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राजनीतिक षड्यंत्रों से तंग आकर PCS अधिकारी मणि मंजरी की आत्महत्या

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राजनीतिक षड्यंत्रों से तंग आकर PCS अधिकारी मणि मंजरी की आत्महत्या
वो अधिशासी अधिकारी के पद पर नियुक्त थीं। उनके शव के पास से एक सुसाइड नोट मिला है। उसमें उन्होंने लिखा है कि वह दिल्ली, मुंबई से बचकर बलिया चली आईं। लेकिन यहां भी उन्हें रणनीति के तहत फंसाया गया है। इन षड्यंत्रों से वह काफ़ी दुखी हैं। उनके पास आत्महत्या करने के सिवाय अब कोई विकल्प नहीं है।



हद है! पीसीएस ऑफ़िसर, आत्महत्या! क्या यही सफलता का मतलब होता है! क्या इसी दिन की ख़ातिर लाखों छात्र-छात्राएं रात-रातभर, जाग-जागकर, घिस-घिसकर, मर-मरकर तैयारी करते हैं! आप इंटरनेट पर जाकर सर्च तो करिए, ऐसे उदाहरणों की भरमार पड़ी है। हद है!
मैं बारंबार कहता रहता हूं, जीवन में सफलता-असफलता जैसी कोई चीज़ नहीं होती। ये सिर्फ़ एक तरह की काल्पनिक रेखाएं हैं, जिन्हें मूढ़ मनुष्यों द्वारा बचपन से ही मन की गहराई में ठूस दिया जाता है। उन्हें रेस में दौड़ा दिया जाता है। जबकि जीवन में सफल-असफल कोई नहीं हुआ है। सबको एकदिन धूल में मिलना है। आप 30 साल में सुसाइड करके मरें या 80 साल के बूढ़े होकर मरें, मिलना धूल में ही है।



फिर इस बेहद छोटे व अनिश्चित जीवन में क्या सफलता, क्या असफलता, कौन छोटा, कौन बड़ा, कौन ऊंच, कौन नीच, कौन अपना, कौन पराया, क्या जीत, क्या हार…! ये सब फ़ालतू बातें हैं।
जीवन का सबसे बड़ा सम्मान इसे ‘अपनी खुशी की ख़ातिर’ जीना है। दुनिया आपको क्या कहती है, आपको किस नज़र से देखती है, लोग खपके बारे में क्या सोचते हैं, दुनिया आपको क्या लक्ष्य पकड़ाकर कंपटीशन में दौड़ाने का प्रयास करती है, ऐसी तमाम बातों को ठेंगे पर रखकर जियो। अन्यथा जीवनभर बोझिल रहोगो। ज़िंदगी बहुत छोटी है। इस छोटे से जीवन में दूसरों (मूर्ख़ों व अज्ञानायों) की खोखली व औपचारिक अपेक्षाओं पर ख़रा उतरने का ठेका मत लें।



आप इंटरनेट पर सर्च करिए। आपको आईएएस, आईपीएस, आईएफ़एस, आईआरएस, आईईएस, आईआईटी, आईआईएम, एम्स, जज़, प्रोफेसर, प्रवक्ता, प्रधानाध्यापक, स्पोर्ट्समेन, ऐक्टर, ऐक्ट्रेस… इत्यादि सभी दुनिया में सुसाइड केसेज़ की लंबी फ़ेहरिस्त मिल जाएगी।
यहां सफलता-असफलता एक भ्रम है। हर जीव धर्ती पर पैदा होता है। भोजन करता है। बड़ा होता है। सोता है। खाता है। पचाता है। प्रजनन करता है। बूढ़ा होता है। और फिर मर जाता है। यही जीवन की मूल ज़रूरतें व प्राकृतिक प्रक्रियाएं हैं। हर जीव इनसे ही बंधा है।



बाकी सारी चीजें व पैमानों को मनुष्यों ने खुद पैदा करके जीवन को जटिल बनाया है। उन्हीं पैमानों में सफलता-असफलता की झूठी कहानियां, सफलता नामक काल्पनिक रेखा को हासिल करने के बाद के ग्लैमर को प्रचारित कर-करके धरती पर मूढ़ों के बीच एक अंधी रेस पैदा कर दी गई है। इसमें घर, परिवार, रिश्तेदार, समाज, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, शिक्षक, फ़िल्मों व टेलीविज़न का पूरा-पूरा भरपूर योगदान है।
हर साल न जाने कितने मासूम कैंडीडेट बेचारे तो रेस के बीच में ही ज़िंदगी से हौसला हार जाते हैं। सुसाइड कर लेते हैं। और कई तो कथित सफलता हासिल करने के बाद सुसाइड कर लेते हैं।



इस तरह से मूढ़ मनुष्य जाति आजतक जीवन का सम्मान करना नहीं सीख पाई। हमें पीढ़ियों से सब सिखाया गया लेकिन जीना नहीं सिखाया गया…
आपने ऊर्जा व संभावनाओं से भरपूर इस उम्र में ये सही निर्णय नहीं लिया मैम…
सौजन्य-Ajay Singh, नई दिल्ली

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