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गुंफा में छोड़ा oxygen बचाई 13 बच्चो की जान, और हमारे यहाँ ऑक्सीजन की कमी से

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थाईलैंड की गुफा में फ़ुटबाल टीम या ये कहें अंधेरी गुफा में रोशनी की दुनिया
एक बारगी कल्पना करके देखिए, आप गुफा के ढाई मील भीतर फंसे हुए हैं। संकरी गुफा के अंदर बाढ़ का पानी भरा हुआ है। भूल भुलैया है, घुप्प अंधेरा और कीचड़ है। खाने को कुछ नहीं है, बस इतना रहम है कि सांसभर लेने की हवा और गला तर करने को पानी है। शायद हममें से ज्यादातर लोगों के मन में इस खयाल के आने से पहले ही जिस्म में झुरझुरी मच जाए, ब्लड प्रेशर आसमान पर जा पहुंचे और बेहोशी छाने लगे। लेकिन अगर कोई इन स्थितियों में भी 18 दिन तक जीवित रहे और अपने साथ लाए 12 बच्चों को भी शांत और खुश बनाए रखने में कामयाब हो जाए तो उस करिश्मे को आप क्या कहेंगे। उस करिश्मे का अब दुनिया इक्कापोल कहेगी।
जी ये वही इक्कापोल हैं, जो थाईलैंड के छियांग राय में स्थित थैम लूंग गुफा में ेवाइल्ड बोर फुटबॉल टीम के 12 खिलाडिय़ों को लेकर गए थे। 23 जून को प्रैक्टिस के बाद ये बच्चों को पार्टी के लिए गुफा में लेकर गए और बाढ़ के कारण उसी में फंस कर रह गए। बच्चे जब मैच खेलकर नहीं लौटे तो परिजन नेे टीम के मुख्य कोच से संपर्क किया। खोजबीन पर नेशनल पार्क के कर्मचारियों ने गुफा के मुहाने पर बच्चों की साइकिलें देखीं। नौ दिन बाद खुलासा हो पाया कि बच्चे गुफा के अंदर की फंसे हुए हैं। कल्पना से भी सिहरन मचनेे लगती है कि आखिर इतने दिनों तक 25 वर्ष के इक्कापोल कैसे बच्चों की जिंदगी बचा पाए।
क्योंकि भीतर तो एक-एक पल भारी होगा। कितनी घबराहट, झुंझलाहट और निराशा से भर गए होंगे सभी। क्योंकि कुछ देर के लिए बिजली गुल होने पर ही लोग परेशान हो उठते हैं। थोड़े पल के लिए लिफ्ट में फंस जाएं तो ही पसीने से नहा उठते हैं। अनजानी आशंकाओं से घिर कर हताश होने लगते हैं और यहां तो 12 जिंदगियां दांव पर थी। 11 से 13 वर्ष के खिलाड़ी थे और 25 वर्ष के उनके कोच। भीतर पानी का तापमान 21 डिग्री था, ऑक्सीजन भी बेहद कम।
उस वक्त जब बाहर लोग कयास लगा रहे थे कि इन्हें निकालना आसान नहीं होगा। लोगों की नजर में दो ही रास्ते थे या तो बच्चे तैराकी सीखें या फिर बाढ़ का पानी उतरने का इंतजार करें, जिसमें महीनों लग सकते हैं। क्योंकि किसी भी बच्चे को डाइविंग का अनुभव नहीं था, यहां तक कि कई बच्चे तो तैरना भी नहीं जानते थे। गुफा कितनी दुर्गम थी इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि थाई नेवी सील के सदस्य रहे समन गुनन को जान से हाथ धोना पड़ा, जबकि वे इसके लिए प्रशिक्षित थे।
ेइन हालात में बच्चों की जीजिविषा को जीवित रखना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। इक्कापोल ने यह कर दिखाया, क्योंकि शायद वे इसी के लिए तैयार किए गए थे। इक्कापोल की अपनी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है। जब वे 10 वर्ष के थे तो बीमारी ने उनके भाई और माता-पिता को छीन लिया। वे अनाथ हो गए। कुछ रिश्तेदार उनकी देखभाल करने लगे, लेकिन वे अकेलापन महसूस करते थे। इसलिए उन्हें बुद्धिस्ट टेम्पल भेज दिया गया। जहां वे एक दशक तक ध्यान का अभ्यास करते रहे। बाद में दादी की देखभाल करने के लिए मोनेस्ट्री छोड़ दी और लौट आए।
बच्चों को लेकर उनके स्नेह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने उनकी जरूरतों के लिए स्कूल के कई नियम बदलवाए। वाइल्ड बोर फुटबॉल टीम के अधिकतर सदस्य गरीब परिवारों से हैं। इक्कापोल ने तय कराया कि बच्चे अगर कुछ भी अच्छा करते हैं तो उन्हें गिफ्ट में कपड़े और जूते दिए जाएं। वे बच्चों के लिए स्पांसर की तलाश में थे। यही वजह है कि जब बाहर लोग उन पर अंगुलियां उठा रहे थे, उन्हें बच्चों को भीतर ले जाने और उनकी जान जोखिम में डालने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे थे। इस बात पर बहस कर रहे थे कि उन पर किस तरह के चार्जेस लगाए जा सकते हैं, उस वक्त भी बच्चों के परिजन उनके बारे में सकारात्मक ही सोच रहे थे।
क्योंकि गुफा के अंधेरों में इक्कापोल ने उजाले की एक नई दुनिया रच दी थी। वे बच्चों को इतने दिन ध्यान का अभ्यास कराते रहे। उन्हें ध्यान की वे विधियां सिखाई, जिनसे वे अपने शरीर की ऊर्जा बचाए रख सकें, खुद को शांत और खुश बनाए रखें। उनकी विधियों ने जादुई असर दिखाया और बच्चे इतनी विपरीत परिस्थितियों में भी सहज बने रहे, हताश नहीं हुए। जो पहला संदेश उन्होंने भीतर से भेजा, उसमें भी यही लिखा कि चिंता मत कीजिए, हम बहादुर बच्चे हैं। उनके हौसले का यह झरना इक्कापोल की वजह से फुट ही रहा था।
दुनिया का सारा दर्शन एक बहुत मोटी बात समझाता है। हम जिंदगी और मौत की दहलीज पर खड़े हैं। बाहर जाती सांस कोई गारंटी देकर नहीं जाती कि वह लौट कर आएगी ही। हर सांस आखिरी हो सकती है, हर धडक़न विदा का संकेत हो सकती है। इसके बाद भी हम सब जिंदगी को अपने अंदाज में जीते हैं। यह हौसला ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है। इक्कापोल की जादुई कोशिशों ने फिर इंसानी सामथ्र्य की नई परिभाषा गढ़ दी है। गुरु के भीतर मौजूद ईश्वरत्व के अंश से हमारा साक्षात्कार कराया है।
बहुत ही प्रेणादायक जज्बा और बुलंद हौसला।
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