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अल्लाह का वजूद कुरआन में महसूस किया, और स्वीकार किया इस्लाम – Evette Beldachino

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Felt the existence of Allah in the Quran, and accepted Islam – Evette Beldachino

आपको ऑस्ट्रेलिया (Australia) में मुसलमान हुयी एक महिला से आपको परिचित कराएंगे। इनका नाम इवेट बैल्डाचिनो (Evette Beldachino) है। यह 31 साल की हैं और काफ़ी अध्ययन के बाद इन्होंने इस्लाम क़ुबूल किया है।


वह अपना अनुभव इस प्रकार बयान करती हैं,“मैंने बाइबल (Bible) का गहन अध्ययन किया है और इस बात को समझती हूं कि इसका बहुत बड़ा भाग अल्लाह का कथन नहीं है। बहुत दिनों मैंने विभिन्न धर्मों व मतों का अध्ययन किया। एक रात मैंने अपने कमरे में अल्लाह की किताब क़ुरआन (uran) खोली तो उसके शुरु में हम्द नामक सूरे को देखा तो उसके अंग्रेज़ी में अनुवाद (Translate into english) को पढ़ा। उसी वक़्त मैं समझ गयी कि यह इंसान का कथन नहीं हो सकता।

अर्थ और बयान का अंदाज़, ऐसा था कि अल्लाह के कथन के आकर्षण व प्रभाव मैंने अपने वजूद में महसूस किया। तौहीद नामक सूरे को पढ़ने से एकेश्वरवाद (Monotheism) का विषय मेरे लिए स्पष्ट हो गया। उस वक़्त मेरे मन से संदेह दूर हो गया। यक़ीन नहीं आता कि उस रात सुबह तक मैंने क़ुरआन पढ़ा। उस दिन सुबह अज़ान की आवाज़ ने मेरे मन पर बहुत गहरा प्रभाव डाला यहां तक कि मैं ख़ुद ब ख़ुद अज़ान के अशं दोहराने लगी।


कुछ दिन बाद कुछ मुसलमान साथियों के साथ सामूहिक नमाज़ पढ़ने गयी। जिस वक़्त नमाज़ पढ़ाने वाले इमाम हम्द नामक सूरा पढ़ रहे थे, अनन्य अल्लाह पर विश्वास से पूरा वजूद उत्साह और ताज़गी का एहसास कर रहा था।
हालांकि मैं शुरु में नमाज़ में पढ़े जाने वाले शब्द और उसके अशं को सही तरह से नहीं समझ पा रही थी लेकिन लोगों के साथ सामूहिक रूप से पूरे समन्वय के साथ नमाज़ पढ़ना मेरे लिए बहुत अच्छा अनुभव था। नमाज़ के शब्दों को अंग्रेज़ी में काग़ज़ पर लिखती थी (Wrote the words on paper in english) और उसे दोहराती थी। कोशिश करती थी कि सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़ूं।”


कितना अच्छा हो हम अल्लाह के मेहमान बनने वाले इस महीने में अज़ान की आवाज़ सुनकर उठ खड़े हों और सच्चे मन से वज़ू करके सामूहिक रूप से नमाज़ पढ़नेके लिए मस्जिद में जाएं। अगर ऐसा करें तो मन पर शैतान को क़ाबू करने का कोई मौक़ा नहीं मिलेगा। और अल्लाह का वजूद कुरआन में महसूस किया, स्वीकार किया इस्लाम – Evette Beldachino
जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम फ़रमाते हैं, “शैतान उस मोमिन बंदे से उस वक़्त तक डरता है जब तक वह पांचों वक़्त की नमाज़ नियमित रूप से पढ़ता है और जब ऐसा करना छोड़ देता है तो शैतान को उस व्यक्ति से बड़े बड़े पाप करवाने का साहस मिल जाता है।

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