राष्ट्रिय
Modi के तौर तरीकों से संघ में बेबस बेचैनी । सीधे संवाद बंद भागवत चिंतातुर
SD24 News Network : मोदी के तौर तरीकों से संघ में बेबस बेचैनी..!
० ट्विटर पर संघ सुप्रीमो और RSSorg तक को फॉलो नहीं करते मोदी
० सात साल में सिर्फ़ एक बार भागवत से समन्वय बैठक में मिले प्रधानमंत्री
० संघ का सीधे प्रधानमंत्री से संवाद का सेतु टूट चुका है, अब अमित शाह हैं माध्यम
० प्रधानमंत्री बनने के बाद आजतक न केशव-कुंज गए और न नागपुर में हेडगेवार-स्मृति
० डॉ_राकेश_पाठक
भारतीय जनता पार्टी का मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के तौर तरीकों को लेकर भारी बेचैन है। कोरोना से निपटने में ब्रांड मोदी की नाकामी से संघ को अपने एजेंडे के दरकने की चिंता है लेकिन महाकाय मोदी के सामने संघ बेबस अनुभव कर रहा है।
संघ को लेकर मोदी के रवैया के अंदाज़ इसी बात से लगाया जा सकता है कि मोदी सात साल में न कभी संघ मुख्यालय गए और न सोशल मीडिया पर सर संघ चालक मोहन भागवत को फॉलो करते हैं।
सिर्फ़ एक बार मोहन भागवत से मिले मोदी
कुल सात साल के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी को दूसरी बार प्रधानमंत्री बने दो साल पूरे हो गए हैं। इस दूसरी पारी में मोदी अपने ‘एक रूप महास्वरूप’ के साथ अलग ही तेवर में हैं जिसे लेकर संघ बेचैन है।
वैसे मोदी ने पहले कार्यकाल से ही संघ की अनदेखी शुरू कर दी थी।प्रधानमंत्री बनने के बाद वे सिर्फ़ एक बार ही संघ प्रमुख सरसंघचालक मोहन भागवत से मिले हैं।
यह मुलाक़ात 4 सितंबर 2015 को दिल्ली में मध्यांचल(मप्र भवन) में हुई थी। वहां संघ और भाजपा की समन्वय समिति की बैठक में मोदी पहली और आख़िरी बार शामिल हुए।
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी एक बार भी न तो दिल्ली में संघ कार्यालय ‘केशव-कुंज’ गये और न नागपुर में रेशमबाग स्थित मुख्यालय ‘हेडगेवार-भवन’।
मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद अब तक चार बार नागपुर हो आये हैं लेकिन संघ मुख्यालय तो दूर ‘हेडगेवार स्मृति’ तक में मत्था टेकने नहीं गए।
मोदी और भागवत की सार्वजनिक भेंट अंतिम बार अयोध्या में राममंदिर के भूमि पूजन के समय हुई थी। यह एकमात्र अवसर था जब मोदी और भागवत एक साथ मंच पर थे। तब भी दोनों के बीच अलग से कोई चर्चा नहीं हुई। पूजन के समय औपचारिक राम जुहार ही हुई।
उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक़ संघ चाहता था कि अयोध्या में कार्यक्रम के बाद सर संघ चालक से प्रथक से भेंट का प्रस्ताव पीएमओ से आये। इस बारे में संकेत भी पहुंचाया गया कि संघ प्रमुख की ओर से ऐसा आग्रह किया जाना उचित नहीं होगा इसलिये प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से इस भेंट का आग्रह आना चाहिये। लेकिन इस पर पीएमओ ने गौर तक नहीं किया।
भागवत और RSS को फॉलो नहीं करते मोदी
संघ के एक उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि मोदी की संघ के प्रति बेरुखी से नागपुर हैरान है। जिस संघ ने उन्हें पहले गुजरात की गद्दी दिलवाई और फिर दिल्ली का ताज पहनने में एड़ी चोटी का जोर लगाया उस संघ के सिरमौर तक को मोदी फॉलो नहीं करते।
नरेंद्र मोदी अपने ट्विटर हैंडल पर दो हजार तीन सौ अड़तालीस लोगों को फॉलो करते हैं लेकिन उसमें मोहन भागवत का नाम नहीं है।
हद तो ये है कि मोदी संघ के आधिकारिक ट्विटर हैंडल rss@org तक को फॉलो नहीं किया जाता। संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा- आश्चर्य है कि मोदी जी तैमूर के नाना जैसे हैंडल तक को फॉलो करते हैं लेकिन संघ प्रमुख और संघ के अधिकृत हैंडल को फॉलो करना ज़रूरी नहीं समझते..!
