SD24 News Network
चलिए थोड़ा दिमाग़ लगाते हैं. भक्तों, आप भी कोशिश कीजिए. ये कहने से काम नहीं चलेगा कि “मोदीजी ने किया है तो ठीक ही किया होगा.” इस लाइन को पकड़े पकड़े आपने देश की अर्थव्यवस्था डुबो दी. तो बताइए —
चार दिन पहले मोदीजी ने एक दिन के जनता कर्फ़्यू की अपील की. उसी समय क्यों नहीं इक्कीस दिन के बंद का ऐलान कर दिया? संडे और परसों के बीच ऐसा क्या हो गया जिसके आधार पर इक्कीस दिन वाला फ़ैसला लिया? क्या मोदी सरकार देश को ये बताएगी कि उन बहत्तर घंटों में उसके सामने क्या नई जानकारी आई जो ये फ़ैसला लिया?
क्या जनता कर्फ़्यू के समय ही सरकार ये तय कर चुकी थी कि इक्कीस दिन का बंद बाद में अनाउंस करेगी? यदि हाँ, तो ये सोच क्या मोदीजी के दिमाग़ में थी या किसी दस्तावेज़ में दर्ज की गई? क्या सरकार ये दस्तावेज़ पब्लिक करेगी कि किस आधार पर एक दिन के जनता कर्फ़्यू का फ़ैसला लिया और किस आधार पर इक्कीस दिन का फ़ैसला लिया और दोनों को अलग अलग क्यों अनाउंस किया? या क्या सच ये है कि दोनों फ़ैसले मोदीजी के दिमाग़ की एड हॉक उपज हैं? क्या इक्कीस दिन के बंद का फ़ैसला मोदीजी का है या इसके लिए भारत की हेल्थ मिनिस्ट्री ने वैज्ञानिक कारणों से रेकमेंडशन किया?
कोरोनावायरस के संक्रमण के ख़तरे को लेकर मोदी सरकार की पिछले छह से आठ हफ़्तों के दौरान क्या कार्रवाई रही? क्या सरकार जनता को बताने को तैयार है? यदि नहीं तो क्यों नहीं?
क्या हेल्थ मिनिस्ट्री कोरोना के बारे में मोदी को डेली जानकारी दे रही थी? क्या हेल्थ मिनिस्ट्री की ओर से डेली या वीकली रिपोर्ट जारी की जा रही थी? यदि हाँ, तो उन रिपोर्टों पर वक्त रहते क्या फ़ैसले लिए गए? क्या सरकार हेल्थ मिनिस्ट्री की उन रिपोर्टों को पब्लिक करेगी? क्या हेल्थ मिनिस्ट्री में कोई टास्क फ़ोर्स बनाई गई कभी? कब? उसकी बैठकों का ब्योरा कहाँ है?
क्या मोदी सरकार ने देश के अस्पतालों का आँकलन किया है कि वो कोरोनावायरस की बीमारी से लड़ने के लिए कितना तैयार हैं? यदि हाँ तो ये कब किया है? कहाँ है वो सूची? उस आँकलन के अनुसार क्या कार्यवाही की जा रही है? क्या विभिन्न अस्पतालों को रसद पहुँचाने का कोई फ़ैसला लिया है? क्या मोदी सरकार ने देश के अस्पतालों के प्रबंधकों से मीटिंगें की हैं? उसका ब्योरा कहां है?
क्या मोदीजी ने विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों से फ़ोन पर बात करके ये जानने की कोशिश की है कि राज्यों में तैयारी कैसी है? क्या देश के लीडर को ये काम नहीं करना चाहिए?
अभी इतने ही सवाल. भक्ति से हट कर जवाब देनें की कोशिश करें.
(-वरिष्ठ पत्रकार तथा सामाईक कार्यकर्ता अजित साही)