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ऐसी हालात में मिलता है आत्मरक्षा का अधिकार, जाने IPC Section
आत्मरक्षा_का_अधिकार -:
धारा 96 से 106 के तहत कानून आत्मरक्षा (सेल्फ डिफेंस) का अधिकार देती है । इसके तहत आप अपनी जान ओर माल की हिफाज़त के लिए अपने बच्चों की हिफाजत , अपने करीबी और अपनी संपति की हिफाजत के लिए सेल्फ डिफेंस में जरूरी कदम उठा सकते हैं जिसका अधिकार हर नागरिक को हमारा संविधान देता है । ये कानूनी अधिकार के साथ साथ आपका मौलिक अधिकार भी है इसके तहत आप हमलावर को उतना ही नुकसान पहुंचा सकते हैं जितना जरूरी हो ।
आत्मरक्षा का अधिकार न केवल एक व्यक्ति के शरीर के लिए बल्कि दूसरे व्यक्ति और संपत्ति की सुरक्षा के लिए भी है; सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) के प्रावधानों की व्याख्या की है।
Supreme Court के निर्णय के key points
Supreme Court ने कहा कि निजी बचाव का अधिकार न केवल “किसी के शरीर की रक्षा के खिलाफ मानव शरीर को प्रभावित करने के लिए बल्कि किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की रक्षा के लिए भी है।“ यह अधिकार संपत्ति के संरक्षण को भी स्वीकार करता है कि क्या किसी के अपने या किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ कुछ Specified अपराधों, अर्थात्, चोरी, डकैती, शरारत, मोब लिंचिंग और आपराधिक अतिचार के खिलाफ है।
Supreme Court ने स्पष्ट किया कि यदि लोक प्राधिकारियों की सुरक्षा के लिए सहारा लेने का समय हो तो अधिकार उत्पन्न नहीं होता है। न ही यह जरुरत से ज्यादा नुकसान के प्रवाह को बढ़ाता है। जब मौत का कारण बनता है, आत्मरक्षा के अधिकार का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति मौत की उचित आशंका के तहत होना चाहिए, या खुद को या जिन लोगों की वह रक्षा कर रहा है, उन्हें चोट लगी है, Supreme Court ने समझाया।
Right to self defense
IPC की धारा 96 से 106 निजी रक्षा के अधिकार से संबंधित है। एक व्यक्ति जो अपने जिंदगी या अंग खोने के आसन्न (Imminent loss of limb) और उचित खतरे का सामना करता है, वह आत्मरक्षा की कवायद में अपने हमलावर पर या तो उस समय मौत का कारण बन सकता है जब हमला करने का प्रयास किया जाता है या सीधे धमकी दी जाती है।
नोट- सभी साथियों से अपील है हम सभी संविधान की जानकारी हासिल करने की कोशिश करें जो भारत के सभी नागरिकों को बराबरी का अधिकार देता है ।