कोई भी भारत को आदेश देने का दुस्साहस न करे -इंदिरा गांधी

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काश इंदिरा की तरह मोदी भी कह पाते कि कोई भी देश भारत को आदेश देने का दुस्साहस न करे.
3 दिसंबर, 1971. पाकिस्तान ने पश्चिमी भारत के आठ सैनिक अड्डों पर हमला किया. पाकिस्तान की योजना थी कि पहले हमला बोलकर भारत को क्षति पहुंचाई जा सकेगी. लेकिन भारतीय सेना सुरक्षित पीछे हट गई.
प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जनरल मानेक शॉ इस मौके का इंतजार कर रहे थे. जनरल जेएस अरोड़ा के अभूतपूर्व नेतृत्व में भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान को घेर लिया था.
राष्ट्रपति निक्सन ने पाकिस्तान की ओर से हस्तक्षेप किया. भारत को आक्रमणकारी घोषित किया, कई तरह के प्रतिबंध थोपे और संयुक्त राष्ट्र में युद्ध विराम का प्रस्ताव ले गए. रूस भारत के साथ खड़ा था, उसने वीटो कर दिया.
निक्सन ने 9 दिसंबर को अमेरिका का सातवां युद्धक बेड़ा भारत की ओर रवाना किया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा, हिन्दुस्तान किसी से नहीं डरता, चाहे सातवां बेड़ा हो या सत्तरवां.
अमेरिका ने सेना वापस लेने का दबाव बनाया तो इंदिरा गांधी ने दो टूक शब्दों में कहा, ‘कोई देश भारत को आदेश देने का दुस्साहस न करे.’
अमेरिका के जवाब में जनरल मानेक शॉ ने आदेश दिया, भारत की सैनिक योजना को और तेज कर दिया जाए.
3 दिसंबर को शुरू हुआ युद्ध 13 दिसंबर को समाप्त हो गया. पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. अमेरिका अवाक रह गया। उसका सातवां बेड़ा भारत तक कभी नहीं पहुंचा।
बीबीसी से इंदिरा गांधी ने कहा था, ‘हम लोग इस बात पर निर्भर नहीं हैं कि दूसरे देश क्या सोचते हैं या हम क्या करें या वे हमसे क्या करवाना चाहते हैं, हम यह जानते हैं कि हम क्या करना चाहते हैं और यह कि हम क्या करने जा रहे हैं. चाहे उसकी कीमत कुछ भी हो.’
आज नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं. पिछले ही साल अमेरिका और ट्रंप ने भारत को धमकाया था कि ईरान से तेल लेना बंद करो, वरना प्रतिबंध लगा देंगे. अब नया मसला है मलेरिया समेत कुछ दवाओं का. वे खुले शब्दों में धमकी देते हैं और भारत निर्यात से बैन हटा लेता है और इसका बचाव भी किया जा रहा है.
ट्रंप ने कहा, ‘मैंने उनसे (पीएम मोदी) सोमवार सुबह बात की, मैंने कहा कि यदि आप हमारी सप्लाई को आने की इजाजत दें तो हम स्वागत करेंगे. अगर वे आने की इजाजत नहीं देते तो भी कोई बात नहीं, लेकिन निश्चित रूप से हम भी पलटवार कर सकते हैं. ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?’
इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा, ‘अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ‘पलटवार’ की चेतावनी के कुछ ही घंटों में भारत ने हाइड्रोक्लोरोक्वीन के निर्यात से आंशिक प्रतिबंद हटा लिया है.’
द वायर ने लिखा है, ‘डोनाल्ड ट्रंप द्वारा मलेरिया रोधी ‘हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन’ दवा ना देने पर भारत को कड़े परिणाम भुगतने की चेतावनी देने के कुछ घंटों बाद ही मंगलवार को भारत ने कुछ देशों को उचित मात्रा में पैरासीटामॉल और ‘हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन’ के निर्यात को अस्थायी तौर पर मंजूरी दे दी है’.
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने कहा, ‘वैश्विक मामलों के मेरे दशकों के अनुभव में मैंने ऐसा कभी नहीं सुना कि कोई राष्ट्राध्यक्ष या सरकार इस तरह से खुली धमकी दे रही हो. आप भारत के हाईड्रोक्लोरोक्वीन को ‘अवर सप्लाई’ किस तरह से कह सकते हैं मिस्टर प्रेसिडेंट? यह आपकी सप्लाई तब ही होती है, जब भारत इसे आपको बेचने का निर्णय लेता है.’
सुनते हैं कि प्रधानमंत्री भी बहुत मजबूत हैं, सरकार भी बहुत मजबूत है. तो हजूर! आप बार बार समर्पण क्यों कर देते हैं? क्या भारत की संप्रभुता को ट्रंप के हाथ गिरवी रख दिया गया है? क्या हमारा देश 1971 की तुलना में कमजोर स्थिति में है जो अमेरिका की धमकी पर अपने निर्णय लेता है?

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