Dr कफील पर रासुका लगाना ये कानून का दुरुपयोग है

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Dr कफील पर रासुका लगाना ये कानून का दुरुपयोग है , सर्वथा अनुचित और विधि विरुद्ध है
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में डॉक्टर कफील ने CAA /NRC के संदर्भ में भाषण दिया था। इसी को आधार बना कर राज्य सरकार ने उनको राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के प्रावधानों के अंतर्गत निरूद्ध करके जेल में डाल दिया ।




क्या ये कानून का दुरुपयोग है ?
1. इस सवाल के समर्थन में पहली बात तो ये है कि डॉक्टर कफील को अलीगढ़ कोर्ट से ज़मानत मिल चुकी थी। कोई अन्य केस उनके विरूद्ध नहीं था। रमेश यादव बनाम डीएम एटा के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि जब किसी व्यक्ति को ज़मानत मिल जाए तो सरकार को चाहिए कि वह उस ज़मानत आदेश के विरूद्ध अगली ऊंची अदालत में अपील दाखिल करे और उसको रद्द करवाए , और इसके बजाए उस व्यक्ति को NSA कानून के अंतर्गत निरूद्ध करना सर्वथा अनुचित और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग और उस निरूद्ध किए गए व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है। इस फैसले की रोशनी में राज्य सरकार का डॉक्टर कफील को रासुका के तहत निरूद्ध करना विधि विरूद्ध है।
2. दूसरा महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु यह है कि क्या डॉक्टर कफील से लोकव्यवस्था के छिन्न भिन्न होने का कोई ऐसा खतरा था जिसके लिए उनको रासुका में निरूद्ध करना आवश्यक हो गया था ?




ऐसा कोई सबूत और तथ्य नहीं है। “कानून व्यवस्था” और “लोक व्यवस्था” दो अलग अलग स्थितियां होती हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के मुताबिक सिर्फ “लोक व्यवस्था” छिन्न भिन्न होने पर ही रासुका लगाया जा सकता है, “कानून व्यवस्था ” खराब होने की स्थिति में नहीं लगाया जा सकता। इस मामले में न तो ये आरोपित है कि डॉक्टर कफील के भाषण से किसी “कानून व्यवस्था” को लेकर कोई बुरी स्थिति बनी और न ही लोक व्यवस्था के ही छिन्न भिन्न होने की कोई घटना हुई।




इसलिए डॉक्टर कफील के विरूद्ध रासुका लगाने का फैसला विधि विरूद्ध है और आशा है कि हाई कोर्ट से फैसला डॉक्टर कफील के पक्ष में आएगा। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिन में यूपी सरकार ने ज़मानत होने के बाद रासुका लगाई है। क्या ये लोकतंत्र के लिए स्वस्थ स्थिति है ? आशा है डॉक्टर कफील को हाई कोर्ट से इंसाफ मिलेगा और रासुका बोर्ड /राज्य सरकार का फैसला निरस्त होगा।
– अधिवक्ता असद हयात




डॉ. कफील पर रासुका लगाने की कड़ी निंदा की
लखनऊ, 14 फरवरी। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की राज्य इकाई ने अलीगढ़ में गत दिसंबर में एएमयू के छात्रों द्वारा बुलाई सभा में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ बोलने के कारण गिरफ्तार कर मथुरा जेल में रखे गए डॉ. कफील (गोरखपुर) पर प्रदेश सरकार द्वारा शुक्रवार को ऐन रिहाई के मौके पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) लगा देने की कड़ी निंदा की है।




पार्टी राज्य सचिव सुधाकर यादव ने आज जारी बयान में कहा कि योगी सरकार में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा जा रहा है। सीएए का महज बोलकर विरोध करने के लिए डॉ. कफील को पहले एसटीएफ लगाकर पकड़ा गया और जब कोर्ट से उनकी रिहाई मंजूर हो गयी, तो उसे रोकने के लिए रासुका लगा दिया गया। यह रासुका जैसे कठोर (काले) कानून का दुरुपयोग है और डॉ. कफील के खिलाफ ज्यादती है। यह योगी सरकार की दमनकारी और नफरत की राजनीति का परिचायक है। यदि इस कानून का ऐसे लोगों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाना है, जो सरकार से असहमत हैं, तो कानून की किताब से रासुका को हटा देना चाहिए।




माले नेता ने डॉ. कफील पर तामील रासुका को वापस लेने और उन्हें रिहा करने की मांग करते हुए कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय को योगी सरकार की इस दुर्भावनापूर्ण और गैर-जरूरी कार्रवाई पर स्वतः संज्ञान लेना चाहिए।


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