Connect with us

राष्ट्रिय

भारत में Omicron लहर: हम क्या जानते हैं और क्या करना चाहिए? – डॉ तृप्ति गिलाडा

Published

on

SD24 News Network – भारत में ओमिक्रोन लहर: हम क्या जानते हैं और क्या करना चाहिए?
– डॉ तृप्ति गिलाडा, वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ, मुंबई

ओमिक्रोन (Omicron) कितना संक्रामक है?
कीटाणु की संक्रामकता 2 तथ्यों पर निर्भर होती है कि वह कितनी आसानी से फैलता है और इंसान की रोग-प्रतिरोधक क्षमता से वह कितनी सफलता से बच सकता है। चूँकि ओमिक्रोन कोरोना वाइरस के शिखर पर ‘स्पाइक’ प्रोटीन में अनेक म्यूटेशन हो गए हैं, इस वाइरस की यह दोनों तथ्य प्रभावित होते हैं जिसके कारणवश वह डेल्टा कोरोना वाइरस के मुक़ाबले, 3-5 गुणा अधिक संक्रामक है, और मनुष्य की, वैक्सीन या पूर्व-में हुए संक्रमण के कारण उत्पन्न, प्रतिरोधक क्षमता से बचने में अधिक सक्षम है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर 1.5-3 दिन में ओमिक्रोन से संक्रमित लोगों की संख्या दुगनी हो रही है। अब आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि संक्रमण कितनी रफ़्तार से हमारी आबादी में फैल सकता है। भारत में भी संक्रमित लोगों की संख्या हर 3 दिन दुगनी हो रही है। यदि यही गति रही तो गणतंत्र दिवस तक हो सकता है 4-5 लाख ओमिक्रोन से नए संक्रमित लोग रिपोर्ट हो रहे हों और आगामी 4 हफ़्ते में डेल्टा द्वारा संक्रमित लोगों की अधिकतम संख्या से ओमिक्रोन आगे निकल जाए।

हम क्या कर सकते हैं?

भारत में Omicron लहर: हम क्या जानते हैं और क्या करना चाहिए? - डॉ तृप्ति गिलाडा

सबसे ज़रूरी बात यह है कि ओमिक्रोन कोरोना वाइरस संक्रमण भी वैसे ही फैलता है जैसे कि अन्य कोविड रोग करने वाले कोरोना वाइरस। जो लोग पूरी खुराक कोविड टीका करवा चुके हैं एवं वह लोग जिन्हें कोई भी लक्षण नहीं हैं वह भी संक्रमण को फैला सकते हैं भले ही उन्हें यह पता ही न हो कि वह संक्रमित हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि संक्रमण को रोकने के हमारे सर्वोत्तम तरीक़े जैसे कि सब लोग ठीक से सही मास्क पहने, भौतिक दूरी बना कर रखें, हवादार जगह में रहें आदि – अभी भी कारगर हैं और पहले से भी अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं। इसका यह भी तात्पर्य है कि ऊपरी सतह को साफ़ करने के लिए अत्याधिक ज़ोर देना, उतना ज़रूरी नहीं रह गया। अगले 4-6 हफ़्ते तक हम लोग बड़ी मात्रा में इकट्ठा न हों, बिना सही मास्क ठीक तरह से लगाए किसी से बातचीत करने से बचें, और अनावश्यक यात्रा से बचें जिससे कि संक्रमण के फैलाव थम सके।

ओमिक्रोन कितना गम्भीर है?

