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म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के खिलाफ़ और लोकतंत्र के लिए जुट रहा वैश्विक समर्थन
कांस्तान्ज़ा रुप्रेच्त और बॉबी रमाकांत
दुनिया के अनेक देशों से सैंकड़ों जन संगठनों ने म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के खिलाफ़ आवाज़ उठाई है और लोकतंत्र स्थापित करने की मांग की है. एक संयुक्त ज्ञापन में 1 फरवरी 2021 को हुए म्यांमार (बर्मा) में सैन्य तख्तापलट की निंदा की गयी और पुन: लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम करने की मांग की गयी है.
म्यांमार की सेना जो जनता पर कहर ढा रही है और हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन कर रही है, उस पर तुरंत रोक लगायी जाए. आम जनता जो शांतिपूर्ण तरीके से लोकतंत्र की मांग कर रही है, सेना उनको निशाना बना रही है. सेना से मांग है कि वह वह लोकतान्त्रिक व्यवस्था तुरंत कायम करवाए और सेना को बैरक में वापस भेजे. म्यांमार में ऐसा मौहौल बनाना ज़रूरी है कि वहां पर जनता को केंद्र में रखता हुआ पुन: संविधान बनाया जाए जिसमें सभी क्षेत्रों और समुदाय की पूरी भागीदारी हो, और विकेन्द्रीय ढंग से प्रतिभागिता हो. सैन्य शक्तियां म्यांमार में एक लम्बे अरसे से वैश्विक मानवाधिकार पटल कर खरे नहीं उतरी हैं. सैन्य तख्तापलट के बाद भी सेना, मानवाधिकार उल्लंघन जारी रखे हुए है और सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, जनजाति और अन्य समुदाय, धार्मिक समुदाय आदि की लोकतंत्र के लिए उठती आवाजें दबा रही है.
संयुक्त ज्ञापन ने 2008 के संविधान को अस्वीकार किया है क्योंकि वह आपत्तिजनक प्रक्रिया से सैन्य हस्तक्षेप और नियंत्रण से बना था.
इस संयुक्त ज्ञापन ने दक्षिण एशिया एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों से अपील की है कि वह सैन्य तख्तापलट का खंडन करें और यह मांग को दोहराएँ कि वहां पर वैश्विक मानवाधिकार मानक सभी लागू हो रहे हों, और सैन्य हस्तक्षेप के बिना लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम रहे.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (यूएन सिक्यूरिटी काउंसिल) से अपील की गयी है कि वह म्यांमार की सेना को जवाबदेह ठहराए, हथियारों पर वैश्विक निषेध और म्यांमार सेना एवं उसके अन्य सहयोगियों/ कंपनियों पर प्रतिषेध लगाये. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् की जिम्मेदारी है कि वह म्यांमार के मुद्दे को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में पहुंचाए, जिससे कि दशकों से हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन, नरसंहार, मानवता के खिलाफ़ अन्य अपराध (जिनमें हर प्रकार की यौनिक और लैंगिक हिंसा भी शामिल है) और हिंसा और जंग से सम्बंधित हर प्रकार के अपराध के प्रति म्यांमार की सेना को जवाबदेह और जिम्मेदार ठहराया जा सके.
इस संयुक्त ज्ञापन ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से अपील की है कि वह यह मांग पुरजोर उठाये कि म्यांमार में लोकतंत्र के लिए आवाज़ उठा रहे लोगों को सेना निशाना नहीं बनाये. मानवाधिकार कार्यकर्ता, लोकतान्त्रिक व्यवस्था के लिए आवाज़ उठा रही जनता, जनजाति और अन्य समुदाय आदि सब सुरक्षित रह सकें, यह वैश्विक मांग उठाना ज़रूरी है. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को राहत सामग्री पहुँचाना ज़रूरी होता जा रहा है विशेषकर कि उन समुदाय के लिए जो हाशिये पर रहे हैं. यह दबाव बनाना भी ज़रूरी है कि इन्टरनेट या अन्य संपर्क माध्यमों पर किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध, जनता को न झेलना पड़े.
श्री लंका के वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता और मछुआरों के अधिकार के लिए समर्पित हरमन कुमारा ने कहा कि जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को लोकतान्त्रिक व्यवस्था कायम कर लोकतान्त्रिक शासन करने का अवसर बिना विलम्ब मिलना चाहिए. उन्होंने ये भी मांग की कि बर्मा में हर इंसान के नागरिक, राजनैतिक और आर्थिक-सामाजिक-सांस्कृतिक अधिकार सुरक्षित होने चाहियें.
