-Devendra Bhale
मुस्लिम कौम “साहेब” के लिये वो “चारा” है। जिस की चूड़ी टाईट करने के चक्कर में “साहेब” ने हिन्दू, सिक्ख, ईसाई सब की चूड़ी टाइट कर दी हैं। मछली फंसाने के लिए कांटे में चारा लगाया जाता है, वैसे ही सत्ता की मछली को पकड़ने के लिए साहेब चुनावरुपी कांटे मे “इस्लामोफोबिया” का चारा लगाते हैं। “इस्लामोफोबिया” है ही ऐसा दमदार मंत्र जो एक जाहिल को राजा और प्रबुद्ध प्रजा को जाहिल बना दे।
मुसलमान रुपी चारे की बदौलत ही तो हिन्दू, सिख, इसाई, अर्थव्यवस्था, संविधान, कानून आदि को समाप्त किया जा रहा है।ये जो फैज़ल, अखलाक, आसिफ, पहलु खान “मॉब लींचिंग” के शिकार हुए। यह सब बीजेपी का चारा ही तो थे, जिनकी हत्या ने इन को राजनैतिक लाभ पहुंचाया और पहुंचाएंगे।
जब भी यह सरकार बुनियादी मुद्दों पर नाकाम होती है मुस्लिम की लीन्चिंग, मुस्लिम का एनकाउंटर और दंगा करवा कर अपनी नाकामी छुपाने की भरपूर कोशिश करती है। यह मौजूदा दौर में हमारे देश भारत की कड़वी सच्चाई है। आप ही बताए उत्तर प्रदेश में हजारों लोग सब्जी बेच रहे है। मगर यूपी पुलिस की पुलिसिया कार्यवाही में इत्तेफाक से फैसल ही क्यों मारा जाता है ?
अपनी नाकामी को छुपाने के लिये एक सब्जी विक्रेता फैसल की इतनी पिटाई करना कि वो मर जाये कहाँ तक ज़ायज है ? कोई मुआवजा नही, कोई सांत्वना नही ? यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में होना तय है, एक सब्जी बेचने वाले फैसल को जान से मार देना, क्या है संयोग या प्रयोग ? अभी तो साहेब की राजगद्दी बचाने के लिए संयोग के नाम पर बहुत से प्रयोग होने बाकी है। देखना है अब प्रयोग करते-2 देश बचता है या साहेब की राजगद्दी?
कभी-2 मौज़ूदा हालातों को देख कर जब निराशा हावी होती है तो सोचता हूँ आज जो लोग “साहेब” को चिढ़ा रहे है “नफरत” का अफीम खाते ही सब वाह-2 करने लगेंगे। जो लोग “नोटबन्दी” की त्रासदी झेलने के बाद भी नही सुधरे क्या वो “कोरोना त्रासदी” झेल कर सुधर जाएंगे ?
दूसरे ही पल यह देख कर उम्मीद जागती है कि इस देश का बरसों से बुना ताना-बाना इतना मजबूत है की इन लोगों के प्रयास को इतनी भी सफलता नहीं मिली है। थोड़ी क्षती जरुर पहूँची है पर जैसे ही इन “निठ्ठल्लों” की पोल खुल जाएगी अंधभक्त भी समझ जाएँगे कि एक “गधे” को “शेर” बनाना काफी महंगा पड गया। वैसे भी मुस्लिम कौम से नफरत करने के चक्कर में सब को चक्कर आ रहा है मगर अपनी तकलीफ अपना दर्द कोई नही बता रहा है ? बाकी देश का क्या होगा ? वो तो वक्त ही बताएगा।
लाशें गवाही दें रही हैं, ज़िम्मेदार हो तुम।
तड़प तड़प के मर गये, कसूरवार हो तुम।।
आंसूजीवी, फरेबी, ज़ालिम क्या कहूँ तुम्हें ?
कातिल हो, गुनहगार हो, बड़े गद्दार हो तुम।।
#फैज़ल_को_इंसाफ_दो
Niektóre prywatne pliki zdjęć, które usuniesz z telefonu, nawet jeśli zostaną trwale usunięte, mogą zostać odzyskane przez inne osoby.
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