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‘न्यू इंडिया’ सबसे बड़े लोकतंत्र को अब अपने कानून और न्याय-व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा ?
फाइल फोटो |
SD24 News Network
‘न्यू इंडिया’ सबसे बड़े लोकतंत्र को अब अपने कानून और न्याय-व्यवस्था पर भरोसा नहीं रहा ?
‘न्यू इंडिया’ की यह न्याय-व्यवस्था विकास दुबे से भी भयानक है। क्या अब भारत में ऐसे ही न्याय होगा? क्या विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र को अब अपने कानून और न्याय-व्यवस्था पर भरोसा नहीं रह गया है?
क्या भारत का समूचा तंत्र अब मॉब जस्टिस करेगा? क्या दुर्दांत अपराधियों को कोर्ट से महीने-पंद्रह दिन में सजा नहीं दिलवाई जा सकती? जिन नेताओं ने ऐसे अपराधी को दशकों से संरक्षण दिया हुआ था, क्या उनका भी एनकाउंटर होगा? क्या विकास दुबे का सियासी कनेक्शन छुपाने के लिए उसे मारा गया? ये पोस्ट रात को लिखी थी, लेकिन कुछ सोचकर पोस्ट नहीं की। परंतु अब सुबह खबर मिल रही है कि विकास दुबे “मुठभेड़” में मारा गया।
उज्जैन में जो भी हुआ, इतना तो तय था कि वह गिरफ्तारी नहीं थी। दुबे ने आत्मसमर्पण किया था। उसके एक साथी को भी पकड़कर मार दिया गया। थ्योरी वही है। गाड़ी खराब हुई और मुठभेड़ हुई। क्या भारत का पुलिस तंत्र इतना अक्षम हो चुका है कि वह एक अपराधी नहीं संभाल सकता? जिसने आत्मसमर्पण किया वह मुठभेड़ क्यों करेगा? विकास दुबे का मरना ही उचित था, लेकिन बेहतर होता कि उसे कानून मारता। क्या हमारे देश में न्यायपालिका खत्म हो चुकी है? क्या हर अपराधी न्यायालय के बाहर मारा जाएगा?
न्यायालय के बाहर हर मौत की सजा न्याय नहीं है, गैर-न्यायिक हत्या है। ‘ठोंक देने’ का कानून मध्यकाल में भी बर्बर माना जाता था। आज तो है ही। यूपी में बड़ी पुरानी कहावत है- खेत खाये गदहा, मार खाए जुलहा। यह तो न्याय नहीं हुआ। कोई भी प्रशासक अगर कानून का शासन नहीं चला सकता तो वह किसी लायक नहीं हैं। धड़ाधड़ हत्याएं करना न्याय नहीं है।
कल उसके बेटे और पत्नी के नाम पर फ़ोटो वायरल हुई। उसके पहले उसके घर और गाड़ी तोड़ने की फ़ोटो वायरल हुई। उसके पांच साथी भी मुठभेड़ में मारे गए। सरकार अपने कृत्यों से लोगों को विवश कर रही है कि वे एक दुर्दांत अपराधी के पक्ष में तर्क दें। किसी व्यक्ति के क्रूरतम अपराध के लिए आप उसका घर गिरा दें, गाड़ी कुचल दें, उसके पत्नी और बच्चों को प्रताड़ित करें, यह न्यायिक प्रक्रिया नहीं है।
विकास दुबे ने हमारे आठ सिपाहियों को मारा था। उसके प्रति किसी को कोई सहानुभूति नहीं हो सकती। लेकिन अपराधियों को मारने के लिए कानून को क्यों मार दिया जा रहा है? न्याय प्रक्रिया में देर होती है तो न्यायिक सुधार करना था। वह करने की कूवत किसी में नहीं। कल को आपके ऊपर कोई आरोप लगे और आपको गोली मार दी जाए? मुझे मालूम है कि कई लोग इस “क्रूरतम कृत्य” का समर्थन करेंगे।
-लेखक कृष्ण कांत स्वतंत्र पत्रकार है