रूखी रोटी को भी बांट कर खाते हुए देखा मैंने, सड़क किनारे वो भिखारी शहंशाह निकला…। इंसान की जिंदगी अंधे भिखारी का कटोरा हो गई है। लोग खुशियां डालते कम, उठाते ज्यादा हैं। इधर, यह दिव्यांग भिखारी है, जिसके कटोरे में औरों के लिए खुशियां जुटती हैं। पंजाब के पठानकोट में चौक-चौराहे पर भीख मांगता राजू चलने-फिरने में असमर्थ है। मैले कपड़े। धूल से लथपथ। कभी रेंगते हुए तो कभी व्हीलचेयर पर। भीख मांगना उसकी नियति ही सही, पर नीयत दाता वाली है। सोच बड़ी। बड़ा जज्बा। इतना कि दुनिया छोटी दिखे, उसके आगे भिखारी नजर आए। आंखों में जितनी दृढ़ता, चेहरे पर उतनी ही गंभीरता। मानो भीख नहीं, थोड़ी सी इंसानियत मांग रहा हो।
शहर में अधिकांश लोग उसे जानते हैं। जो नहीं जानते, उसे देख जानने को आतुर हो उठते हैं। राजू का अंदाज ही कुछ ऐसा है। लोगों को जब उसके नेक कामों के बारे में पता चलता है तो भीख देने के लिए बढ़े हाथ सलाम को उठ जाते हैं। भीख के पैसे जोड़ वह लोगों की मदद करता है। औरों की मदद को हर समय तत्पर रहता है। समाजसेवा के कई काम करता है।
राजू कहता है, अब कोई घायल नहीं होगा…। स्वार्थ के गंदे नाले पर बनी नेकी की यह पुलिया बड़ी नसीहत है। नसीहत उन लोगों के लिए जो नियति से भिखारी न सही, पर नीयत के पक्के भिखारी हैं। नसीहत उस समाज के लिए जो खुद को सभ्य कहता है, पर है नहीं, अपने में मस्त है, व्यस्त है, स्वार्थी है। नसीहत उस प्रशासन के लिए जो जनसेवक है, पर दिव्यांग राजू से भी अधिक लाचार है। बहरहाल, शहर के लोगों को जब पता चला कि पुलिया राजू ने बनवाई, तो सभी ने राजू को सलाम कर अपना दायित्व पूरा किया।
राजू बचपन से दिव्यांग है। माता-पिता की बचपन में ही मौत हो गई थी। तीन भाई और तीन बहनें हैं। पर दिव्यांग होने की वजह से उन्होंने 30 साल पहले राजू को बेसहारा छोड़ दिया। सड़क पर भीख मांगने के अलावा जीने को कोई जरिया न था। नियति को स्वीकर कर भीख मांगना शुरू कर दिया। भाई-बहन फिर उससे कभी नहीं मिले। अपनों की बेरुखी और तिरस्कार से राजू बहुत आहत था। सड़क पर भीख मांगता हर बच्चा, हर भिखारी उसे अपना लगता। उनकी मजबूरी और दर्द को वह अपना समझता। जज्बातों के ढेर तले ढांढस ढूढते बचपन बीत गया। भीख में जो मिलता, उससे पेट पल जाए बस इतना ही उसे चाहिए था। जो बचता, वह जरूरतमंदों के हवाले कर देता।
भीख मांगकर दूसरों की मदद को जीवन का ध्येय बना लिया। राजू अब कई बेसहारों का सहारा बना हुआ है। जिन्हें यह पता है, वे राजू को अधिक पैसे देते हैं, दान के रूप में सहयोग भी करते हैं। इन पैसों से राजू जरूरतमंद परिवारों की हरसंभव सहायता करता है। महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर साल कुछ सिलाई मशीनें उपलब्ध कराता है। कुछ बच्चों की फीस का खर्च उठाता है। कॉपी-किताब के लिए मदद करता है। कहता है, ये सब मेरे अपने हैं। इनकी मदद कर मन को शांति मिलती है…।
कोई अपनी खुशी से नहीं मांगता भीख…
बताते चलें कि अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सड़कों पर भीख मांगने वाले लोग खुशी से यह काम नहीं करते हैं, बल्कि यह उनके लिए अपनी जरूरतें पूरी करने का अंतिम उपाय है। जीवन के अधिकार के तहत सभी नागरिकों के जीवन की न्यूनतम जरूरतें पूरी करना सरकार की जिम्मेदारी है। जिसमें वह नाकाम है तो इसकी सजा किसी मजबूर इंसान को नहीं दी जा सकती है।
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