राष्ट्रिय
LockDown 3 का ठीकरा भी मुसलमानों पर फोड़ने का हो रहा प्लान – सावधान
LockDown 3 का ठीकरा भी मुसलमानों पर फोड़ने का हो रहा प्लान – सावधान
तबलीगी जमात का फर्जी मामला उठाकर प्रवासी मजदूरों और शहरी गरीबों की भुखमरी का मामला एक महीने के लिए टाला गया । लेकिन ये समस्याएं इतनी बड़ी थीं, कि उन्हें अनंत काल तक टाला नहीं जा सकता था । आज ये मामले फिर से सतह पर आ गए हैं । देखते हैं कि इस बार हेडलाइन मैनेजमेंट और इंप्रेशन मैनेजमेंट कैसे होता है?
-Dilip C Mandal .
अगला टारगेट हर बार की तरह फिर मुस्लिमों को ही बनाया जा सकता है । जैसे हालात बता रहे हैं कि कोशिश जामिया मिल्लिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, मदारिस ए इस्लाम मतलब मदरसे या ईद की खरीदी करता आम मुसलमान हो सकते हैं । इसलिए सावधान रहें, सतर्क रहें !! अपने घरों में ही रहें, लॉक डाउन का पालन करें । ये ईद भी गर ना मना सकें तो हम क्या जज़्बों में हो खुलूस तो ईदें हज़ार हैं । 100% भी छुट मिले तो भीड़ बनकर खरीदारी ना करे, अपने साथ साथ कौम को बदनाम करने से बचे, यही वक्त की मांग है.
-Imran Ahmed
कोरोना वायरस पर तब्लीगी जमात के बहाने जिस तरह इस्लामोफोबिक मीडिया ने शब्दों का चयन करके मुसलमानों पर हमला बोला है वह बता रहा है, कि भारतीय मीडिया की नज़र में मुसलमान सिर्फ ‘अपराधी’ है। मैं पिछले दस वर्षों से मीडिया की इस घृणित मानसिकता के खिलाफ अपने स्तर पर लिखता, आवाज़ उठाता रहा हूं, मीडिया ने एक बार भी मुझे गलत साबित नहीं किया, बल्कि मेरे हर एक संदेह पर सच होने की मुहर लगाई है। क्या शर्मनाक और कुछ हो सकता है कि मीडिया द्वारा कोरोना पीड़ित को (अगर वह मुसलमान है तो) उसे कोरोना बम कहा जाए? कोरोना महामारी को कोरना जिहाद कहा जाए? मीडिया ने एक मानसिकता विशेष को मुसलमानों पर हमला करने, उनका संहार करने के लिए लगातार उकसाया है। जिहाद शब्द क्या है? उसका महत्तव क्या है? इसे मनघडंत तरीक़े से बदनाम किया गया है। बहुसंख्यक वर्ग के एक बड़े तबके को शब्दों के जाल में उलझाया गया, मिसाल के तौर पर अगर मुस्लिम लड़का किसी गैर मुस्लिम लडकी से शादी करता है तो वह ‘लव जिहाद’ है, लेकिन हिन्दू लड़का किसी मुस्लिम लड़की से शादी करता है तो वह ‘प्रेम विवाह’ है। पाकिस्तान से आया हुआ हिन्दू भारतीय मीडिया के लिए शरणार्थी है लेकिन अपने ही देश में रहने वाला मुसलमान ‘घुसपैठिया’ है।
अगर कोई गैरमुस्लिम इस्लाम धर्म अपनाता है तो वह धर्मपरिवर्तन है लेकिन अगर कोई गैर हिन्दू ‘हिन्दू धर्म’ अपनाता है तो वह ‘घर वापसी’ है। अगर दुश्मन देश के लिए कार्य करने के आरोप में कोई मुसलमान गिरफ्तार होता है तो वह आतंकी, लश्कर का मास्टरमाईंड, ISI ऐजेंट माना जाता है, लेकिन जब कोई देवेन्द्र सिंह या ध्रुव सक्सेना इन्हीं तमाम आरोप में दबौचा जाता है तो उसे ‘हनी ट्रेप’ कहा जाता है। लाॅकडाउन के कारण मंदिरो में रहने