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इस मस्जिद का प्रसाद लिए बिना अधूरा है सबरीमाला मंदीर का तीर्थ

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SD24 News Network Network : Box of Knowledge
बरीमला विवाद कम होने का नाम नहीं ले रहा और अब ये धार्मिक राजनीति का रूप ले चुका है. सबरीमला की तीर्थ यात्रा करने वाले यात्री नहीं चाहते कि उसकी परंपरा को तोड़ा जाए, इसी यात्रा की एक और परंपरा है जहां हिंदू यात्री भी वावर मस्जिद की परिक्रमा के बिना सबरीमला नहीं जाते.
सबरीमला विवाद इतना गहराता जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर कर उन महिलाओं से भी बदतमीजी कर रहे हैं जो मंदिर के अंदर जाने की कोशिश कर रही हैं. इसके साथ ही सबरीमला में महिलाओं का प्रवेश न हो उसके लिए कुछ लोगों ने आत्महत्या तक करने की कोशिश की है. सबरीमला का मामला लोगों की आस्था से जुड़ा है और ये तो साफ है कि जहां भी आस्था की बात आती है वहां पर किसी भी तरह के कायदे कानून या ऑर्डर को नहीं देखा जाता है. सबरीमला मंदिर जिसकी बात हो रही है वो आस्था के लिए जाना जाता है. वहां महिलाएं कभी प्रवेश नहीं करतीं, वहां जाने के लिए लोगों को कड़े नियम पालन करने पड़ते हैं. सबरीमला तीर्थ यात्रा के कई नियमों में से एक है वहां की वावर मस्जिद की परिक्रमा करना और वहां से प्रसाद लेकर आगे बढ़ना.
वो मस्जिद जहां सबरीमला जाने से पहले हिंदू यात्री पूजा करते हैं.
जिन लोगों ने इसके बारे में पहले सुना होगा वो जानते होंगे कि वावर मस्जिद के क्या मायने हैं और जिन्होंने नहीं सुना उनको मैं बता दूं कि ये मस्जिद असल में तीर्थ यात्रा का अभिन्न अंग है और यहां भगवान अइयप्पा के उस भक्त को पूजा जाता है जो मुसलमान होते हुए भी अय्यप्पा पर आस्था रखता था और उसकी भक्ति इतनी मश्हूर थी कि भगवान के मंदिर से पहले वावरस्वामी का मस्जिद बनाया गया. इस मस्जिद में हिंदू भक्त परिक्रमा भी करते हैं और साथ ही साथ नमाज भी चल रही होती है. तीर्थ यात्रा में विशेष तौर पर हाथी का जुलूस सजाया जाता है और इसे पहले मस्जिद ले जाते हैं फिर ये पास के मंदिरों में जाता है.
सबरीमला में जाने से पहले हाथी का जुलूस निकाला जाता है
वावर या वावरास्वामी जी का अय्यप्पा भगवान में विश्वास केरल में सौहाद्र के रूप में भी देखा जाता है. मस्जिद की परिक्रमा लगाने की परंपरा 500 साल से भी ज्यादा पुरानी है. मस्जिद कमेटी हर साल सबरीमला मंदिर से अपने रिश्ते का उत्सव मनाती है, इस उत्सव को चंदनकुकुड़म (चंदन-कुमकुम) कहा जाता है.
क्या है मस्जिद की परिक्रमा लगाने की मान्यता?
इस मस्जिद से जुड़ी कई मान्यताए हैं और कई कहानियां कही जाती हैं. एक लोककथा कहती है कि अय्यप्पा पंथालम के राजकुमार थे. ये पथानामथिट्टा जिले में स्थित एक छोटा सा राज्य था. वह महल जहां अयप्पा बड़े हुए वह आज भी है और वहां भी लोग जा सकते हैं. कहा जाता है कि वावर (ये बाबर का मल्यालम शब्द है) युद्ध में हार गए थे और अय्यप्पा के भक्त हो गए थे. बाबर मतलब मुगल बादशाह नहीं, बल्कि ये तो उसी इलाके का रहने वाला बाबर था जिससे अय्यप्पा की दोस्ती थी. कुछ ये भी कहते हैं कि बाबर असल में उस इलाके का नहीं था और अरब देश से आया था और उस समय अय्यप्पा से युद्ध हारा था. हालांकि, वावर मस्जिद में एक तलवार है जिसकी पूजा की जाती है तो ये कहा जाता है कि वावर योद्धा रहा होगा.
