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अब 23 सरकारी कंपनियों की लगेगी बोली, बिक्री का ज़बरदस्त स्वागत -रविश कुमार

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बोली लगेगी 23 सरकारी कंपनियों की, निजीकरण का ज़बरदस्त स्वागत। 
निजीकरण का स्कूली नाम विनिवेश है। विनिवेश बेचने जैसा ग़ैर ज़िम्मेदार शब्द नहीं है। ख़ुद को काम करने वाली सरकार कहती है कि वह 23 सरकारी कंपनियों को बेचना चाहती है ताकि उनका उत्पादन बढ़ सके। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने कहा है कि बिकने जा रही कंपनी का नाम अभी नहीं बताएँगी। फ़ैसला हो जाने के बाद बताएँगी। हिन्दू अख़बार की रिपोर्ट में लिखा है कि सरकार को विनिवेश के ज़रिए दो लाख करोड़ चाहिए। 
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में काम करने वालों के लिए यह ख़ुशख़बरी है। उनका प्रदर्शन बेहतर होगा और वे प्राइवेट हो सकेंगे। जिस तरह से रेलवे के निजीकरण की घोषणाओं का स्वागत हुआ है उससे सरकार का मनोबल बढ़ा होगा। आप रेलमंत्री का ट्विटर हैंडल देख लें। पहले निजीकरण का नाम नहीं ले पाते थे लेकिन अब धड़ाधड़ ले रहे हैं। जो बताता है कि सरकार ने अपने फ़ैसलों के प्रति सहमति प्राप्त की है। हाँ ज़रूर कुछ लोगों ने विरोध किया है मगर व्यापक स्तर पर देखें तो वह विरोध के लिए विरोध जैसा था। जो भी दो चार लोग विरोध करेंगे उनके व्हाट्स एप में मीम की सप्लाई बढ़ानी होगी ताकि वे मीम के नशे में खो जाएँ। नेहरू वाला मीम ज़रूर होना चाहिए। 
मोदी सरकार की यही ख़ूबी है। उनकी समर्थक जनता हर फ़ैसला का समर्थन करती है। वरना 23 सरकारी कंपनियों के विनिवेश का फ़ैसला हंगामा मचा सकता था। अब ऐसी आशंका बीते दिनों की बात हो गई है। सरकार की दूसरी खूबी है कि अपने फ़ैसले वापस नहीं लेती है। सार्वजनिक क्षेत्र कंपनियों में भी मोदी समर्थक कम नहीं होंगे। वे ख़ुशी से झूम रहे होंगे। बल्कि समर्थक लोगों को ही इस फ़ैसले के समर्थन 
में स्वागत मार्च निकालना चाहिए ताकि एक संदेश जाए कि ये वो जनता नहीं है जो सरकार के फ़ैसले पर संदेह करती थी। जिन सरकारी कर्मचारियों ने भक्ति में छह साल गुज़ारे हैं उनकी प्रार्थना अब सुनी गई है। उनके ईष्ट की निगाह अब पड़ी है। सरकारी कंपनी बेचने का फ़ैसला वाक़ई गुलाब की ख़ुश्बू की तरह है। कंपनियों को बेचने में मोदी सरकार से देर हो गई। वरना यहाँ काम करने वाले समर्थकों को भक्ति का और समय मिल गया होता। बहुत पहले नौकरी से मुक्ति मिल गई होती।
आलोचकों को भी अपना नज़रिया बदलने की ज़रूरत है। रही बात विपक्षी दलों के विरोध की तो उन्हें सुनता कौन है। जिन कर्मचारियों के लिए बोलेंगे वही उनका साथ नहीं देंगे। अत: विपक्ष को सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिए। कर्मचारियों की तरह सरकार के फ़ैसले का स्वागत करना चाहिए। वैसे भी मंदिर के शिलान्यास के बाद विपक्षी दलों का रहा सहा जन समर्थन चला जाएगा। अब वे निजीकरण का विरोध करेंगे तो ज़ीरो हो जाएगा। मेरी राय में उन्हें जनता के बीच वोट प्राप्त किए बग़ैर रहना है तो निजीकरण का स्वागत करें। 
आत्मनिर्भर भारत बनने वाला है। प्राइवेट सेक्टर के विस्तार से आत्मनिर्भर बनेगा। इसलिए सरकारी कंपनी बेची जा रही है 
ताकि दूसरे भारतीयों को इन्हें चला कर आत्मनिर्भर होने का मौक़ा मिल सके। कितना सुंदर फ़ैसला है। ज़रूर ये कंपनियाँ अच्छी होंगी तभी तो बिक रही हैं। नई भर्तियाँ नहीं होंगी और पुराने लोग निकाले जाएँगे। वरना जो इन कंपनियों को ख़रीदेगा वो कभी आत्मनिर्भर भारत नहीं बनेगा।
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