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काटजू कहते हैं की शाहीन बाग़ का प्रोटेस्ट हिजाब की वजह से मुस्लिम लोगों का कहला रहा है इससे दिल्ली चुनाव में फ़ायदा भाजपा को होगा इसलिए वह चाहते हैं की मुस्लिम महिलाएँ हिजाब उतार कर प्रोटेस्ट करें..
कभी कभी मुझे शक होता है की ये इंसान क्या जब जज की कुर्सी पर बैठकर फ़ैसले लेता होगा तो सही लेता होगा? मुझे नही लगता, बंदा जब तक सर्विस में था ग़ायब था लेकिन रेटायअर होते ही ज़बान लम्बी होकर सोशल साइट्स पर झाड़ू लगा रही है
मार्कंडेय काटजू की जुबान लम्बी हो गयी, सोशल साइट्स पर झाड़ू लगा रही है
ख़ैर आते हैं पहचान के मुद्दे पर, सुनिए जज साहब ये हिंदुस्तान जितना अज़ीज़ है पहचान भी उतनी ही अज़ीज़ है अगर सिर्फ़ हिजाब देखकर लोग भाजपा को वोट देंगे तो ये उनकी दिमाग़ की गंदगी और इसलामोफोबिया है, इसमें हिजाब या मुसलमान का कहीं से लेना देना नही है, दूसरी बात ग़ालिबन यह बात मार्टिन लूथर किंग ने कही थी की जब पहचान पर हमला होता है तो उस ही पहचान के साथ निकलकर आना बहुत ज़रूरी है। जैसे निग्रो लोगों के समर्थन में गोरों ने ख़ुद को काले रंग से रंग दिया था।
एक और बात जज साहब, शिक्षा पहचान नही होती बस सलीक़ा होता है पहचान उसका कल्चर, रिलिजन और रीजन होती है।