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एनआरसी के ज़रिए नागरिकों पर निशाना साध रही है सियासत -पूर्व न्यायधीश बीडी नक़़वी

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SD24 News Network Network : Box of Knowledge
बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की ग्यारवीं बरसी पर संवैधानिक अधिकारों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ रिहाई मंच ने लखनऊ में किया सेमिनार
लखनऊ. बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ की ग्यारवीं बरसी पर रिहाई मंच ने संवैधानिक अधिकारों पर बढ़ते हमलों के खिलाफ यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में सेमिनार किया। सेमिनार बड़े पैमाने पर संविधान में किए जा रहे बदलावों के सवाल पर केंद्रित रहा।
सेमिनार में कहा गया कि आरएसएस के एजेंडे को आगे बढ़ाते हुए मौजूदा सरकार ने राज्यसभा में 35 दिनों में 32 बिल पास करके पूरे देश में डर का माहौल पैदा कर दिया। सवर्ण आरक्षण, तीन तलाक़, आरटीआई, एनआरसी, यूएपीए, एनआईए, 370, 35A जैसे सवालों पर सदन में विपक्ष की भूमिका की भी आलोचना की गई। यूएपीए के तहत अर्बन नक्सल के नाम पर बुद्धिजीवियों तक को निशाने पर लिया जा रहा है और इस पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस समेत विपक्ष की भूमिका आपराधिक रही।
सेमिनार में मुख्य वक्ता पूर्व न्यायधीश बीडी नक़वी और साउथ एशिया ह्यूमन राट्स डॉक्यूमेंटेशन सेंटर से जुड़े मानवाधिकार नेता रवि नायर, पूर्व आईजी एसआर दारापुरी रहे। अध्यक्षता रिहाई मंच अध्यक्ष मो० शुऐब ने और संचालन मसीहुद्दीन संजरी ने किया।
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पूर्व न्यायधीश बी०डी० नक़वी ने कहा कि मौजूदा सियासत टारगेटिंग पर भरोसा करती है। एनआरसी इसीलिए लाया गया हालांकि यह अलग बात है कि असम में यह इरादा फेल हो गया। मसला असमिया बनाम बंगाली प्रभुत्व का था जिसे हिंदू–मुस्लिम में बदलने की कोशिश हुई। अनुच्छेद 370 और 35A के पीछे भी यही इरादा है। इसमें राहत की बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय कश्मीर के हालात को लेकर संजीदा लगता है। लेकिन फिलहाल बुनियादी सुविधाओं और मानव अधिकारों की बहाली अभी बाकी है।
उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार इस कदर फैला हुआ है कि तमाम वायदों के बावजूद कहीं कुछ अच्छा नहीं दिखता। इस मोर्चे पर पूरी दुनिया में देश की छवि अच्छी नहीं है। आरक्षण का सवाल पहले से ज़्यादा जटिल हो गया है। चीज़ें संभाले नहीं संभल रहीं लेकिन हिंदी को पूरे देश की भाषा बनाए जाने का शगूफा छोड़ दिया गया है।
साउथ एशिया ह्यूमन राट्स डॉक्यूमेंटेशन सेंटर से जुड़े मानवाधिकार नेता रवि नायर ने कहा कि यह त्रासद विडंबना है कि सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने वाले देश में नज़रबंदी बाकायदा संविधान में है। दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है। यूएपीए कानून में संशोधन करके उसे सख्त बनाने का काम कांग्रेस ने शुरू किया था और भाजपा ने एक और संशोधन के माध्यम से उसे चरम पर पहुंचा दिया।
