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जम्मू-कश्मीर से पूरी तरह से नहीं हटा है अनुच्छेद 370, खंड-1 अब भी है कायम

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SD24 News Network Network : Box of Knowledge
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर को लेकर राज्यसभा में गृहमंत्री अमित शाह ने जो प्रस्ताव अनुच्छेद 370 को लेकर पेश किया है. उसको लेकर जो खबरें हैं पूरी तरह से सही नहीं हैं. संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने कहा है कि प्रस्ताव में अनुच्छेद 370 को पूरी तरह से नहीं हटाया गया है. उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 तीन भागों में बंटा हुआ है. जम्मू-कश्मीर के बारे में अस्थाई  प्रावधान है जिसको या तो बदला जा सकता है या फिर हटाया जा सकता है. अमित शाह के बयान के मुताबिक 370(1) बाकायदा कायम है सिर्फ 370 (2) और (3) को हटाया गया है. 370(1) में प्रावधान के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह करके राष्ट्रपति आदेश द्वारा संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं.  370(3) में प्रावधान था कि 370 को बदलने के लिए जम्मू और कश्मीर संविधान सभा की सहमति चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि 35A के बारे में यह तय नहीं है कि वह खुद खत्म हो जाएगा या फिर उसके लिए संशोधन करना पड़ेगा.
गौरतलब है कि सरकार ने सोमवार को राज्यसभा में एक ऐतिहासिक संकल्प पेश किया जिसमें जम्मू कश्मीर राज्य से संविधान का अनुच्छेद 370 हटाने और राज्य का विभाजन जम्मू कश्मीर एवं लद्दाख के दो केंद्र शासित क्षेत्रों के रूप में करने का प्रस्ताव किया गया है.  जम्मू कश्मीर केंद्र शासित क्षेत्र में अपनी विधायिका होगी जबकि लद्दाख बिना विधायी वाली केंद्रशासित क्षेत्र होगा.
जम्मू-कश्मीर: सरकार के बड़े फ़ैसले
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प पत्र पेश
जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा ख़त्म किया गया
दो हिस्सों में बंटेगा जम्मू-कश्मीर राज्य
लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया गया
जम्मू-कश्मीर भी केन्द्रशासित प्रदेश बनेगा
जम्मू-कश्मीर विधानसभा के साथ केन्द्रशासित प्रदेश
लद्दाख बिना विधानसभा के अलग केन्द्रशासित प्रदेश
जम्मू-कश्मीर पर संसद में सरकार ने बिल पेश किया
जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति बदलने के लिए बिल पेश 
क्या है आर्टिकल 370?
जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्त राज्य का दर्जा
संसद के पास क़ानून बनाने के सीमित अधिकार
जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को दोहरी नागरिकता
जम्मू-कश्मीर में अलग संविधान, अलग झंडा
विधानसभा का कार्यकाल 5 की बजाय 6 साल का
न तो आरक्षण, न ही न्यूनतम वेतन का क़ानून
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