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दिए हिन्दू होने के सबूत, तब ज़िंदा बचे पत्रकार सुनील का मुस्लिमो ने किया मेडिकल

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हिन्दी के युवा कवि और जुझारू पत्रकार मित्र सुशील मानव पर आज सुबह मौजपुर इलाके में दंगाइयों ने हमला किया। सुशील ने बताया कि मौजपुर के गली न 7 में, जहां पर कॉन्स्टेबल रतनलाल की हत्या हुई यानी जहां एक आईपीएस ऑफिसर (IPS Officer) को पर भी हमला किया गया, वे वहां गये। सुशील को पहले गिरा दिया गया। पीटा गया। उनके साथ मंडी हाउस (mandi house) से एक और साथी थे उनके कपड़े उतारकर देखा गया कि कहीं वे ‘मुसलमान’ तो नहीं। सुशील ‘हिन्दू’ थे इसलिए बच गये। उन्हें पहले तो दो तीन लोगों ने गिराया ,फिर कई लोगों ने उन्हें घेर लिया। एक ने पेट में देसी कट्टा सटा दिया था।

वे वहां से बचकर निकले तो मुस्लिम मोहल्ले में लोगों ने उनका इलाज कराया। वहीं एक स्थानीय क्लिनिक में पट्टी बांधी गयी। उन्होंने बताया कि ‘ मुस्लिम मोहल्ले में ज्यादातर लोग रिपोर्टिंग में मदद कर रहे थे। कुछ लोगों ने वीडियो करने से मना किया लेकिन अधिकांश ने मदद की। लेकिन हिन्दू मोहल्ले में जाते ही यह घटना घटी। हिन्दू लड़के उनसे कह रहे थे कि आपलोग ‘मुल्लों’ की वीडियो क्यों नहीं बनाते हैं?’
फिर दुहरा दूं कि यह वाकया जिस हिन्दू मोहल्ले में हुआ वहीं कॉन्सेटबल रतनलाल की हत्या हुई। सरकार ने उन्हें शहीद का दर्जा दे दिया है लेकिन संभावित हत्यारे ‘सरकारी पार्टी’ के कारिंदे बने रहेंगे। याद करें कि मारे गए राहुल सोलंकी के पिता किस कदर ह्रदय विदारक आवाज के साथ कह रहे थे कि ‘कपिल मिश्रा तो घर में घुस गया और मेरे बेटे को मरवा दिया।’ यही सच है इस दंगे का।

दर्दनाक यह है कि अब ड्रैकुलाओं की मुस्तैदी की खबर बना रहे टीवी चैनल। भैया, भउजी को विदा करने के 15 घण्टे बाद 18 घण्टे काम करने वाले प्रधान जी ने दंगे पर मुंह खोला। सोनिया गांधी और कांग्रेसियों की नींद भी खुली 72 घण्टे बाद। उनके 24 घण्टे पहले अरविंद केजरीवाल (Aravind Kejariwal) राजघाट पर नौटंकी कर आये थे। सबके भक्तों की अपनी-अपनी सफाई होगी। लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने जेड सिक्योरिटी वाले लोगों को दंगाग्रस्त इलाके में शांति मार्च का सुझाव देकर ‘हनुमान भक्त’ को भी एक संकेत दे ही दिया है।
शहर ने जो मंजर दिखाया है, (दिल्ली ने !) वह इतनी जल्दी देश के जेहन से नहीं जाने वाला। दरअसल सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी है जो इस खेल के माहिर लोग हैं, इसलिए उनसे क्या उम्मीद! यह जरूर है कि कल तक हाईकोर्ट के दवाब के भाजपाई दंगाईयों पर मुकदमे हो जायेंगे, लेकिन यह भी तय है कि या तो गिरफ्तारी नहीं होगी या गिरफ्तारी के तुरत बाद जमानत मिल जायेगी उन्हें। आका लोगों को पास 18 सालों का अनुभव है।

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सुशील के साहस और पत्रकारिता के जुनून को सलाम। फ्रीलांसरों की दिक्कत समझी जा सकती है, जो जान जोखिम पर डालकर काम करते हैं। फिलहाल वे ठीक हैं।
-पत्रकार संजीव चन्दन


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