जय श्री राम के नारे लगाये गये? क्या यह संसदीय अनुशासन के खिलाफ नहीं है?

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सवाल यह नहीं है कि संसद में धार्मिक नारे क्यों गूँजे? सवाल यह है कि जब असदुद्दीन ओवैसी और शफीकुर्रहमान बर्क को शपथ लेने के लिये पुकारा गया तो उनका नाम सुनते ही और उनके शपथ लेने के दौरान और बाद तक जय श्री राम, बंदे मातरम के नारों की क्या ज़रूरत थी? किसने लगाये नारे? क्यों लगाये? असदुद्दीन ओवैसी और सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ठीक है पूरे देश के मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं लेकिन कौन इससे इनकार करेगा कि सिर्फ उनके मुसलमान होने की वजह से ही उनका नाम पुकारे जाने पर जय श्री राम के नारे लगाये गये? क्या यह संसदीय अनुशासन के खिलाफ नहीं है? किस सांसद को इसकी सज़ा मिली? संसद में किसी सांसद को उसके धर्म के नाम पर टारगेट करके नारेबाज़ी करना क्या संसद के नियमों के खिलाफ नहीं है? शपथ लेते रहने के दौरान नारेबाज़ी करते रहना क्या संसदीय मर्यादा के खिलाफ नहीं है? यह नारेबाज़ी सरासर मुसलमानों को यह एहसास दिलाने के लिये थी कि तुम संसद में पहुँचोगे तब भी तुम्हें टारगेट किया जायेगा।
संसद में अब तक किस मुस्लिम सांसद या सांसदों ने किसी हिंदू सांसद के नाम पर अल्लाहु अकबर का नारा लगाया है? किसी ने नहीं। तो मुसलमानों के लिये स्कीमें लांच करके ही विश्वास नहीं पाया जा सकेगा, जबकि संसद के अंदर सांसदों के मुस्लिम होने पर टारगेट करके नारेबाज़ी की जाये। फिर, बदले में ओवैसी या सपा के सांसद बर्क ने क्या कहा?
सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने कहा कि “भारत का संविधान ज़िदाबाद”। ओवैसी ने पहले संविधान निर्माता आंबेडकर का नारा लगाते हुए “जय भीम” बोला, फिर “तकबीर अल्लाहुअकबर” कहा उसके बाद “जय हिंद” कहा। एक ने संविधान को ज़िंदाबाद कहा तो दूसरे ने जय भीम, जय हिंद भी कहा। तकबीर अल्लाहु अकबर तो क्या ही गज़ब कहा, वाह। ऐसा ही होना चाहिये था। जवाब तो करारा ही देना था, सो दिया!

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