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–कोरोना के नियम बीजेपी के बुढ़ापा संबंधी नियमों की तरह हैं. आडवाणी 86 साल में मार्गदर्शक मंडल भेज दिए गए और ईश्रीधरन 88 में भी सीएम उम्मीदवार बन गए. यशवंत सिन्हा 76 में किनारे लगा दिए गए और रविंद्रनाथ 88 की उमर में बंगाल की नाव किनारे लगा रहे हैं. नेता के लौंडे की शादी में सारा जमाना आ जाए तो कोरोना चुपचाप नागिन डांस करता है, लेकिन भगेलू के बियाह में टेंट के बाहर गिनती करने का नियम है. गिनती 50 से 51 हो जाए तो कोरोना नागिन की भांति फुंफकार कर काट लेता है.
नेता मास्क न लगाने के लिए आजाद है. नेता लाखों की भीड़ जुटाने के लिए आजाद है. जनता मास्क न लगाए तो पुलिस हड्डी तोड़ने के लिए आजाद है. साधु बिना कोरोना से डरे कुंभ नहाने के लिए आजाद है. मौलाना अज्ञानता में भी भीड़ जुटा ले तो गोदिया… सॉरी.. मीडिया उन्हें गाली देने के लिए आजाद है. इन सब आजादियों का कारण कोरोना है. कोरोना को आप ज्यादा समझने का प्रयास करें तो लगता है कि ससुरा कोई लीलाधारी अवतार है.
मुझे तो अब यकीन हो गया है कि कोरोना कोई वायरस नहीं, बल्कि भगवान का अवतार होगा. जैसे भगवान अपने अवतारों में तरह-तरह की लीलाएं करते हैं, वैसे कोरोना भी विचित्र-विचित्र लीलाएं कर रहा है. अवतारों की तरह कोरोना भी रूप हर व्यक्ति, हर वस्तु, हर समय, हर राज्य, हर शहर, हर नेता और हर जनता के साथ अलग है. उसकी इसी अदा पर नेता मौज में है लेकिन जनता अपने से ही अलग-थलग है.
जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी- की तर्ज पर कोरोना नेताओं के साथ अलग रूप में है, जनता के साथ अलग रूप में है, मरीज के साथ अलग रूप में है. कोरोना अवतारों की तरह नियम भी तोड़ रहा है. जैसे कृष्ण ने कंस के राजकाज के नियम उलट दिए, जैसे महाभारत में युद्ध के नियम बदल दिए, वैसे ही कोरोना ने भी एक देश, एक कानून की खटिया करके बिस्तरा गोल कर दिया है.
दिया जला दो तो भाग जाता है. शंख और थाली बजा दो तो शांत हो जाता है, जब न बजाओ तो कुपित हो जाता है. गो कोरोना गो कह दो तो चला जाता है, लेकिन दवाई, कड़ाई की अनुपस्थिति में भी किसी को कुछ नहीं कहता. 500 केस पर देश भर को घर में बंद कर देता है, लेकिन 90 हजार केस पर पांच-पांच राज्यों में रैलियां करवाता है.
ऐसे अवतारी कारनामे सिर्फ कोरोना ने संभव बनाए हैं. जनता को सत्ता की नजर में हमेशा भेड़-बकरी समझा जाता रहा है. कोरोना ने इस शाश्वत नियम पर पक्की मुहर मारी है कि सारा नियम गरीबों के लिए है, सारी छूट अमीरों-सत्ताधारियों के लिए हैं.
कोरोना राजधानी प्रेमी भी है. सभी राज्यों के आंकड़ों पर नजरपात कीजिए तो आप पाएंगे कि लगभग हर राज्य में केस का बड़ा हिस्सा उसकी राजधानी में है. लखनऊ, अहमदाबाद, जयपुर, मुंबई, देहरादून, चेन्नई, बेंगलुरु, रांची, पटना आदि-इत्यादि पर निगाह डालिए तो आप्तपुरुषों की तरह आपको दिखेगा कि कोरोना की लीलाएं अनादि अनंत हैं. अब राजधानी के बाहर की जनता को या तो प्रशासन नहीं पूछ रहा या फिर कोरोना नहीं पूछ रहा. ये भी हो सकता है कि लीलाधारी कोरोना राजधानी छोड़कर कहीं जा ही नहीं रहा है.
ऐसी भांति-भांति की लीलाएं कौन कर सकता है? मनुष्य तो कतई नहीं करते. जीव-जंतु भी नहीं करते. ऐसा वे तभी करते हैं जब उनके रूप में भगवान अवतार लें. आजकल वैसे भी अवतारों की भरमार है. वॉट्सएप विष-विद्यालय के कोर्स में जो भी कृष्ण की भांति कालिया नाग नाथ ले या मगरमच्छ मार दे, झूठ का पहाड़ खड़ा कर दे, वही अवतार हो सकता है. कोरोना खुद नहीं बोलता, लेकिन उसके नाम पर तमाम खेल किए जा सकते हैं.
मैं तो कहता हूं कि कोरोना अगर दाढ़ी बढ़ाकर थोड़ा भौकाल टाइट कर ले और कुछ चमचे पाल ले तो उसके भी अवतार घोषित होने की भरपूर संभावना है.
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