19वीं सदी अंत और 20 वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों ने पहला हमला शिक्षा पर ही किया था

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शिक्षण संस्थानों पर हमला नया नहीं है।
19वीं सदी अंत और 20वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों ने पहला हमला शिक्षा पर ही किया था। जब भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की जड़ें मजबूत होने लगीं तो अंग्रेजों का पहला निशाना थे शिक्षण संस्थान।
1878 में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट आया। 1898 में कानून बना कि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ ‘असंतोष की भावना’ फैलाना अपराध होगा। तिलक और दूसरे नेताओं संपादकों को इसी के तहत जेल में ठूंस दिया गया था। 1904 में ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट बना। इन सबका उद्देश्य एक ही था कि जनता को जागरूक होने से रोका जाए।


इसके साथ ही प्राथमिक और उच्च शिक्षा के प्रसार को लगभग रोक दिया गया। 1904 में ही भारतीय विश्विद्यालय कानून बना तो राष्ट्रवादी नेताओं ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह कानून विश्वविद्यालयों पर सख्त नियंत्रण के लिए लाया गया है। ब्रिटिश अधिकारी शिक्षा को लेकर सशंकित थे और इसे नियंत्रित करने का पूरा प्रयास कर रहे थे।
यह वही दौर था जब भारत में शिक्षित नौजवानों की संख्या बढ़ गई थी, इसके साथ बेरोजगारी भी बढ़ रही थी, जिससे असंतोष भी पैदा हो रहा था। यही बेरोजगार युवा ब्रिटिश सरकार के प्रति आलोचनात्मक हुए और आंदोलन से जुड़ने लगे।
गोखले ने लिखा, “नौकरशाही खुलकर स्वार्थी और राष्ट्रीय आकांक्षाओं की शत्रु बनती जा रही है।”
उस समय शिक्षा का विचारधारात्मक पक्ष अहम साबित हुआ। शिक्षित युवा ही उग्र भारतीय राष्ट्रवाद के सबसे मंजे प्रचारक साबित हुए। यह पढ़ा लिखा युवा वर्ग ही भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का ‘सूत्रधार’ साबित हुआ।
आगे चलकर जब अंग्रेजों ने चुनौती दी कि भारतीय शासन के काबिल नहीं हैं तो यही युवा वर्ग था जिसने नेहरू की अगुवाई में स्वराज और पूर्ण स्वाधीनता का मसौदा पेश कर दिया जो आगे चलकर संविधान की रीढ़ बन गया।
आज देश का कौन सा प्रतिष्ठित विश्विद्यालय है जहां सरकार छात्रों से नहीं भिड़ी हो? उस समय जो वर्ग अंग्रेजों की दलाली और मुखबिरी में लिप्त था, उसका सौ साल पुराना अनुभव है जो युवाओं को फिर से कुचलने की प्रेरणा दे रहा है।
भगत सिंह का वह शक सही साबित हुआ है कि भूरे अंग्रेजों से भी उतना ही खतरा है जितना गोरे अंग्रेजों से। भगत सिंह युवाओं से जिन नेहरू के पीछे चलने की अपील कर रहे थे, उन नेहरू का भी शक सही साबित हो रहा है कि भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा कम्युनलिज्म है।
आज युवाओं को ऐसे साम्प्रदायिक और निरंकुश शासन से मुकाबला करना है जो “बांटो और राज करो” की नीति पर खुलकर खेल रहा है और विश्वविद्यालयों पर खुला हमला कर रहा है।
अधूरी सूचनाओं वाले वीडियो वायरल करके देशद्रोह ठोंकने का मॉडल निहायत अंग्रेजी है।
यह भारत में क्रूर अंग्रेजी शासन की वापसी है जहां इंटरनेट की फर्जी और झूठी सूचनाएं सत्ता का प्रमुख हथियार हैं।


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