Delhi violence : वरिष्ठ पत्रकार Ajit Sahi ने कही बड़ी बात, हर किसीको पढनी चाहिए

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अंग्रेजी सरकार के चमचे भी मुसलमानों को गद्दार ही कहते थे
आज़ादी से पहले जब भारत पर अंग्रेज़ी हुकूमत थी तो राजसत्ता का पूरा निज़ाम अंग्रेज़ों के नियंत्रण में था. प्रशासन, पुलिस, सेना और यहाँ तक कि अदालत भी सरकार के बताए रास्ते पर चलती थी. आपको खोजने पर ऐसा वाक़या नहीं मिलेगा कि अंग्रेज़ी सरकार के विरोधियों को अदालत ने रिहा किया हो या सरकार को फटकार लगाई हो. बल्कि पुलिस और जज तो बढ़चढ़ कर आज़ादी माँगने वालों को जेल भेजने के लिए तैयार रहते थे. पुलिस कितना भी अत्याचार कर लेती थी और अदालत चूँ नहीं करती थी. सरकारी न होते हुए भी देश का प्राइवेट मीडिया भी पूरा सरकारी ही था. जो मीडिया सरकार के ख़िलाफ़ लिखता था उसे अंग्रेज़ी सरकार बंद कर देती थी और ज़्यादा ऐंठने पर उसके मालिक और संपादक को जेल भी भेज देती थी.

सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि अंग्रेज़ी हुकूमत के वक़्त भारत में गोरे बहुत ही कम होते थे. प्रशासन, पुलिस, सेना और अदालत में नब्बे फ़ीसदी भारतीय ही होते थे. इनमें मुसलमान बहुत कम होते थे, क्योंकि 1857 की ग़दर में मुसलमानों की प्रखर भूमिका के बाद गोरों ने मुसलमानों पर यक़ीन करना बिलकुल बंद कर दिया था. मुट्ठी भर गोरों को छोड़ दिया जाए तो उनके प्रशासन, पुलिस, सेना और अदालत में हिंदू ही भरे थे, वो भी ऊँची जाति के हिंदू. ज़ाहिर सी बात है ये हिंदू पूरी तरह अंग्रेज़ों के चमचे थे और अंतिम समय तक उनकी चापलूसी करते रहे थे. ऐसे हिंदू अपने नाम के आगे रायबहादुर और ‘सर’ लगवाने के चक्कर में ही पड़े रहते थे. चमचागिरी का यही हाल सरकार की पिट्ठू मीडिया का भी था जिसमें टाइम्स ऑफ़ इंडिया और पायनियर जैसे अख़बार प्रमुख थे.

पूरा मुल्क अंग्रेज़ सरकार की ऐसी गिरफ़्त में था कि वो जो चाहे काला क़ानून बनाती थी और आम जनता पर मनमाना अत्याचार करती थी. पूरा निज़ाम ख़ुशी ख़ुशी उसका साथ देता था. इधर सरकार करोड़ों लोगों को जानवर से बदतर जीवन जीने पर मजबूर करती थी और उधर अख़बार ऐसा लिखते थे कि मानो भारत स्वर्ग बन गया है. अगर अवाम अपने अधिकारों के लिए आंदोलन करता था तो सरकार और मीडिया उलटा आंदोलनकारियों को देशद्रोही क़रार दे देते थे और जज ऐसे आंदोलनकारियों को फटाफट जेल भेज देते थे. आम जनता को दिन रात यही बताया जाता था कि आंदोलनकारी हिंसक भीड़ है जो देश बरबाद करने पर उतारू है. जब कोई अंग्रेजों के पैर छूकर माफ़ी माँग लेता था, जैसे सावरकर, तो अंग्रेज़ उसके गले में पट्टा डाल कर उसे अपना पालतू बना लेते थे.

लेकिन जैसा कि हम जानते हैं, सैंकड़ों साल करोड़ों लोगों पर अत्याचार करने के बावजूद, पुलिस-प्रशासन-जज-मीडिया के पूरे सहयोग के बावजूद, सख़्त से सख़्त क़ानून बनाने के बावजूद, थर्ड डिग्री अत्याचार करने के बावजूद, आज़ादी माँगने वालों को देशद्रोही क़रार दे कर जेल भेज देने के बावजूद, हज़ारों हज़ार स्वाभिमानी देशभक्तों की क़ुर्बानी रंग लाई और अंग्रेज़ हार गए. गाँधी के करोड़ों चेलों ने भारत को आज़ाद करा लिया. ये शक्ति है सत्य के आग्रह में.
कभी मत भूलियेगा कि आततायी कैसा भी क्रूर हो, अंत में उसकी हार ही होती है. आरएसएस का व्यापार ही झूठ का है. झूठ की बुनियाद पुख़्ता हो ही नहीं सकती.
जल्द ही भारत फिर आज़ाद होगा. आप डटे रहिए.


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