भारत की स्त्रियो को भ्रमित करने और गुलाम बनाने में साहित्य, सिनेमा का बड़ा योगदान

साहित्य, सिनेमा का भारत की स्त्रियो को भ्रमित करने और गुलाम बनाने में बड़ा योगदान
SD24 News Network
इसी तरह का साहित्य और सिनेमा है जो भारत की स्त्रियो को अचूक तरीक़े से भ्रमित करने और गुलाम बनाने में बहुत काम आया है.
जिन्हें नहीं समझ आता हो कि पुरुष लेखकों और निर्देशकों और अन्य कलाकारों द्वारा स्त्रियो के representation के क्या ख़तरे और नुकसान हैं, वे ज़रा इस महा-सफ़ल फिल्म के क्लिप को देख लें. दोनों के अस्तित्व का केंद्र देव बाबू हैं और दोनों को ही देव बाबू के अलावा और कोई चिंता और काम नहीं है. दोनों को उदात्त बनाने के लिए बस एक देव बाबू ही बचे हैं जो ख़ुद बेख़ुद और लापता हैं. देव बाबू को कैसा होना चाहिए-इसका कोई डिस्कशन नहीं है लेकिन ब्याहता प्रेमिका और कोठेवाली को देव बाबू के प्रेम में कैसे देवी-स्वरूपा होना चाहिए–उसके लिए पूरा मैन्युअल है इस फिल्म में.


पुरुषों द्वारा रची गयी ऐसी स्त्री-कल्पना की वजह से ही स्त्रियो को पीड़ा और दुःख बहुत अच्छा लगता है और यातना बहुत सुख देती है. सोच कर देखिए अगर स्त्री-वेदना को ही स्त्री-चरित्र बनाने वाला ऐसा supporting साहित्य और कला न होती तो भारत की स्त्रियाँ मानसिक रूप से ऐसी गुलाम नहीं होतीं.
इसलिए साहित्य और कला की representations से बहुत फ़र्क पड़ता है. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि आपको ऐसी फिल्में नहीं मिलेंगी जिसमें देव बाबू की जगह कोई देव बीबी हो और दो पुरुष इस तरह उसके प्रेम का सगर्व जलसा कर रहे हों.


अक्सर पुरुषों द्वारा रचा गया साहित्य या कला स्त्री में दर्द inducement करता है ताकि वे पुरुष के अन्याय और अनाचार को भी शुभ मानते हुए उससे अपनी आत्मा उदात्त करती रहे.
संजय लीला भंसाली ऐसा भारतीय निर्देशक है जो स्त्री-उत्पीड़न को और ज्यादा मोहक बनाना चाहता है, उसे इतने सुंदर कपड़ो गहनों में परोसना चाहता है कि स्त्री खुद कहे कि मुझे यातना दो, बराबरी में क्या रखा है. और यह निकाल निकाल कर ऐसे प्रसंग लाता है कि स्त्रियाँ कहीं उत्पीड़न के रोमांच को भूल नहीं जाएं. स्त्री-अस्मिता के ऐसे प्रसंग स्त्री को उसकी आज़ादी के लिए radicalise नहीं करते बल्कि उसकी चेतना में अवरोध ही करते हैं.
शरम यह आ रही कि ऐसी फिल्म मुझे तब भी कैसे पसंद आ गई!
Monika kumar


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *