नागपुर के प्यारे खान, मुम्बई के शहनवाज़ शेख जैसे हज़ारों उर्दू नाम वाले हजारों हिंदुओं की उखड़ती सांसो को थाम कर रखा है। उन्हें नया जीवन दे रहे हैं। कोई एक मैसेज पर ऑक्सीजन सिलेंडर बाइक में लेकर मरीज़ के घर जा रहा है। अकील मंसूरी रोजा तोड़कर प्लाज़्मा डोनेट कर अलका और निर्मला की जान बचा रहे हैं।
कोई घर से अभी निकला है 1000 किमी दूर प्लाज़्मा डोनेट करने के लिए। कोई रात रातभर जाग हॉस्पिटल में बेड इंतजाम कर रहा है।भोपाल में सद्दाम और दानिश हिंदुओं के शवों का हिन्दू रीति से अंतिम संस्कार कर रहे हैं। सबके नाम उर्दू में है, सबका धर्म इस्लाम। हज़ारों मसीहा है, उर्दू नाम वाले। वह भी तब जब पिछले 7 सालों से बहुसंख्यक हिन्दू समुदाय के मौन सहमति से कट्टर तबका इनके ऊपर अत्याचार कर रहा है।
200 से अधिक मुसलमानों की लिंचिंग हुई। बात-बात पर उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह देते हैं। देशभक्ति का सबूत मांगते हैं।नागरिकता का कागज़ मांगते हैं। पर मुसलमान चुप रहते हैं। वह इसलिए चुप रहते हैं। क्योंकि उन्हें इस देश से प्यार है। इस देश के लोगों से प्यार हैं। उन्हें यह भी पता है जान न्यौछावर करने के बाद भी उनसे कागज़ मांगा जाएगा।
देशभक्ति का सबूत अब भी देना पड़ेगा। अब भी बीफ के नाम पर उनके अपनों की लिंचिंग होगी। लेकिन जब हिंदुओं की जान खतरे में हैं तो जो पहले उनकी जिंदगी बचाने आगे आया तो वो मुसलमान ही है। हम हिंदी नाम वाले उर्दू नाम वालों के सामने इंसानियत और मानवता निभाने में बहुत छोटे हैं!
– लेखक विक्रम सिंह चव्हाण एक स्वतंत्र पत्रकार है ।
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