अजब गज़ब
American pilot ने कुबूला इस्लाम, बोली इस्लाम आजादी वाला मजहब है
SD24 News Network
एक मुस्लिम पायलट (Muslim pilot) होने के नाते मैं दुनिया को दिखाना चाहती हूं कि इस्लाम गुलामी और उत्त्पीडऩ का मजहब नहीं है जैसा कि कई लोग सोचते हैं और ना ही इस्लाम महिलाओं के कैरियर बनाने में बाधक है। इस सबके विपरीत आज मैं जिस मुकाम पर हूं, अल्लाह ही की मदद और करम से हूं।
मेरा नाम आयशा जिबरील अलेक्जेंडर है। रोमन कैथोलिक (Roman catholic) परिवार, स्कूल और यूनिवर्सिटी (School and university) में मेरी परवरिश और शिक्षा-दीक्षा हुई। धर्म में शुरू से ही मेरी दिलचस्पी रही है और मैं अक्सर कैथोलिक मत के धर्मगुरुओं से सवाल करती रहती थी। लेकिन जब-जब मैंने ईसाईयत में ट्रिनिटी (Trinity in Christianity) (तीन खुदा) पर सवाल खड़ा किया तो मुझे स्कूल की नन हर बार यही जवाब देती थीं कि इस मामले में सवाल करके तुम पाप कर रही हो और तुम्हें बिना कोई सवाल किए अपनी आस्था बनाए रखनी चाहिए। मैं इस तरह के सवाल करने से डरने लगी और इसी के चलते मैं इसी आस्था और विश्वास के बीच बढ़ी हुई।
सन् 2001 में इस्लाम से मेरा पहली बार सामना हुआ जब मैंंने एक मुस्लिम मालिक की कैनेडियन कंपनी (Canadian company) में काम करना शुरू किया। यहां इस्लाम से मेरा पहला परिचय हुआ। लेकिन मैं युवा थी और काम और कैरियर के प्रति पूरी तरह समर्पित थी, इस वजह से मैें धर्म से जुड़े सवालों को नजरअंदाज करते हुए अपना पूरा ध्यान अपने कैरियर (Carrier) को बनाने में देने लगी। परिवार में मेरी 61 year old mother and 93 year old grandmother। मेरा परिवार कोलम्बिया से यहां आकर बसा था, मैं इस परिवार की जिम्मेदारी निभाने में जुट गई। इन दोनों महिलाओं ने मुझे Love and respect for god करना सिखाया। इस्लाम की ओर मेरी यात्रा इन महिलाओं की इस शिक्षा के साथ शुरू हुई कि मैं बिना ईश्वर पर यकीन किए कुछ नहीं कर सकती। उन्होंने मुझे ईश्वर का सम्मान करने की शिक्षा दी।
मेरी 2003 में शादी हुई। बदकिस्मती से इस शादी ने मुझे घरेलू हिंसा का शिकार बना दिया। लेकिन मेंरे इस दुखद वक्त के बीच मुझे एक प्यारा सा बेटा हुआ जो अभी आठ साल का है। मेरा पति ईश्वर पर यकीन नहीं रखता था और वह अपनी इच्छाओं के मुताबिक अपनी जिंदगी गुजारा करता था। उसने मुझे भी ईश्वर, यहां तक की ईसाईयत से भी दूर ही रखा। यह मेरी जिंदगी का सबसे Sad times था लेकिन 2005 में एक दिन मैं अपनी मां की मदद से इस मुश्किलभरे दौर से बाहर निकल आई, मैंने अपने पति को छोड़कर अपने पुत्र और मां के साथ जिंदगी को आगे बढ़ाया। मैें अपना अच्छा कैरियर (Carrier) बनाने के लिए कठिन परिश्रम में जुट गई क्योंकि अब परिवार का पूरा दारोमदार मुझ पर ही था।