यह हक़ीक़त भी है कि मोदी जिन्हें फॉलो करते हैं उनमें कई ऐसे प्रोफाइल हैं जो नफ़रत फैलाने वाले ट्वीट्स के लिये पहचाने जाते हैं।
संघ का सीधे प्रधानमंत्री से संवाद ख़त्म..
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद संघ और सरकार के मुखिया के बीच का सेतु टूट गया है। अटलबिहारी बाजपेयी के युग में संघ और प्रधानमंत्री के बीच संघ के तत्कालीन सह सर कार्यवाह सुरेश सोनी सेतु का काम करते थे। राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय या नीतिगत विषयों पर संघ की भावनाओं को सोनी सीधे प्रधानमंत्री को बताते थे।
अब यह दायित्व सह सर कार्यवाह कृष्णगोपाल के पास है लेकिन व्यवस्था बदल गयी है। संघ को कह दिया गया है कि आप अपनी बात अमित भाई को बता दीजिये।
अब संघ की बात कृष्णगोपाल प्रधानमंत्री के बजाय गृह मंत्री अमित शाह तक पहुंचाते हैं। फिर वो प्रधानमंत्री को अवगत कराते हैं और वापसी इसी चैनल से प्रधानमंत्री अपने विचार संघ तक पहुंचाते हैं।
यह चैनल भी गाहे बगाहे ही संवाद का माध्यम बचा है।इसकी निरंतरता लगभग समाप्त है।
सेहत की दुआ और न श्रद्धांजलि,न सेवा का ज़िक्र
संघ के भीतर इस बात पर भी बहुत बेचैनी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के वरिष्ठ लोगों तक के अस्वस्थ होने पर सोशल मीडिया पर आमतौर पर कोई शुभ कामना सन्देश नहीं देते। मुख्यमंत्रीयों, खिलाड़ियों,अभिनेताओं से लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री तक की सेहत के लिये दुआ करने वाले मोदी संघ के बड़े से बड़े पदाधिकारी के बीमार पड़ने पर ट्वीट नहीं करते।
संघ के अनेक जिम्मेदार कार्यकर्ता कोरोना के कारण दिवंगत हो चुके हैं लेकिन मोदी के ट्विटर हैंडल पर उनके लिये शोक-संवेदना के दो शब्द नहीं दिखते।
संघ कोरोना काल में लोगों की सेवा भी कर रहा है लेकिन प्रधानमंत्री ने कभी किसी भाषण में इस सेवाकार्य का उल्लेख किया और न ‘मन की बात’ में।
पहली बार सरकार, प्रशासन को लापरवाह कहा…
इन्हीं सब कारणों के चलते संघ को कट्टर हिंदुत्व के कोर एजेंडे पर चलते मोदी जितना पहली पारी में लुभा रहे थे उतना अब नहीं। ख़ासतौर पर महामारी के दौर में उनके तौर तरीकों से खाये अघाये मध्यवर्ग, सवर्ण जातियों की भैरायी हुई भीड़ के मोहभंग से संघ चिंतित है। लंबे लॉक डाउन से संघ और बीजेपी के परंपरागत समर्थक व्यापारी वर्ग की क़मर टूट रही है सो वो भी छिटक रहा है। संघ को चिंता हो रही है कि सरकार की नाकामी का खामियाजा अंततः संघ को न भुगतना पड़े। उसे अपना आधार खिसकने की चिंता खाये जा रही है।
यही वजह है कि संघ प्रमुख ने दो दिन पहले अपनी बेचैनी का इज़हार भी कर दिया है। संघ के कार्यक्रम ‘पॉजिटिविटी अनलिमिटेड’ के समापन सत्र में मोहन भागवत ने साफ कहा- ‘पहली लहर के बाद सरकार,प्रशासन और जनता सब लापरवाह हो गए थे।इसी वजह से संकट इतना बड़ा हो गया है।’
संघ सुप्रीमो का सरकार को पहले नंबर पर लापरवाह बताना उसी बेचैनी का सबूत है जो मोदी के रवैये से उपजी है।
इतना तय है कि मोदी के ‘लार्जन देन लाइफ़’ कद से संघ भीतर ही भीतर बेचैन तो है लेकिन बेबस भी है। फिलहाल वह चाह कर भी मोदी का कुछ बिगाड़ने की स्थिति में नहीं है।
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फोटो: गूगल से साभार।
Some software will detect the screen recording information and cannot take a screenshot of the mobile phone. In this case, remote monitoring can be used to view the screen content of another mobile phone. https://www.xtmove.com/how-view-the-screen-content-another-phone/