आप पिछले सत्तर सालों से कांग्रेस तथा अन्य स्वनाम धन्य सेक्युलर पार्टियों और नेताओं की चापलूसी करते रहे, नोट लेकर कौम के वोट की दलाली करते रहे । बदले में मुसलमान अपनी लाशें गिनते रहे, बहन बेटियों की लुटती आबरू पर आँसू बहाते रहे, दंगों में घर-बार परिवार सब लुटाते रहे, मस्जिदों को मिस्मार होते देखते रहे । यहाँ तक कि देखते देखते कौम गर्त में पहुंच गई मुसलमानों की हालत दलितों से भी दयनीय हो गई । वो कौम जो बारह सौ सालों तक सत्ता में रही आज उसे अपनी पहचान छिपानी पड़ रही है, दाढ़ी कटानी पड़ रही है । दलितों का सिर्फ शोषण हुआ था मुसलमानों की पहचान ही आतंकवादी और देशद्रोही की बना दी गई, और ये सब तुम्हारी कथित सेक्युलर पार्टियों के सत्ता में रहते हुआ पर हम चुप रहे ।
हम चुप रहे हमने अपने अधिकारों को छोड़ दिया, हमने बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा किसी चीज़ की मांग नहीं की बस सेक्युलरिज़्म का बोझ ढोते रहे ढोते रहे । हमने तुम्हारे साथ कांग्रेस, सपा, बसपा समेत सैकड़ों पार्टियों का नारा लगाया, झंडे उठाये, झोले उठाये, दरी बिछाई, पुलिस की लाठियाँ खाईं । ये सब सिर्फ इसलिए किया ताकि सेक्युलरिज़्म बचा रहे लोकतंत्र बना रहे । सब सहते रहे और आखिरी पंक्ति में अपनी बारी आने का इंतज़ार करते रहे कभी उफ तक नहीं किया । पर आज जब न लोकतंत्र बचा है न संवैधानिक संस्थाओं का इक़बाल बचा है न धर्म निर्पेक्षता बची है, आज जब हर घर से संभू निकालने की बात चल रही है, जब जगह जगह हमारी लिंचिंग हो रही है तो क्या हम सवाल भी न करें ? हम सवाल कर रहे हैं तो तुम्हें मिर्ची क्यूँ लग रही है ? तुम दलाली करते रहो हमें तकलीफ नहीं है न तुमसे सवाल ही कर रहे हैं पर जिनपर आजतक ऐतबार किया जिन्हें आधी सदी से ज़्यादा समय तक सत्ता के शिखर पर बनाये रखा हम उनसे तो सवाल करेंगे । हम उनसे पूछना चाहते हैं कि हमको क्या मिला जो नहीं मिला वो क्यूँ नहीं मिला, हम उनसे पूछना चाहते हैं कि ऐसा क्या हुआ जो तुम्हारे सत्ता में होते हुए भी पूरा देश सांप्रदायिक हो गया ?
बाख़ुदा मेरा सेक्युलरिज़्म तुमसे कहीं ज़्यादा अज़ीम है, मैने कभी किसी की आस्था का, किसी के धर्म का, किसी की जाति का मज़ाक नहीं उड़ाया, किसी को गाली नहीं दी, बुरा भला नहीं कहा है । इसलिए मुझे कम्यूनल कहने से पहले एक बार अपनी और अपने सेक्युलरिज़्म की तुलना मुझसे ज़रूर कीजिएगा । कहने का तात्पर्य ये है कि मेरा ऐतराज़ मेरा गुस्सा, मेरा सवाल सेक्युलरिज़्म से नहीं है लोकतांत्रिक व्यवस्था से या संविधान से नहीं है बल्कि तुम्हारे फर्जी सेक्युलरिज़्म से है, तुम्हारी पार्टियों, तुम्हारे आकाओं के दोगलेपन से और तुम्हारी चाटुकारिता और दलाली प्रवित्ति से है ।
तुम्हारा अटल विहारी आहत होता है तो होता रहे, तुम्हारी दलाली और चाटुकारिता पर असर पड़ता है तो पड़ता रहे पर हम चुप नहीं रहेंगे हम पूछेंगे, चिढ़ायेंगे और ललकारेंगे भी ।
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