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हजारो फ़ालतू डे छोड़कर क्यों न “भूख-डे” मनाया जाए ?
सोशल डायरी ब्यूरो
हर हफ्ते कोई ना कोई डे होता है, कोई नेशनल लेवल पर तो कोई इंटरनेशनल लेवल पर जैसे 21 जून को दुनियाभर में योग डे मनाया गया. क्या भूखे लोगो ने योग डे मनाने से उनका पेट भर जाएगा? अगर हाँ तो योग डे मनाने में कोई हर्ज नहीं. भारत में 20 करोड़ लोग है जो भुखमरी का शिकार है. और 20 करोड़ से ज्यादा लोग है जिनकी आय एक दिन की सिर्फ 20 रुपये है. जिससे 50ग्राम उड़द की दाल खरीदी जा सकती है. क्या 50 ग्राम उड़द की दाल से परिवार का पेट भर सकता है ? योग करने से 20 रुपये में अगर एक परिवार का पेट भर सकता है तरो भला किस बेवकूफ को योग डे मनाने पर आपत्ति होगी ? कुल मिलाकर भारत में 50 करोड़ आबादी है जो गरीबी रेखा के निचे अपना जीवन जी रहे है और लोग ऐसे में मदर्स डे, फादर्स डे, वैलेंटाइन डे, रोज डे, किस डे, ये डे, वो डे मनाते है. लेकिन किसीने आजतक भूख डे नहीं मनाया. क्योकि जो लोग कोई ना कोई डे मनाते है वह लोग आमिर लोग होते है. और नए नए फंदे निकालकर उनको अपना पैसा खर्च करना होता है. यह सब अमीरों के चोचले है.
अगर ऐसे में कोई सोच ले की, भूख डे मनाया जाए तो कम से कम हफ्ते में दो बार खाना खाने वाले लोगो को साल एक वक्त का अच्छा खाना तो मिलेगा. और ऐसा करते करते हर आम आदमी को पता चलेगा की कितने लोग हमारे देश में भूखे सोते है, कितने लोग दो दिन को एक बार खाना खाते है. और कितने लोग भूख से मर जाते है. जब हर आदमी को इसकी जानकारी होगी तो कितना भी पत्थर दिल हो. भूखे को खाना जरुर खिलाएगा. एक दिन का भूख डे करोडो लोगो के दिलो को फेर सकता है.
एक कार्यक्रम के दौरान विश्लेषण के साथ बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम ने बताया था की, सरकार चाहे कोई भी हो. उनको भूख से मरने वालो से कोई लेना देना नहीं है. उलटा भूख से मारना सरकार बनाने वाले लोगो के लिए फायदेमंद है. क्यूंकि जब कोई भूखा रहेगा तब ही वह पैसा लेकर वोट करेगा और सरकार उसी की होगी जो पैसा फेंकेगा. इसीलिए सरकार कोई भी हो अम्बानी जैसे लोगो का 50 हजार करोड़ कर्ज माफ़ कर सकती है. विजय माल्या जैसो से कोई बैंक पैसा वसूल नहीं करती. लेकिन गरीबो का कोई कर्ज माफ़ नहीं होता. और किसानो आत्महत्या करने को मजबूर करते है कर्जदार बैंक. ऐसी हालात में सामाजिक कार्यक्रताओ ने सिर्फ आवाज उठानी नहीं चाहिए क्यूंकि जब भी कोई आवाज उठती है उसे दबा दिया जाता है. कई आवाजे उठी और दब गयी. पहल करनी चाहिए पहल.
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