इंगलैंड, स्कॉटलैंड, और दक्षिण अफ़्रीका में हुए शोध ने यह पाया है कि कोरोना वाइरस के पूर्व प्रकार की तुलना में ओमिक्रोन से कम गम्भीर रोग होता है, और अस्पताल में भर्ती होने का ख़तरा भी कम होता है (दक्षिण अफ़्रीका के आँकड़ों के अनुसार लगभग 70% कम)। दक्षिण अफ़्रीका में हालाँकि नए ओमिक्रोन संक्रमण की संख्या बहुत तेज गति से वृद्धि हुई परंतु मृत्यु दर में उस रफ़्तार से वृद्धि नहीं हुई। दक्षिण अफ़्रीका के आँकड़ों से यह अनुमान नहीं लगाया जा सकता है कि ओमिक्रोन निश्चित तौर पर कम गम्भीर है। हो सकता है कि ओमिक्रोन से संक्रमित लोग इसलिए कम गम्भीर रोग रिपोर्ट कर रहे हों क्योंकि उन्हें रोग प्रतिरोधकता प्राप्त हो चुकी है – या तो टीकाकरण हो चुका है या फिर पूर्व में कोविड रोग। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ओमिक्रोन उन लोगों में भी कम गम्भीर रोग उत्पन्न कर रहा है जिन्हें न तो कोविड वैक्सीन लगी हो और न ही पूर्व में कोविड हुआ हो। भारत के अनेक शहर में जब कोविड ऐंटीबाडी वाला शोध-सर्वेक्षण किया गया था तो 90% से ऊपर निकली थीं और अब हमारी आबादी के 60% से अधिक पात्र लोग पूरी तरह से टीकाकरण भी करवा चुके हैं – इसलिए हम लोग बहुत सावधानी बरतते हुए यह उम्मीद कर सकते हैं कि संभवतः यह तीसरी लहर पहले जैसा क़हर नहीं ढाएगी। पर जो लोग अभी कोविड रोग प्रतिरोधक नहीं हैं (टीका नहीं हुआ हो और न ही पूर्व में कोविड) उन्हें ओमिक्रोन से संक्रमित होने पर अस्पताल में भर्ती होने का एवं मृत होने का ख़तरा हो सकता है।

हम क्या करें?

जब नए संक्रमित लोगों की संख्या अत्याधिक तेज़ी से बढ़ रही हो तो ‘प्रतिशत’ निकालने से संभवतः सही व्यापक अंदाज़ा न लगे। व्यक्तिगत स्तर पर हो सकता है गम्भीर रोग या मृत्यु होने का ख़तरा ओमिक्रोन संक्रमण में कम हो पर आबादी के स्तर पर गम्भीर रोग और मृत्यु का ख़तरा बड़ा हो सकता है क्योंकि संक्रमित लोगों की सम्भावित संख्या इतनी अधिक होगी। हम अपनी स्वास्थ्य प्रणाली का आगामी दिनों में कितने विवेक से उपयोग करते हैं वह तय करेगा कि मृत्यु दर भी कम रहे।
90% से अधिक ओमिक्रोन से संक्रमित लोगों को सामान्य रोग होने की सम्भावना है जिसका प्रबंधन घर पर किया जा सकता है। यह जानते हुए भी हम लोग देख रहे हैं कि लोग भयभीत हो कर अस्पताल में भर्ती हो रहे हैं। यदि अस्पताल में शैय्या ऐसे मरीज़ों से भरेगी जिन्हें अस्पताल में होना आवश्यक न हो तो जरूरतमंद लोग जिनके लिए अस्पताल में भर्ती होना जीवनरक्षक हो सकता है, वह कहाँ जाएँगे? कुछ ऐसा ही अनुभव हम लोग पूर्व की कोरोना लहर में देख चुके हैं। हमें यह गलती दोहरानी नहीं चाहिए।
राज्य सरकार द्वारा जो सख़्ती की जा रही है वह कोविड के गम्भीर रोग से जूझ रहे लोगों से तय हो, न कि कोरोना से संक्रमित लोगों की कुल संख्या से। ऑक्सिजन की ज़रूरत पर निगरानी रखना, शहर और राज्य स्तर पर गहन देखभाल एकेक (इंटेन्सिव केयर यूनिट) में शैय्या उपलब्ध रखना आदि, महत्वपूर्ण बिंदु रहेंगे जो यह दर्शाएँगे कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली कितनी संकट में है।

टीकाकरण और बूस्टर की क्या भूमिका है?

