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राजर्षी शाहूजी महाराज ने करवाया था सबसे पहले कुरआन का मराठी अनुवाद
आओ उस बात की तरफ जो आप और हम में सामान है -कुरआन
(कुरआन का फरमान है के सभी धर्म के लोग उस बात पर इकठ्ठा हो जाए जो हम में सामान बातें है)
अगर कोई मुझसे पूछे की आप किस महापुरुष को मानते हो तो ,मेरा यह जवाब नहीं होगा की, मैं शिवाजी महाराज, राष्ट्रपिता फुले ऐसे महापुरुषों को मानता हूँ. मैं यह सवाल करने वाले से कहूंगा जवाब सुनाने तक यहाँ से हटेगा नहीं तो जवाब दूंगा. फिर मैं एक छोटेसे सवाल के जवाब की शुरुआत बड़े गर्व के साथ करूंगा. क्यूंकि महापुरुष उस इंसान को कहा जाता है जिस इंसान ने इंसानियत के लिए अप्निजिंदगी लगा दी हो. और जिसने हमारे लिए जिन्दगिया लगा दी उनका सिर्फ दो शब्दों में नाम लेना कहांतक ठीक होगा?
मैं उन सभी महापुरुषों को मानता हूँ जिन्होंने वर्ण व्यवस्था, जाती व्यवस्था, अस्पृश्यता, असमानता, इंसानों से जानवरों जैसा सुलूक करने की व्यवस्था, इंसानों को ज्ञान से दूर रखने की व्यवस्था, इंसानों को ज़िंदा लाश बनाने वाली व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए जिन्होंने अपनी जिंदगियां लगा दी, मैं ऐसे महापुरुषों को मानता हूँ, सिर्फ मानता ही नहीं मुझे गर्व भी होता है के मैंने उनके सच्चे इतिहास को जाना और और उनको माना.
जिस महापुरुष को अपने ही धर्म के धर्मग्रन्थ पढने से मना कर दिया था, उसी महापुरुष ने कुरआन के मराठी अनुवाद के लिए 25 हजार रुपये खर्च किये थे. और सभी बहुजनो को सामान अधिकार मिले इसलिए आरक्षण का निर्माण किया था ऐसे महापुरुष राजर्षि शाहू महाराज को मैं मानता हूँ और गर्व भी करता हूँ.
मैं उस महापुरुष को मानता हूँ जिसने हर पराई औरत के खूबसूरत चहरे को देखकर कहा “ अगर आप मेरी मान होती तो मैं कितना सुन्दर होता” आज जिस मुसलमान को अछूत बनाने की कोशिस की जा रही है उन्ही मुसलमानों को अपने व्यवस्था में 38 प्रतिशत हिस्सा दिया, एक व्यवस्था ने जिनको अछूत घोषित किया हुआ था उसके सामने वर्ण व्यवस्था निर्माताओं को झुकने को मजबूर किया. सबको समानता के साथ जीने की व्यवस्था बनाई, वर्ण व्यवस्था नुसार जिसको हथिया इस्तेमाल करने का अधिकार नहीं था उस व्यवस्था को पैरो टेल रौंदकर बहुजनो के हख के लिए तलवार उठाई ऐसे महान महापुरुष छत्रपति शिवाजी महाराज को मैं मानता हूँ.
व्यवस्था ने शुद्र अतिशूद्र, अछूतों से पढने लिखने का अधिकार छीन लिया था और जो गलती से पढ़ लेता तो उसके कानो में शीश दाल दिया जाता, उनकी आँखे निकाल ली जाती, और अपने मनमानी तरीके से मनघडंत किताबो का निर्माण कर बहुजनो को मुर्ख बनाया जाता था. ऐसी व्यवस्था को अपने पैरो के जुती के नोक पर रखकर हमको पढने लिखने का अधिकार दिया ऐसे महानायिका सावित्रिमाई फुले और महानायक राष्ट्रपिता फुले को मैं मानता हूँ, और उनपर गर्व भी करता हूँ.
जिस महापुरुष ने स्कुल के बाहर बैठकर शिक्षा हासिल की, जिसने अपने नन्हे कलेजे के टुकडो को हमारे लिए कुर्बान कर दिया. हमारे लिए जिसने अपनी अहेलिया (पत्नी) को साडी तक खरीद कर नहीं दे सके, वह माता टुकडो से बनी साडी पहनने को मजबूर थी. फिरभी कभी स्वार्थ के लिए विरोध नहीं किया. जिसने अपने जिंदगी का मकसद मजलूमों को न्याय दिलाना यही बना लिया. जिसके कलेजे के टुकड़े को कफ़न तक नसीब हुआ. जिसने अपने परिवार की परवाह किये बिना रात दिन महेनत करके हमारे लिए हमको न्याय मिले और वर्ण व्यवस्था, जाती व्यवस्था ख़त्म कर एक समता, स्वतंत्रता, बंधुता और न्याय की व्यवस्था निर्माण करने के मकसद से भारत का संविधान लिखा मैं उस महापुरुष डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर को मानता हूँ और गर्व भी करता हूँ.
और कई महापुरुष है जो वक्त मिलने पर उनसे आपको रूबरू किया जाएगा, सबके बारे में लिखना मुमकिन नहीं. और उपरोक्त शब्द उन महापुरुष के लिए बहुत कम है, जिनकी तारीफ़ में लिखने के लिए हजारो पन्ने कम पड़ जायेंगे. इन महापुरुषों पर मुसलमानों ने भी चर्चा करनी चाहिए और समझना चाहिए क्यूंकि इन महापुरुषों ने उस व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए अपनी जिन्दगिया लगा दी थी जो व्यवस्था मुसलमानों ने निर्माण नहीं की थी. इससे यह साफ़ जाहिर होता है की यह लोग मुसलमानों के दुश्मन नहीं थे.
वर्ण व्यवस्था, जाती व्यवस्था, अस्पृश्यता, असमानता, इंसानों को जानवरों से बदतर बनाने की व्यवस्था, इंसानों को ज़िंदा लाश बनकर जीने को मजबूर करने की व्यवस्था. यह सब व्यवस्थाये मुसलमानों ने निर्माण नहीं की थी. और इन व्यवस्थाओं को ख़त्म करने के लिए जिन्होंने संघर्ष किया वह मुसलमानों को नहीं उपरोक्त व्यवस्था निर्माण करने वालो के दुश्मन हुए. तब समानता, भाईचारा मानने वाले सभी ने इन महापुरुषों का अहेतराम करना चाहिए…….
-अहेमद कुरेशी