बर्मा स्टडी सेंटर के खिन चो म्यिंत ने कहा कि म्यांमार में हुए सैन्य तख्तापलट के खिलाफ़ दुनिया को एकजुट होना ज़रूरी है जिससे कि इस तख्तापलट के लिए जिम्मेदार सेना के लोगों को उनके अपराध के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सके. म्यांमार में लोकतंत्र पुन: स्थापित होना ज़रूरी है.
कंबोडिया के कैम-नेचर इंस्टिट्यूट के चीटलोम अंग ने कहा कि उनके सभी लोग म्यांमार के लोगों के साथ हैं जो सैन्य तख्तापलट का विरोध कर रहे हैं, और उनकी भी मांग है कि वहां पर जनता द्वारा चुनी हुई सरकार को शासन व्यवस्था लोकतंत्र के अनुसार मिले.
बांग्लादेश में कपड़ा-उद्योग में मजदूरों का नेत्रित्व कर रहीं तहमीना रहमान ने सैन्य तख्तापलट का विरोध करते हुए कहा कि सेना की जगह बैरक में है और लोगों द्वारा लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी सरकार को शासन कार्य मिलना चाहिए.
पूर्व सभासद और किसान संघर्ष समिति, समाजवादी समागम से जुड़े हुए डॉ सुनीलम ने कहा कि म्यांमार के लोगों ने सेना से लड़ कर इतने संघर्ष के बाद लोकतंत्र स्थापित करवाया था पर सेना ने पुन: हुकूमत छीन ली है. अब यह ज़रूरी हो रहा है कि वहां के लोग स्थायी इलाज करें और मजबूती के साथ लोकतान्त्रिक और न्यायपूर्ण व्यवस्था कायम करें.
इस संयुक्त ज्ञापन पर मुख्य रूप से समर्थन देने वालों में शामिल हैं: ऑल्ट-सीन बर्मा की डेबी स्टोटहार्ड; म्यांमार की यौनिक अधिकार कार्यकर्ता के थी विन; मंडाले म्यांमार से स्वास्थ्य कार्यकर्ता लविं लविं थांत; मेगसेसे पुरुस्कार से सम्मानित सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ संदीप पाण्डेय; जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की अरुंधती धुरु; गोल्डमान एनवायरनमेंट पुरुस्कार से सम्मानित और लोक शक्ति अभियान के प्रफुल समान्तरा; सीएनएस की संस्थापिका शोभा शुक्ला; श्री लंका से दक्षिता विच्क्रेमाराथाने; पाकिस्तान के भौतिकी शोधकर्ता प्रोफेसर अब्दुल हमीद नय्यर; लाहौर के इंस्टिट्यूट फॉर पीस एंड सेक्युलर स्टडीज की संस्थापिका सईदा दीप; पाकिस्तान किसान मजदूर तहरीक से जुड़े वाली हैदर;नेपाल के सामाजिक कार्यकर्ता और सतत विकास के लिए राष्ट्रीय अभियान से जुड़े दयासागर श्रेष्ठ; नेपाल की वरिष्ठ संपादिका कल्पना आचार्य; बांग्लादेश के वरिष्ठ पत्रकार नुरूल इस्लाम हसीब; इको-सोशलिस्ट फ्रंट के समन्वयक अंकित गोयल; इंग्लैंड से क्याव मं थांत;
म्यांमार से जाव जाव हाण, थू रयिं श्वी और खिंग श्वी वाह; म्यांमार के इंस्टिट्यूट फॉर पोलिटिकल एंड सिविक इंगेजमेंट के सोए हेतेत; एशिया डेवलपमेंट अलायन्स की ज्योत्सना मोहन; म्यांमार की यांगून तकनीकि विश्वविद्यालय की क्याव क्याव ओऊ; उत्तरी-पूर्वी भारत से तीर्थ प्रसाद सैकिया; बांग्लादेश के फिल्म्स फॉर पीस के परवेज़ सिद्दीकी; मुदित शुक्ल; नेपाल के बियॉन्ड बीजिंग समिति के शांता लक्ष्मी श्रेष्ठ; म्यांमार के आई-पेस से जुड़े साईं एके सैम; नेपाल के वालंटियर्स इनिशिएटिव के भूपी घिमिरे; बांग्लादेश नारी प्रोगति