वाले श्रद्धालू फंसे हुए हैं, लेकिन मस्जिदों में गए विदेशी जमाती मस्जिद में ‘छिपकर कोरोना बम बन रहे हैं, और कोरोना जिहाद कर रहे हैं। मीडिया की यह शब्दावली सिर्फ इस्लामोफोबिक नहीं है बल्कि मीडिया के अंदर उस मानसिकता का दबदबा है जो पूरी तरह मुसलमानों के खिलाफ है। बौद्धिक आतंकियों ने इसी शब्द जाल में लोगों को फंसा कर उन्हें मुसलमानों से नफरत करने के लिए तैयार किया है। कोरोना के खतरे के मद्देनजर सरकार द्वारा जो लाॅकडाउन किया गया है, उस लाॅकडाउन में हजारों मुसलमान, सैकड़ों मुस्लिम संगठन गरीब और मजबूर लोगों की मदद कर रहे हैं। वे उन्हें राशन पहुंचा रहे हैं, खाने की किट दे रहे हैं और वे तमाम जिम्मेदारियां पूरी कर रहे हैं जिन्हें पूरा करना सरकार का काम था, सरकार नाकाम हुई तो मुस्लिम समाज के लोगों द्वारा जिम्मेदारी अदा की जा रही है। लेकिन मुस्लिम विरोधी, इस्लामोफोबिक मीडिया के लिए यह ख़बर ही नही है।
ख़बर है! तो सिर्फ निज़ामुद्दीन मरकज़, विदेश से आए जमाती, मरकज़ में ‘छिपे’ मुसलमान, जरा सोचिए जिस मरकज़ की एक दीवार पुलिस स्टेशन से लगती हो वहां लोग ‘छिपे’ थे और पुलिस को इसकी ख़बर नहीं थी? सरकार को इसकी ख़बर नहीं थी? जब पूरा सिस्टम और मीडिया ही घृणा में डूबा हो तब ये सवाल कौन उठाएगा? तब उन मुस्लिम संगठनों, मुस्लिम नौजवानों द्वारा की जाने वाली समाज सेवा भी अपने मायने खो देती है। इसीलिए बेशर्मी के साथ ‘कोरोना जिहाद’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए जा रहे हैं। ताकि इस समाज को लोग ‘विलेन’ के तौर पर देखना शुरू कर दें, इससे नफरत करें, फिर उस नफरत का माॅबलिंचिंग और दंगे के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। मुस्लिम विरोधी मीडिया ने हर मुद्दे में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का एंगल तलाश कर लिया है, दिल्ली दंगों का दोष ताहिर हुसैन पर मढा गया, अब कोरोना का ठीकरा तब्लीगी जमात पर फोडा जा रहा है। सवाल मीडिया से नही है, सवाल मीडिया की इस मुस्लिम विरोधी मानसिकता से भी नही है। सवाल है मुसलमानों के मठाधीशों से, कि वे इस दुष्प्रचार से निपटने के लिए क्या कर रहे हैं? बंद कमरे में कांफ्रेंस, या फिर ‘सब ठीक हो जाएगा’ जैसी झूठी तसल्लियों के अलावा भी कुछ कर रहे हैं? नहीं….मुसलमानों के मठाधीशों को समझना होगा कि उनके खिलाफ सूचना युद्ध चल रहा है, जिसका काउंटर भी सूचना ही है। लिहाजा ऐसे पत्रकारों को प्रोत्साहित किया जाए जो इस दुष्प्रचार को विफल बना सकें, क्या ऐसा संभव नहीं? मठाधीशों को चाहिए कि यदि वे सचमुच ही इस समाज का भला चाहते हैं तो नई चुनौतियों का मुकाबला नई तकनीक से करें, साथ ही यह कहना बंद करें ‘अल्लाह सब देख रहा है’। दरअस्ल यह अपने नाकारेपन को छिपाने का अच्छा बहाना है। बेशक अल्लाह देख रहा है, अल्लाह यह भी देख रहा है कि भारत के मुस्लिम मठाधीश कितने नाकारा हैं।
-वासिम अकरम त्यागी