उभरते हुए नए प्रकार के कोरोना वाइरस से रक्षा करने में कोविड टीकाकरण कितने प्रभावकारी है, यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करने में अनेक महीने लग जाएँगे। पर यदि हम अन्य देशों के आँकड़े देखें जैसे कि इंगलैंड, तो पाएँगे कि कोविड टीके की दो खुराक प्राप्त लोगों का ओमिक्रोन संक्रमण से बहुत ज़्यादा बचाव नहीं हुआ। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि दो खुराक लिए लोगों को टीके ने गम्भीर रोग से बचाया। दक्षिण अफ़्रीका के आँकड़े के अनुसार, कोविड टीके की दो खुराक लिए लोगों को अस्पताल में भर्ती होने का ख़तरा 70% कम था जब कि डेल्टा कोरोना वाइरस से संक्रमित होने पर इन लोगों को अस्पताल में भर्ती होने का ख़तरा 93% कम था। ऐसा संभवतः इसलिए था क्योंकि ओमिक्रोन वाइरस भले ही पहले से मौजूद ऐंटीबाडी से बच गया हो और संक्रमित कर दे, परंतु शक्तिशाली टी-सेल वाली प्रतिरोधक क्षमता से नहीं बच सकेगा जो गम्भीर रोग से बचाती हैं। जो लोग बूस्टर लगवा रहे हैं उनको लक्षण होने का ख़तरा 70% कम है।

हम क्या कर सकते हैं?

बूस्टर खुराक और नए टीके की सरकार द्वारा मंज़ूरी देना स्वागत योग्य निर्णय है। सरकार को टीकाकरण नीति का बिना विलम्ब मूल्यांकन करना चाहिए और कोविशील्ड टीके की दो खुराक के मध्य 16-हफ़्ते की अवधि तो कम कर के 4-8हफ़्ते करने पर विचार करना चाहिए – ऐसा करने से हम लोग २० करोड़ लोगों को तुरंत लाभान्वित कर सकेंगे (जिनमें 2.7करोड़ वरिष्ठ नागरिक शामिल हैं) जिन्होंने अभी तक टीके की सिर्फ़ १ खुराक ली है। वर्तमान में उपयोग हो रही वैक्सीन को वैज्ञानिक रूप से सुधारने की ज़रूरत है जिससे कि ओमिक्रोन और डेल्टा प्रकार के कोरोना वाइरस से हमें वह अधिक कुशलता से बचाएँ।
जो लोग वैक्सीन में विश्वास नहीं रखते हैं वह संक्रमण नियंत्रण के लिए ख़तरा हो सकते हैं – इसीलिए उनको निर्रोत्साहित करने के लिए यात्रा-सम्बन्धी रोकधाम वाली नीति और कोविड के गम्भीर परिणाम होने पर सरकारी खर्च पर इलाज न दिए जाने वाली नीति (जैसे केरल में है) पर विचार करना चाहिए।
अनेक लोगों को यह मिथ्य है कि उन्हें टीका नहीं लेना चाहिए क्योंकि उन्हें पहले से ही रोग हैं जैसे कि हृदय रोग, गुर्दे सम्बंधित रोग, दिमाग़ी रोग या कैन्सर आदि। इस बात पर पुन: ज़ोर देने की ज़रूरत है कि यही वह लोग हैं जिनका टीकाकरण सबसे पहले प्राथमिकता पर होना चाहिए।

ओमिक्रोन कोरोना वाइरस से संक्रमित होने पर क्या मोनो-क्लोनल एंटीबॉडी और डाइरेक्ट एंटी-वाइरल दवा लाभकारी रहेगी?

