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1857 : राइफल के कारतूस पर गाय की चर्बी लगाने की वह सच्चाई जो आप नहीं जानते

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राइफल के कारतूस पर गाय की चर्बी लगाने का सच आया सामने
आपने पी-53 राइफल का नाम सुना ही होगा और यह भी पढ़ा होगा या पढ़ाया होगा की 1857 में गाय की चर्बी के लगे कारतूस को मंगल पांडे ने चलाने से इनकार किया और उसने 1857 की क्रांति का बिगुल बजा दिया |



1857 में जिस एनफील्ड पी-53 राइफल के कारतूस पर गाय की चर्बी लगे होने से हंगामा बरपने की कथा-कहानियां पकाई गई वो असल मे था क्या ?
क्या आप जानते हैं की उस कारतूस के लिए चर्बी की सप्लाई का काम कोलकत्ता के गंगाधर बनर्जी को मिला हुआ था | वैसे गंगाधर बनर्जी की कम्पनी को एनफील्ड पी-53 रायफल के कारतूस के लिए गाय चर्बी सप्लाई का ठेका’ पंद्रह अगस्त 1856 के दिन मिला था और रेट थी दो आने प्रति 450 ग्राम की, यह ठेका’ दो साल के लिए था | यहाँ हर जगह पंद्रह अगस्त घुसेड़ देते हैं फिर वो सियाम के राजा से मिल कर इंडिया में व्यापार स्थापित करने की मुलाकात हो या बीफ सप्लाइ का ठेका हो |



तो क्या यह कथा सही है की पांडे जी ने इसीलिए गोली चलाई थी! जी नहीं बल्कि अपना प्रमोशन नहीं होने से परेशान होकर मंगल पाण्डेय ने भांग के नशे में ब्रिटिश अफसर पर गोली चलाई थी | और वो भी कोई मेरठ में नहीं बल्कि कोलकत्ता के पास बैरकपुर की छवानी में और इसमें उसका सहयोगी था’ जमादार इश्वरी प्रसाद |
पहले दोनों ने छक कर भांग पी और फिर नशे में गोली चल गई | जमादार ने कोई माफी नहीं मांगी तो उसको आठ अप्रैल को फांसी हुई और पांडे जी ने दो दो माफीनामे लिखे पर ठुकरा दिए गए। फिर 22 अप्रैल को उसे फांसी पर टंगा दिया | परंतु न्यूज़ मीडिया रूपी इतिहासकारों ने पाण्डेय जी को हीरो बना दिया’ पर जमादार इश्वरी प्रसाद को भूल गए |



पर इन कथाकारों ने 1857 के क्रांति का दिन लिख दिया 7 मई और स्थान’ मेरठ की छावनी, शायद वो यह बताना भूल गए की कोलकत्ता से पांडे की आत्मा को मेरठ आने में 15 दिन लग गए |
-Kailash Saran

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