2 लाख CCTV कैमरा, 43 मौतें घर दुकान मस्जिद मजार जलाई गई, और आरोपी बना कौन…?
शाहरुख ताहिर इशरतजहां
नई दिल्ली : हाल ही में हुए दिल्ली हिंसा के बाद दिल्ली पुलिस और सरकार सवालों के घेरे में आ चुकी है । लोगों ने स्वघोषित सेक्युलर अरविंद केजरीवाल को भी नहीं बख्शा, केजरीवाल को संघी की उपाधि से नवाज गया. तो वहीं दूसरी तरफ दिल्ली सरकार पर कई सवाल उठे रहे है । खबरों के अनुसार दिल्ली हिंसा में 43 मौतें हो चुकी है, हजारों घायल है, और सैकड़ों गिरफ्तार भी हुए है । मुस्लिम विरोधी मीडिया ने दिल्ली हिंसा के जिम्मेदार के तौर पर दो मुस्लिम चेहरों को हीरो बनाया हुआ है । शाहरुख और ताहिर हुसैन, इन्साफ में कोई दोगलाई नहीं होनी चाहिए गुनाहगार गुनाहगार ही होना चाहिए फिर वह हिन्दू हो या मुस्लिम । लेकिन भारत की अक्सर मीडिया मुसलमानों को टारगेट बनाने में कोई कसार नहीं छोडती ।
आपको बता दें की हैदराबाद की अदालत ने अब्दुल करीम उर्फ़ टुंडा को 22 साल बाद बेगुनाह होने के कारण बा-इज्जत बरी किया. जिस वक्त अब्दुल करीम को गिरफ्तार किया गया था उस वक्त हमारी मुस्लिम विरोधी मीडिया ने अब्दुल करीम को आतंकी घोषित कर दिया और आतंकी दाऊद इब्राहिम जैसों से तार मिले होने की खबरें चलाई. इतनी भयावह खबरें चलाई की भारत की साड़ी मुस्लिम आबादी को आतंकी नजर से देखा जाने लगा. ऐसा यह एक ही मामला नहीं है. अदालतों ने 10/15/20 साल बाद बेगुनाह और सबूतों के अभाव में अबतक हजारों ऐसे मुसलमानों को रिहा किया जिनको मीडिया आतंकी कुख्यात आतंकी घोषित कर चुका था. और जब इनको अदालत ने बेगुनाह कहकर रिहा किया तो किसी भी मीडिया ने इनकी खबरें नहीं चलाई.
मीडिया का कमीनापन यहांतक ही नहीं रुका
इसी महीने फरवरी में पकिस्तान को खुफिया जानकारी पहुंचाने के जुर्म में सतीश मिश्र, दीपक त्रिवेदी, पंकज अय्यर, संजीत कुमार, संजय त्रिपाठी, बबलू सिंह, विकास कुमार, राहुल सिंह, संजय रावत, देवशरण गुप्ता, रिंकू त्यागी, ऋषि मिश्र, वेदराम् को गिरफ्तार किया गया लेकिन हमारी मीडिया ने इनकी खबर नहीं बनाई, प्राइम टाइम नहीं चलाया । क्या मीडिया की नज़रों में सिर्फ मुस्लिम ही गुनाहगार है ? ??? दंगे फैलाने वाले कपिल मिश्रा को बेल और लोगो की जान बचाने वाले डॉक्टर काफिल को ज़ेल । यह कैसी न्याय है ? न्याय और कानून किसी की निजी सम्पत्ती नही होनी चाहिए नही तो अच्छे लोगो की संख्या में कमी और बुरे लोगो की संख्या बढ़ जायेगी ।
पत्रकार वासिम त्यागी लिखते है, दंगा दोनों तरफ से होता है तो राहत शिविर में एक ही समुदाय के लोग क्यों शरण लेते हैं? गुजरात, मुजफ्फरनगर, और अब दिल्ली में एक ही समुदाय के लोग आपको राहत शिविरों में शरण लिए मिलेंगे। यह बताता है कि जिसे अख़बार, सरकार दंगा कहती है, दरअस्ल वह दंगा नहीं बल्कि सराकारी संरक्षण में एक समुदाय विशेष पर किया गया सुनियोजित हमला है। बिना सरकारी संरक्षण के दंगा हो ही नहीं सकता।
Wasim Akram Tyagi