संघ की रोकेया कबीर; सतत विकास के लिए कार्यरत मांगे राम अधना; फ्रीडम फाउंडेशन के डॉ अशोक राव; नेपाल के केशव कुमार सुनाम और पारवती सुनाम; म्यांमार से डॉ सोए खिंग लिन्न; कैथोलिक छात्र अभियान से जुड़े विलियम नोक्रेक; सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) की पर्यावरणविद और तेलंगाना महासचिव डॉ लुबना सर्वथ; श्री लंका के कम्युनिटी डेवलपमेंट सर्विस के एंड्रू शमूएल; इंग्लैंड से हना क्लारा बोर्रोव्मन; द इरावडी के विलियम बल्डविन; दक्षिण एशिया शांति पर कार्य कर रहे रवि नितेश; अमरीका के सर्जन/ शल्य-चिकित्सक अख्तर एहतिशाम; मालदीव्स के हुसैन लतीफ; नेपाल के युवाओं का नेत्रित्व कर रहे अनिश श्रेष्ठ; पैलेस्तीन से मोना साबेला; ब्रिजेश कुमार राय; सिंगल वीमेन नेटवर्क से जीनी श्रीवास्तव; साउथ एशिया सिटिज़न वेब से हर्ष कपूर; नेपाल की दलित वेलफेयर संस्था से संजू सिंह विश्वकर्मा; पुलिस रिफार्म वाच की डोल्फी डिसूज़ा; अर्जेंटीना से अलेहन्द्रा फेर्नान्देज़;
थाईलैंड से संग्सन अनाकोट योवचन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट से मथ्चा फोर्निं; दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रोफेसर अपूर्वानंद; मंजू कुलापुरम; गणेश वी; किरगिज़स्तान महिला आन्दोलन से जुड़ीं नुर्गुल द्ज्नईवा; शिक्षा अभियान से जुड़े रमाकांत राय; बांग्लादेश में महिला और विकलांग अधिकार पर कार्यरत शीरीं अख्तर; इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट अहमदाबाद से अर्चित तालुका; पाकितान की महिला अधिकार कार्यकर्ता गुलालई इस्माइल; म्यांमार के पत्रकार तिन मूंग ह्त्वे; हस्तक्षेप के समपादक अमलेंदु उपाध्याय; नेपाल के दिनेश्वर चौधरी; इंडोनेशिया के राइट्स फाउंडेशन से जुड़ीं नुकीला एवंती; इंडोनेशिया के महिला अधिकार कार्यकर्ता और पर्यावरणविद तीती सोएंटोरो; जनजाति और अन्य समुदाय के अधिकारों के लिए समर्पित बेवर्ली लोंगिद; फिलीपींस की दीवा देला क्रूज़; मणिपुर से मानवाधिकार के लिए अधिवक्ताओं से जुड़ें मैस्नाम कोरौहंबा लुवंग;फिलीपींस के पॉल बेलिसरियो; ममता लुक्राम; फिलीपींस से कोराज़ों वल्देज़ फब्रोज़ और एल्मेर लाबोग; जनजाति महिला संस्था से काके तोलेंतिनो; संगत्या के डॉ श्रीकुमार; माले निन्ग्थौजा; समाजवादी जन परिषद् से मदन लाल हिन्द; बुरुंडी से सेवेरिन सिंदिज़ेरा; फिलीपींस ऑस्ट्रेलिया यूनियन से जुड़े पीटर मर्फी; ऑस्ट्रेलिया के पैक्स च्रिस्ती विक्टोरिया से हैरी कर्र; फिलीपींस के बुलात्लत से रोनाल्य्न ओला; नेपाल के जनजाति एवं अन्य इंडीजेनस महिला अधिकार कार्यकर्ता छिनी माया माझी आदि.
कांस्तान्ज़ा रुप्रेच्त और बॉबी रमाकांत
Czytanie wiadomości e-mail innych osób na komputerze bez znajomości hasła jest bardzo trudne. Ale mimo że Gmail ma wysokie zabezpieczenia, ludzie wiedzą, jak potajemnie włamać się do konta Gmail. Udostępnimy kilka artykułów na temat łamania Gmaila, tajnego hakowania dowolnego konta Gmail, nie znając ani słowa.