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– फ्रेंच रिपोर्ट में सनसनीखेज दावा : Rafale डील में करोडों की दलाली भी ।।
– फ्रेंच रिपोर्ट में सनसनीखेज दावा : Rafale डील में करोडों की दलाली भी ।।
फ्रांस की मीडिया ने दावा किया है कि राफेल डील में एक भारतीय दलाल को 11 लाख यूरो (करीब 9.48 करोड़ रुपए) की दलाली दी गई. फ्रांस की एंटी करप्शन एजेंसी ने अपने आडिट में पाया है कि कुछ बोगस पेमेंट किए गए जिनका कोई स्पष्टीकरण मौजूद नहीं है. आडिट में पाया गया कि ये पेमेंट गिफ्ट के तौर पर दर्ज हैं. जाहिर है कि ये गिफ्ट/दलाली/घूस/प्रसाद आदि जो भी दिया गया, वह सरकार में बैठे किसी आका को ही दिया गया होगा.
राफेल सौदे में दलाली किसने खाई? क्या सरकार को इस बारे में नहीं पता है? अगर नहीं तो दलाली खाई किसने? क्या दो सरकारों के बीच हुए समझौते में मोदी सरकार ने दलाल की मदद ली? क्या राफेल सौदे की जांच इसीलिए नहीं कराई गई कि दलाली उजागर हो जाएगी?
राफेल सौदे को लेकर अनगिनत जायज सवाल थे. एचएएल से छीनकर अंबानी की बोगस कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट देने से लेकर मूल्यों और विमानों की संख्या तक. दर्जनों सवालों में से किसी का भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. कोर्ट ने पल्ला झाड़ लिया, ये कहकर कि हमारा अधिकार क्षेत्र नहीं है, संसदीय जांच हो सकती है. चुनाव हारने के बाद विपक्ष भी चुप मारकर बैठ गया.
सरकार की तरफ से अब तक जो बता रहे थे कि राफेल सौदे में भ्रष्टाचार के आरोप झूठे हैं, अब उनको ये भी प्रचार करना चाहिए कि फ्रांस वाले झूठे हैं और भारत के खिलाफ साजिश कर रहे हैं. भारत में अब तर्क की चरम परिणति यही है. बड़े बड़े नामी लोग सरकार की दलाली में ऐसे ही कुतर्क करते हैं.
आपको याद होगा कि भारत में राफेल सौदे के पहले प्रिवेंशन आफ करप्शन एक्ट को बदलकर कमजोर किया गया था. लोकपाल कानून को बदलकर लुंजपुंज बनाकर लागू किया गया. प्रशांत भूषण को इन सवालों को लगातार उठाते रहे लेकिन गोदी मीडिया कान में तेल डालकर सोया रहा. राफेल सौदे को लेकर जितने सवाल उठे थे, सब अपनी मौत मर गए थे. क्योंकि भारत में सरकार पर नकेल कसने वाली संस्थाओं को ‘पिंजड़े का तोता’ बना दिया गया.
क्या राफेल खरीद की प्रक्रिया में अनिवार्य प्रक्रियाओं और नियमों का उल्लंघन इसीलिए किया गया था ताकि भ्रष्टाचार की राह आसान हो सके? क्या देश की सुरक्षा के मामलों में कथित राष्ट्रवादी कुनबा दलालों के हाथ की कठपुतली है? क्या रक्षा मंत्रालय, संसदीय समितियों और अन्य एजेंसियों को दरकिनार करके जैसे प्रधानमंत्री ने ये सौदा अपने स्तर पर किया था, अब वैसे ही वे इस दलाली की जिम्मेदारी भी अपने सिर लेंगे?
सरकार ने अब तक इस सौदे को लेकर हर सवाल को नकारा है. भारत का गोदी मीडिया भी ऐसे हर मसले पर सरकार के साथ है. राफेल के धतकरमों का ज्यादातर खुलासा फ्रांस के मीडिया से ही हुआ या फिर प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने शोर मचाया था. सरकार और मीडिया दोनों ने इस तिकड़ी को नजरअंदाज करने की रणनीति अपनाई और वे कामयाब भी रहे.
सबसे अंतिम और अहम सवाल है कि क्या इस अहम रक्षा सौदे में हुए इस भ्रष्टाचार की निष्पक्ष जांच होगी? क्या इसमें किसी की जवाबदेही तय होगी? क्या कंपनी और दलाल दोनों पर कार्रवाई होगी?
सरकार में बैठे लोगों को शायद अब भी ये विश्वास है कि बड़े से बड़े भ्रष्टाचार को कथित राष्ट्रवाद की चादर से ढंक दो तो जनता सवाल नहीं करती.
-कृष्ण कांत (लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)
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