कोविड महामारी के दौरान इन २ प्रकार की दवाओं ने निरंतर प्रभाव दिखाया है। मोनो-क्लोनल एंटीबॉडी, कृत्रिम रूप से बनायी गयी एंटीबॉडी हैं जो इंजेक्शन द्वारा लगायी जाती हैं, और वाइरस के स्पाइक प्रोटीन पर एक निश्चित स्थान पर लक्ष्य साध्य कर उसे निष्फल करती हैं। दुर्भाग्य से ओमिक्रोन पर इनका नगण्य या शून्य असर रहता है और इसलिए इनका उपयोग नहीं होना चाहिए। इसमें एक अपवाद है जिससे सोटरोविमाब कहते हैं जो प्रभावकारी है पर भारत में फ़िलहाल उपलब्ध नहीं है।
कोविड के चिकित्सकीय प्रबंधन में एंटी-वाइरल दवाओं ने भी असर दिखाया है। हालाँकि रेमेडेसीवीर और हाल ही में पारित मोलनूपिरावीर का ओमिक्रोन पर क्या असर रहेगा, इसके शोध के नतीजे अभी उपलब्ध नहीं हैं। चूँकि अभी संक्रमण फिर बढ़ोतरी पर है इसलिए मोलनूपिरावीर को पारित करने का समाचार हमें आशावादी लगे परंतु चिकित्सकीय शोध के पूरे आँकड़े देखने पर ज्ञात होगा कि यह दवा सम्भावित प्रभाव से कहीं कम प्रभावकारी रही है। इसका प्रभाव सिर्फ़ बिना टीकाकरण करवाए हुए लोगों में ही देखने को मिला है। डेल्टा या ओमिक्रोन से कितना बचाएगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

हम क्या कर सकते हैं?

कोविड महामारी के चिकित्सकीय प्रबंधन में हम लोगों ने अनेक पड़ाव देखे हैं जहां दवाएँ कभी उपयोगी लगी तो फिर अनुपयोगी पायी गयीं। हाइड्रोक्लोरोक्वीन, फ़विपिरावीर, प्लाज़्मा थेरपी, एंटी-बैक्टीरीयल और एंटी-वर्म दवाएँ, आदि इस कड़ी में शामिल रही हैं। अब कोविड महामारी को २ साल हो रहे हैं और समय है कि हमारा चिकित्सकीय देखभाल और प्रबंधन सिर्फ़ वैज्ञानिक आधारशिला पर टिके, और न कि इस पर कि ‘मुझे लगता है कि यह कारगर रहेगी’ या ‘और लोग क्या उपयोग कर रहे हैं’। आख़िरकार हर दवा के साइड-इफ़ेक्ट हो सकते हैं इसीलिए हर दवा का उचित और ज़िम्मेदारी से ही उपयोग होना चाहिए यदि उससे होने वाले लाभ, साइड इफ़ेक्ट से कहीं अधिक महत्व के हों। कोविड के संदर्भ में यह और भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि 90% कोविड रोगी बिना किसी दवा के या सिर्फ़ लक्षण के अनुसार दवाओं के उचित उपयोग से सही होंगे जैसे कि डी-कंजेस्टेंट या पैरासिटमोल। अनेक दवाओं के मिश्रण के उपयोग या महँगे इलाज को बढ़ावा नहीं देना चाहिए।

बच्चों पर ओमिक्रोन का क्या असर रहेगा?

अनेक देशों में इस समय कोरोना की लहर के चलते, चिंताजनक स्तर पर बच्चे अस्पताल में भर्ती हुए हैं, कुछ देशों में तो वयस्कों की तुलना में दुगनी संख्या में बच्चे अस्पताल में भर्ती हैं। इसका एक बड़ा कारण यह हो सकता है कि बच्चों के लिए कोविड टीकाकरण नहीं उपलब्ध रहा है। अस्पताल में भर्ती होने वाले आँकड़े अक्सर सही निष्कर्ष नहीं देते क्योंकि वह अस्पताल में भर्ती सभी बच्चों की कुल संख्या बताते हैं पर यह नहीं स्पष्ट होता कि यह बच्चे कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती हुए या पहले से किसी अन्य कारण से अस्पताल में थे और जाँच में कोरोना पॉज़िटिव पाए गए। कुछ देशों में इसलिए भी अधिक बच्चे अस्पताल में भर्ती थे क्योंकि ठंडी के मौसम में हर साल वहाँ मौसमी वाइरस संक्रमण फैलते हैं और जिन बच्चों को इनका ख़तरा अधिक है उन्हें चिकित्सकीय देखभाल की ज़रूरत रही होगी।
प्रारम्भिक रिपोर्ट तो यही इंगित कर रही हैं कि जैसा वयस्कों में देखने को मिला है कि डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन से गम्भीर रोग नहीं हो रहा है, वैसा ही बच्चों में रहेगा और ओमिक्रोन से कम गम्भीर रोग होगा, और यदि बच्चों के लिए टीकाकरण उपलब्ध होगा तो गम्भीर रोग होने की सम्भावना और कम होगी।

हम क्या कर सकते हैं?