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उन्होंने कहा कि 19 साल पहले संयुक्त राष्ट्र में टॉर्चर निरोधी सम्मेलन आयोजित हुआ था लेकिन भारत के उस पर हस्ताक्षरी होने के बावजूद अभी तक देश में टॉर्चर को लेकर कानून में कोई प्रावधान नहीं किया गया। मानव अधिकारों को लेकर भाजपा और कांग्रेस में कोई बुनियादी फर्क नहीं है। उन्होंने कहा कि तीन क़दम उठाए जाने बेहद ज़रूरी हैं। पहला कि ट्रायल जल्दी और सीमित समय में पूरे हों। दूसरा, आरोप साबित न होने पर जेल में बिताई गई अवधि और प्रतिष्ठा के नुकसान की भरपाई के लिए अनिवार्य रूप से मुआवज़ा मिले। तीसरा, सत्तासीन नेताओं और सरकारी कर्मचारियों को मुकदमों के मामले में अधिकारिक संरक्षण प्राप्त न हो।
पूर्व आई जी एसआर दारापुरी ने कहा कि असम में एनआरसी की सुनवाई कर रहे अधिकारियों में जिन्होंने अधिक संख्या में एक खास वर्ग के लोगों को नागरिक रजिस्टर में शामिल किया, उनका कार्यकाल नहीं बढ़ाया गया। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि एनआरसी प्रमुख प्रतीक हजेला चार साल तक एक ही पद पर विराजमान रहे औैर अपने करीबी अयोग्य लोगों को उसका सदस्य बनाए रखा।
रिहाई मंच अध्यक्ष मो० शुऐब ने कहा कि सूबे की योगी सरकार आज अपने कार्यकाल के ढाई साल का जश्न मना रही है। ऊंभा, सोनभद्र में जमीन के नाम पर दस बेगुनाह आदिवासियों की जान चली गई, बुलंदशहर में भाजयुमो और हिंदू युवा वाहिनी के लोग गोरक्षा के नाम पर इंसपेक्टर सुबोध कुमार की हत्या कर देते हैं, कासगंज में तिरंगा यात्रा के नाम पर भगवा झंडा लेकर पूरे शहर को दंगे की आग में झोंक देते हैं और योगी कहते हैं कि प्रदेश में अपराध के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस, कोई दंगा नहीं, कोई मॉब लिंचिंग नहीं। उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस पर मुठभेड़ों की सूची जारी करने वाली योगी सरकार बताए कि कुलदीप सेंगर और चिंमयानंद जैसे अपराधियों के हर स्तर पर बचाव के लिए क्यों उतरी?
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उन्होंने आरोप लगाया कि 3500 से अधिक एनकाउंटरों का दावा करने वाली योगी सरकार में मारे गए तकरीबन 83, घायल 1059 और 8000 से अधिक गिरफ्तार लोगों में आखिर अधिकतर दलित, आबीसी और मुस्लिम ही क्यों? उन्होंने सरकार पर मनुवादी एजेंडे पर चलने का आरोप लगाते हुए कहा कि 15629 के खिलाफ गुंडा एक्ट, 6010 के खिलाफ ऐंटी रोमियो स्क्वैड ने कार्रवाई की, 55 के खिलाफ रासुका और बड़े पैमाने पर गैंगेस्टर लगाने के दावे मीडिया के माध्यम से सरकार कर रही है। जब योगी सरकार कह रही है कि तकरीबन 13866 लोग डर से ज़मानत रद्द करवा कर जेलों में कैद हैं फिर बीते चुनाव के बाद जिन पचास से अधिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं की हत्या हुई वह किसने करवाई?
रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ से पहले 2008 में होने वाले जयपुर, अहमदाबाद, दिल्ली धमाकों और उत्तर प्रदेश में 2006-07 की घटनाओं में इंडियन मुजाहिदीन में नाम पर आज़मगढ़ के युवकों को गिरफ्तार किया गया था। जयपुर में जुलाई मध्य में ही मुकदमें की कार्यवाही पूरी हो चुकी है लेकिन अभी तक फैसला नहीं आया है। अहमदाबाद में में इसी साल के अंत तक फैसला आने की संभावना है जबकि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अभियोजन के हलफनामें के अनुसार पिछले वर्ष अगस्त में फैसला आ जाना चाहिए था। दिल्ली में मुकदमा अभी गवाही के स्तर पर है जबकि उत्तर प्रदेश में मुकदमे की कार्यवाही अब तक शुरू भी नहीं हुई है। इस तरह इन युवकों को लम्बे समय तक हिरासत में रखने के लिए जाल बुना गया है।
उन्होंने कहा कि मुकदमों के फैसलों को प्रभावित करने के लिए सदन से लेकर गांव तक विभिन्न माध्यमों से माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जहां एक ओर यूएपीए और एनआईए एक्ट में संशोधन कर सरकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों को कुचलने के दर पर है वहीं इसी नाम पर कथित ज़ीरो टॉलरेंस की बात करके न्यायालयों को संदेश भी देने कोशिश की जा रही है। दिल्ली पुलिस की कहानी पर ‘बाटला हाउस’ फिल्म के माध्यम से जनमत तैयार करने का मामला हो या 15 अगस्त 2019 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर स्थानीय पुलिस का सीआरपीएफ के हथियारबंद जवानों के साथ संजरपुर, गांव में आरोपी युवकों के घरों तक मार्च करके भय का माहौल उत्पन्न करने की बात हो, इस पूरे मामले को उसी नज़रिए से देखने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा कि बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ और गिरफ्तारियों के बाद मीडिया के दुष्प्रचार अभियान के चलते आरोपियों के परिजनों की सदमें से मौत, बच्चों और महिलाओं में डिप्रेशन जैसे मानसिक रोगों से पीड़ित होने के कई मामले सामने आए हैं। अब कुछ स्थानों पर फैसलों का समय निकट आने पर जिस तरह से माहौल बनाने का प्रयास हो रहा है उससे न केवल फैसले प्रभावित हो सकते हैं बल्कि इस तरह के संकट के और बढ़ने का खतरा भी पैदा हो जाता है।
सम्मेलन में  अरुंधती धुरु, सृजन योगी आदियोग, आलोक अनवर, नाहिद अकील, जैद अहमद फारूकी, शीवाजी राय, केके शुक्ला, राम कृष्ण, हाजी फहीम, ज़हीर आलम फलाही, फैज़ान मुसन्ना, शाहआलम शेरवानी, मो0 सलीम, पीसी कुरील, केके वत्स, नीति सक्सेना, बलवंत यादव, डा0 मज़हर, गुफरान सिद्दीकी, शबरोज़ मोहम्मदी, शम्स तबरेज़, शंकर सिंह, रूबीना, जैनब, ममता, रोबिन वर्मा रविश आलम, बांकेलाल यादव, प्रदीप पांडेय, शाहरुख़ अहमद, मो0 इश्तियाक़, हफीज़ लश्करी, वीरेंद्र कुमार गुप्ता, मंदाकिनी राय, गौरव सिंह, लालचंद्र, बृजेश  सिंह, मुकेश गौतम, ऐनुल हसन, आरती, कीर्ति, परवेज़ सिद्दीक़ी, नरेश कश्यप, इनामुल्लाह खां, गोलू  यादव, प्रिया सिंह, मो0 अबरार, झब्बू लाल, पुष्पा,  नेहा, रोशनी, आशीष, विक्रम सिंह, आफाक़, आनंद सिंह, मो0 मसूद, महेश पाल, नैयर आज़म आदि शामिल रहे।
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  1. Suivre le téléphone

    February 10, 2024 at 11:29 pm

    urveillez votre téléphone de n’importe où et voyez ce qui se passe sur le téléphone cible. Vous serez en mesure de surveiller et de stocker des journaux d’appels, des messages, des activités sociales, des images, des vidéos, WhatsApp et plus. Surveillance en temps réel des téléphones, aucune connaissance technique n’est requise, aucune racine n’est requise. https://www.mycellspy.com/fr/tutorials/

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