके लिए विशेष किस्म का दिल-दिमाग चाहिए जो किसी प्रयोगशाला में ही तैयार हो सकता है । जिस महान पुरुष ने अंधेरे की कामना करते हुए उजाले की ओर प्रयाण का आवाहन किया है उसका निर्माण किस प्रयोगशाला में हुआ है – आप सब जानते हैं ।
अगर बत्ती बुझाकर दिए जलाने से अंधेरा भागता तो भारत के मन पर जो अंधेरा सदियों से छाया हुआ है वो कब का भाग गया होता । यह देश सालों से दिवाली मनाता आ रहा है लेकिन इसके मन पर छाया अंधेरा कम होने के बजाय और गहराता ही जा रहा है ।
प्रधानमंत्री को बाहर का अंधेरा दिखता है, अंदर का नहीं. और दिखे भी तो कैसे ? वो उसी सामूहिक अंधेरे की पैदाइश हैं जिसके साथ उन्होंने कोरोना-त्रासदी का मिलान किया है । आप अपने-अपने हिस्से का अंधेरा जोड़कर उसे एक इंसान का चोंगा पहना दीजिए, जो बनकर निकलेगा उसका चेहरा प्रधानमंत्री से ज्यादा अलग नहीं होगा ।
मुख्य बात यह है कि इस आवाहन के पीछे एक और बड़े और पीड़ादायी अंधेरे की अधिसूचना है । यह अधिसूचना है अगली दो-तीन पीढ़ियों तक चलने वाले मूल्यों के ह्रास, विखंडन और नैतिक पतन की. यह अधिसूचना है । नागरिकों के समूह को भेड़ के झुंड में तब्दील कर देने की और उनके दिमाग के रिमोट कंट्रोल को किसी और केे हाथ में सौंप देने की ।
याद रखिए – पहले थाली बजवाकर फिर टॉर्च और मोमबत्ती जलाने के बाद यह साबित हो जाएगा कि इस देश के सामूहिक दिमाग को एक दिन, एक वक्त पर, एक साथ नियंत्रित किया जा सकता है ।
वह दिन दूर नहीं जब किसी रात 9 बजे लोकतंत्र की बत्ती बुझा दी जाएगी । एक मनुष्य और भारतीय गणतंत्र के नागरिक होने के नाते आपको जो भी अधिकार मिले हैं वो समाप्त कर दिए जाएंगे । तब आपके पास अपने-अपने घरों की बॉलकनी पर ताली या थाली पीटने के अलावा कोई विकल्प भी नहीं बचेगा ।
-Vishwa Deepak पत्रकार