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हाथरस में दलित बेटी की चिता और बाबरी मस्जिद विध्वंस का फैसला यानी इंसाफ की विदाई- रिहाई मंच

हाथरस में दलित बेटी की चिता और बाबरी मस्जिद विध्वंस का फैसला यानी इंसाफ की विदाई- रिहाई मंच

SD24 News Network : हाथरस में दलित बेटी की चिता और बाबरी मस्जिद विध्वंस का फैसला यानी इंसाफ की विदाई- रिहाई मंच

लखनऊ 30 सितंबर 2020. रिहाई मंच ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में हाई कोर्ट द्वारा साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों के बरी किए जाने के फैसले पर कहा कि यह मात्र निर्णय है न्याय नहीं. मंच ने हाथरस में हुए दलित लड़की के सामूहिक बलात्कार मामले में प्रदेश सरकार की आपराधिक भूमिका पर सवाल उठाते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की.
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस के दृश्य को हजारों–लाखों लोगों ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से देश–विदेश में देखा था. इसके बावजूद देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई करीब 28 साल बाद भी उस आपराधिक कृत्य के दोषियों की पहचान कर पाने में असमर्थ रही. उसने बेशर्मी के साथ अदालत को अपने निष्कर्ष से अवगत कराया और पूरी तत्परता से हाईकोर्ट ने उसे स्वीकार कर देश के न्यायिक इतिहास में एक और काला पन्ना जोड़ दिया. यह पहला अवसर नहीं है जब इस तरह का निर्णय आया है. इससे पहले बथानी टोला जन संहार समेत कई दूसरे मामलों में साक्ष्यों का अभाव कहकर अपराधियों को बरी किया जा चुका है. इससे यह भी जाहिर होता है कि बहुमत की सरकारों में जांच एजेंसियां न्याय के वृक्ष की जड़ में मट्ठा कैसे डालती हैं.
मंच महासचिव ने कहा कि बाबरी मस्जिद विवाद के मृतप्राय जिन्न को कांग्रेस की प्रचंड बहुमत की सरकार के कार्यकाल में बोतल से बाहर निकाला गया था. आज प्रचंड बहुमत की दूसरी सरकार में उसकी अन्त्योष्ठि कर दी गई. उन्होंने कहा कि यह नहीं भूला जा सकता कि विध्वंस के समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और उत्तर प्रदेश में भाजपा का शासन था. केंद्र सरकार द्वारा भूमि को अधिगृहित कर लेने के बावजूद बाबरी मस्जिद की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी राज्य सरकार पर छोड़ दी थी बहरहाल आज के फैसले से दोनों गुनहगार तत्कालीन सरकारें बरी हो गईं.
राजीव यादव ने कहा कि हाथरस की बेटी की मौत के लिए उत्तर प्रदेश सरकार जिम्मेदार है. 14 सितंबर को हाथरस में सामूहिक बलात्कार के बाद पीड़िता के साथ प्रशासनिक स्तर पर जिस प्रकार व्यवहार किया गया वह निंदनीय ही नहीं बल्कि आपराधिक भी है. पीड़िता बुरी तरह घायल थीं इसके बावजूद उन्हें हाथरस और अलीगढ़ के अस्पतालों के भरोसे छोड़ दिया गया. उन्हें दिल्ली तब भेजा गया जब वह अंतिम स्थिति में पहुंच गईं थीं. पुलिस ने जिस तरह से अंतिम संस्कार किया वह अपराध है. पुलिस ने अपराधियों को बचाने का हर सम्भव प्रयास किया इसीलिए वो शुरू से इसे छेड़खानी की घटना कहती रही. 

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One Comment

  1. Ao tirar fotos com um telefone celular ou tablet, você precisa ativar a função de serviço de posicionamento GPS do dispositivo, caso contrário, o telefone celular não pode ser posicionado.

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