एक मान्यता ये भी है कि वावर असल में एक सूफी संत था और वो अरब से भारत आया था ताकि इस्लाम को बढ़ावा दे सके. पर अय्यप्पा से मिलने के बाद उसे बदलाव का अहसास हुआ. वो उनका मित्र बन गया. साथ ही पहाड़ी इलाकों में युद्ध के दौरान भी वावर ने अय्यप्पा की सहायता की.
वावरस्वामी मुसलमान थे और मुसलमान ही रहे, लेकिन उनकी भक्ति अय्यप्पा के लिए कम नहीं हुई और इसलिए उनका मस्जिद बनाया गया और पिछले 500 सालों से उसकी परिक्रमा के बिना सबरीमला के तीर्थ को असफल ही माना जाता है. सबरीमला की परिक्रमा और पूरी यात्रा का भी विधान कुछ अलग है.
मस्जिद के आगे कुछ ही दूर पर सबरीमला मंदिर है
यहां गरीब हो या अमीर, बूढ़ा हो या जवाब एक ही तरह के कपड़े पहन कर आता है. काली धोती में ही पूजा होती है. ये पूरे साल खुला भी नहीं होता. इसके अलावा, एक झोला लेकर ही चलना होता है. बैग भी नहीं चलेगा. यात्रियों को ब्रह्मचर्य का पालन करना होगा और पैदल कई दिनों की यात्रा करनी होगी. यात्रा कठिन होती है, लेकिन फिर भी हर साल लाखों श्रद्धालु ये यात्रा करते हैं.
वावरस्वामी के बारे में ये भी कहा जाता है कि वो सबरीमला आने वाले श्रद्धालुओं की रक्षा करते हैं और 40 किलोमीटर के कड़े रास्ते पर जंगलों के बीच भी यात्रियों के साथ रहते हैं. हिंदू यात्रियों की मंदिर तक और मुस्लिम यात्रियों की मस्जिद पहुंचने तक रखवाली करते हैं.
क्यों मंदिर के अंदर नहीं जाती महिलाएं?
सारा विवाद इस बात पर है कि आखिर महिलाएं मंदिर में क्यों नहीं जातीं. ये इसलिए नहीं कि महिलाओं को पीरियड्स होते हैं. हालांकि, ये भी एक कारण माना जाता है कि 10 से 50 साल की महिलाएं इस मंदिर में दर्शन करने नहीं जा सकतीं, लेकिन असल में मान्यता है कि महिलाओं को मंदिर जाने से मना करने वाले कोई और नहीं बल्कि खुद भगवान अय्यप्पा थे. लोककथा के अनुसार देवी मलिकापुर्थाम्मा को अय्यप्पा से प्रेम था और वो उनसे शादी करना चाहती थीं. पर भगवान अय्यप्पा ने मना कर दिया क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उनकी शादी हो ताकि वो भक्तों की बातें बिना किसी रुकावट के सुन सकें.
पर अय्यप्पा ने मलिकापुर्थाम्मा से कहा कि वो तब शादी कर सकेंगे जब पहली बार सबरीमला आने वाले श्रद्धालु नहीं होंगे. यानी नए यात्री सबरीमला की यात्रा करने नहीं आएंगे. तब तक वो किसी जवान स्त्री का चेहरा भी नहीं देखेंगे और यही कारण है कि अय्यप्पा के मंदिर में महिलाओं का जाना मना है. कहा जाता है कि ये मान्यताएं सदियों से चली आ रही हैं.
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