15-18 साल के बच्चों के टीकाकरण शुरू करके हम शीघ्र ही इससे कम उम्र के बच्चों के टीकाकरण को आरम्भ करें ख़ासकर कि उन बच्चों को प्राथमिकता दें जिनको कोविड का ख़तरा अधिक हो जैसे कि जिन्हें दीर्घकालिक श्वास सम्बन्धी रोग हों, कैन्सर का उपचार चल रहा हो, हृदय रोग या गुर्दे सम्बन्धी रोग हों आदि। ऐसा करने से, जिन बच्चों को कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़े उनकी संख्या में गिरावट आएगी।
जब वैज्ञानिक शोध-सर्वे हुआ था कि आबादी में कितने लोगों को एंटीबॉडी हैं तो बच्चों में लगभग वही एंटीबॉडी स्तर निकला जो वयस्कों में था। इसका मतलब साफ़ था कि हम लोगों ने बच्चों को स्कूल तो नहीं जाने दिया परंतु वयसकों के ज़रिए संक्रमण उनतक पहुँचा। इसीलिए स्कूल को पुन: खोलने का निर्णय दुकान और फ़िल्म हाल खोलने के निर्णय के साथ-साथ हो।
ओमिक्रोन जैसे कोरोना वाइरस के नए उभरते प्रकार इस बात का प्रमाण है कि कोविड महामारी का अंत अभी बहुत दूर है और कोविड-उपयुक्त व्यवहार का सख़्ती से अनुपालन करना इंसानी तौर पर सबके लिए और हर समय संभवतः मुमकिन नहीं है। यदि ऐसा न होता तो संक्रमण के फैलाव पर अंकुश लग चुका होता। महामारी का सही मायने में अंत तो तब होगा जब हम बिना मास्क वाले दिन जैसी ज़िंदगी पुन: जी सकेंगे।
ऐसा तभी हो सकता है जब कोविड टीकाकरण हर देश में हर पात्र इंसान के लिए उपलब्ध रहे और लोग टीकाकरण नियमित करवाएँ। कोई भी देश कोविड महामारी से अकेले नहीं लड़ कर विजयी हो सकता है। जब तक हम सब वैश्विक आबादी स्तर पर कोविड को मात नहीं देते तब तक के लिए यही श्रेयस्कर है कि फ़िलहाल हम लोग विवेकानुसार सब वह कदम उठाएँ जिससे कि कोविड की वर्तमान लहर पर लगाम लग सके।

डॉ तृप्ति गिलाडा

(डॉ तृप्ति गिलाडा मुंबई की वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ हैं और एचआईवी, कोविड जैसे संक्रामक रोगों के नियंत्रण में वह निरंतर चिकित्सकीय नेतृत्व एवं सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। वह सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की स्तम्भ लेखिका भी हैं)
Continue Reading
Advertisement
2 Comments

2 Comments

  1. Track phone

    February 10, 2024 at 8:07 pm

    Mobile Phone Monitoring App – hidden tracking app that secretly records location, SMS, call audio, WhatsApp, Facebook, Viber, camera, internet activity. Monitor everything that happens in mobile phone, and track phone anytime, anywhere.

  2. Phone Tracker

    February 8, 2024 at 6:25 am

    How to track the location of the other person’s phone without their knowledge? You will be able to track and monitor text messages, phone calls, location history and much more. Free Remote Tracking and Recording of Husband’s Phone Cell Phone Spy. Best Apps to Download for Free to Spy on Another Phone.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *