राष्ट्रिय
दुनिया में हर 2 में से 1 अस्थमा-मृत्यु भारत में होती है – शोभा शुक्ला
यदि अस्थमा प्रबंधन सही हो तो सामान्य जीवन संभव है – शोभा शुक्ला
यदि अस्थमा या दमा का सही चिकित्सकीय प्रबंधन, इलाज और देखभाल मिले तो सामान्य जीवनयापन संभव है. चूँकि ज़रूरतमंद लोगों को सही अस्थमा प्रबंधन, इलाज और देखभाल समय पर नहीं मिलती इसीलिए अस्थमा के कारणवश चिकित्सकीय आपात स्थिति होने का खतरा बढ़ जाता है और मृत्यु तक हो सकती है. अस्थमा या दमा से बच्चे और व्यसक सभी देशों में प्रभावित होते हैं परन्तु अस्थमा से अधिकाँश मृत्यु विकाशसील देशों में ही होती हैं. दुनिया में कुल अस्थमा-मृत्यु में से 50% तो भारत में ही होती हैं. विश्व अस्थमा दिवस पर ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के श्वास रोग विशेषज्ञ और इंटरनेशनल यूनियन अगेंस्ट ट्यूबरक्लोसिस एंड लंग डिजीज के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) गाए मार्क्स और किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के श्वास रोग विशेषज्ञ और भारतीय अस्थमा एलर्जी और एप्लाइड इमयूनोलाजी कॉलेज के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ) सूर्य कान्त ने अस्थमा के कुशल प्रबंधन और सही देखभाल पर जोर दिया.
डॉ गाए मार्क्स ने कहा कि अस्थमा का सही प्रबंधन, इलाज और देखभाल कैसे किया जाए यह तो हमें दशकों से पता है पर इसके बावजूद क्यों विकासशील देशों में लाखों लोग, विशेषकर बच्चे, अस्थमा के कारण अस्पताल में आपात स्थिति में आते हैं और मृत तक होते हैं? स्वास्थ्य अधिकार के तहत हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हर ज़रूरतमंद तक अस्थमा का सही प्रबंधन और इलाज-देखभाल सेवा पहुंचे जिससे वह भरपूर सामान्य जीवनयापन कर सकें. जिस तरह से विकसित देशों ने अस्थमा के कारण होने वाली मृत्यु दर को अत्यंत कम कर दिया है उसी दिशा में वैश्विक स्तर पर बढ़ना ज़रूरी है. आज भी बच्चों में होने वाली दीर्घकालिक बीमारियों में सबसे बड़ा दर तो अस्थमा की है.
दुनिया में हर 2 में से 1 अस्थमा-मृत्यु होती है भारत में
दुनिया में 40 लाख से अधिक लोग अस्थमा या दमा से जूझ रहे हैं. हालाँकि पिछले कुछ सालों में यह दर कुछ कम तो हुई है पर अस्थमा दर में गिरावट संतोषजनक नहीं है. डॉ गाए मार्क्स ने कहा कि अस्थमा और एलर्जी पर अंतर्राष्ट्रीय शोध से यह ज्ञात हुआ कि भारत समेत अनेक एशिया पैसिफिक क्षेत्र के देशों में 13-14 वर्षीय बच्चों में अस्थमा दर बहुत चिंताजनक है – हर 5 में से 1 बच्चे में अस्थमा के लक्षण थे. यह भी स्पष्ट हुआ कि विकसित देशों में अस्थमा से किसी की भी मृत्यु होने का खतरा बहुत कम था परन्तु विकासशील देशों में अत्याधिक. विश्व स्तर पर, हर 2 अस्थमा मृत्यु में से 1 तो भारत में ही होती है.
डॉ गाए मार्क्स के अनुसार, विकासशील देशों में अभी भी ज़रूरतमंद लोगों तक जीवनरक्षक आवश्यक और गुणवत्ता वाली दवाएं और ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं पहुँच रही हैं, सही देखभाल नहीं मिल पा रही है और अनेक ऐसे कारण जो अस्थमा और अन्य श्वास रोग होने का खतरा बढ़ाते हैं वह पनप रहे हैं जैसे कि वायु प्रदूषण. इनहेलर (जिससे सांस अन्दर खींचने पर स्टेरॉयड दवा मिलती है) की अस्थमा के प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका है – अस्थमा या दमा का अटैक/ दौरा भी बच सकता है यदि सही समय पर इनहेलर और देखभाल मिले. यदि यह ज़रूरी सेवाएँ महंगी हैं और ज़रूरतमंद लोगों की पहुँच से बाहर हैं तो हमें यह उनतक पहुंचानी होंगी.
2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 194 देशों के प्रमुख ने यह वादा किया था कि 2025 तक गैर संक्रामक रोग (जैसे कि अस्थमा) का दर 25% कम होगी और 2030 तक एक-तिहाई कम. पर इस दिशा में प्रगति उस रफ़्तार से होती नहीं प्रतीत हो रही है. बल्कि अस्थमा और अन्य गैर संक्रामक रोगों को होने का या बिगाड़ने का खतरा बढ़ाने वाले कारण तो बढ़ोतरी पर हैं (जैसे कि तम्बाकू सेवन, वायु प्रदूषण, महंगी होती स्वास्थ्य सेवा, आदि).
डॉ गाए मार्क्स ने कहा कि यदि विश्वस्तर पर अस्थमा का मृत्यु दर कम करना है तो यह सुनिश्चित करना होगा कि हर ज़रूरतमंद तक सभी ज़रूरी स्वास्थ्य सेवा पहुंचे और सही समय पर सही इलाज-देखभाल मिल पाए – हर अमीर-गरीब देश और हर समुदाय तक यह स्वास्थ्य अधिकार मुमकिन करना आवश्यक है. कम गुणवत्ता वाली दवाएं यदि बाज़ार में हैं तो उनपर रोक लगे. चूँकि अस्थमा की अनेक दवाएं इनहेलर द्वारा ली जाती हैं तो इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि जिन बच्चों-वयस्कों को इसकी ज़रूरत है उन्हें इनहेलर का सही उपयोग करना आता हो.
डॉ सूर्य कान्त जो किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय के कोविड नोडल अधिकारी भी हैं, ने कहा कि जिन लोगों में अस्थमा अनियंत्रित रहता है या अस्थमा का सही प्रबंधन नहीं रहता उन्हें कोविड होने का खतरा ज्यादा है, और यदि कोविड हुआ तो गंभीर रोग, अस्पताल में गहन-देखभाल और असामयिक मृत्यु तक का खतरा अधिक रहता है. इसीलिए डॉ सूर्य कान्त अपील करते हैं कि लोग सही अस्थमा प्रबंधन और इलाज पर विशेष ध्यान दें और कोविड नियंत्रण के सभी निर्देशों का पूरा पालन करें. चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार अस्थमा प्रबंधन के लिए सही इनहेलर, इलाज और देखभाल करें, मास्क पहने, भौतिक दूरी बना के रखें, कोविड टीका लगवाएं – न तो अस्थमा को बिगड़ने दें और न ही कोविड का खतरा मोल लें.
डॉ सूर्य कान्त ने चेताया कि तम्बाकू सेवन से कोविड होने का खतरा 2.5 गुणा तक बढ़ सकता है. जो टीबी के रोगी रहे हैं पर एक्सरे में फेफड़े में धब्बे अभी भी दिख रहे हैं उनको भी कोविड होने का खतरा अधिक रहता है. इस बात पर ध्यान दें कि जिन लोगों का अस्थमा अनियंत्रित है या प्रबंधन असंतोषजनक है, या जो लोग टीबी का इलाज करवा रहे हैं या करवा चुके हैं पर एक्सरे में फेफड़े में धब्बे हैं, या जो तम्बाकू का सेवन करते हैं, उनको कोविड होने पर अति-गंभीर रोग और परिणाम (मृत्यु तक) होने का खतरा अत्याधिक है.
डॉ गाए मार्क्स और डॉ सूर्य कान्त दोनों कहते हैं कि विकासशील देशों में अस्थमा मृत्यु दर इसीलिए अधिक है क्योंकि:
– हर ज़रूरतमंद तक सही इलाज और देखभाल नहीं पहुँच रही है. अस्थमा के लिए इनहेलर द्वारा कोर्टिको-स्टेरॉयड लेना एक प्रभावकारी इलाज रहा है परन्तु अनेक विकासशील देशों में यह ज़रूरतमंद तक नहीं पहुँच रहा है.
– यदि अस्थमा का दौरा पड़े तो जीवनरक्षक गहन चिकित्सकीय देखभाल अक्सर नहीं मिल पाती या समय से नहीं मिल पा रही है जिसके कारणवश अस्थमा जानलेवा हो जाता है.
– अनेक ऐसे कारण हैं जिनसे अस्थमा के बिगड़ने का खतरा बढ़ जाता है जैसे कि वायु प्रदूषण, मोटर वाहन आदि का प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण आदि. विकासशील देशों में अक्सर अस्थमा को बिगाड़ने वाले खतरे अधिक हैं.
डॉ गाए मार्क्स ने कहा कि वैज्ञानिक शोध के आधार पर हमें सालों से यह पता है कि अनेक ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से तमाम श्वास रोग और जानलेवा गैर संक्रामक रोग होने का खतरा बढ़ता है या उनके बिगड़ने का खतरा बढ़ता है. तम्बाकू सेवन, तम्बाकू धुएं में सांस लेना, घर के भीतर लकड़ी आदि के चूल्हे के धुएं में सांस लेना, वायु प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण आदि. अनेक कैंसर, हृदय रोग, और श्वास सम्बन्धी रोग का खतरा अनावश्यक बढ़ रहा है. इन रोगों का दर कैसे कम होगा यदि हम इन खतरों को कम नहीं करेंगे? मोटापा, कुपोषण, आदि से भी अस्थमा बिगड़ सकता है.
डॉ गाए मार्क्स ने चेताया कि अस्थमा के प्रभंधन-इलाज आदि में जो पिछले दशकों में प्रगति हुई है वह पुरानी दवा को नए तरीके से बेहतर इस्तेमाल करने की ओर हुई है – पर नयी दवा या जांच नहीं आई है. जिन देशों में अमीर-गरीब के लिए स्वास्थ्य व्यवस्था सशक्त और समान थी, कोविड नियंत्रण वहां बेहतर रहा है. हमें यह समझना ज़रूरी है कि हमारी स्वास्थ्य सुरक्षा सब की स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा पर निर्भर है.
शोभा शुक्ला – सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस)
(लखनऊ के प्रतिष्ठित लोरेटो कान्वेंट कॉलेज की पूर्व वरिष्ठ शिक्षिका शोभा शुक्ला, सीएनएस (सिटिज़न न्यूज़ सर्विस) की संस्थापिका-संपादिका हैं और आशा परिवार से भी जुड़ी रही हैं. ट्विटर पर उन्हें पढ़ें @shobha1shukla)
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Szpiegowskie Telefonu
February 9, 2024 at 1:38 pm
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