SD24 News Network
संताल समाज में सिन्दूर का कोई महत्व नहीं है ! कैसे ??
आज भी आप सुदूर संताल गांव चले जाओ, शादी शुदा औरतों के माथे पर सिन्दूर नहीं मिलेगा ! ऐसा लगता है कि जैसे सिन्दूर लगाना उनके लिए वैसे ही है जैसे शौकिया लिपस्टिक लगाना ! सिन्दूर का महत्व होता तो उनके माथे पर हर वक्त सिन्दूर रहता ! खुद मैंने भी अपने बचपन में बुढ़ी औरतों से सिन्दूर लगाने वाली औरतों के लिए यही ताना सुना है ‘नुय बहुकुड़ी मां खटुवा मां बनूक् ताया आर सिंदूर मां दिनम गीय दारदाराव कोक्अ!’
संताल विवाह में सिन्दूर लगाते समय जो ‘हरि बोल ! सिन्दराधान’ बोला जाता है उससे भी यही समझ आता है कि विवाह में सिन्दूर लगाने का रिवाज बंगालियों से लिया गया है ! ‘हरि बोल’ शब्द बंगालियों का है ! ‘सिन्दराधान’ भी ‘ सिन्दुरदान ‘ का बिगड़ा हुआ रूप है ! ‘दउड़ा’ भी बंगालियों का ‘डलिया’ से प्रेरित लगता है !
देखा जाय तो संतालो में विवाह परम्परा रईस लोगों में ही प्रचलित था ! आज भी अधिकतर गरीब संताल बिना शादी के ही लड़की को ले आते हैं! और बच्चे हो जाने की बाद बच्चे का ‘निमदाक्मंडी’ और औपचारिक शादी गाँव वालों को क्षमता अनुसार खिलाकर पूरा हो जाता है !
सुनने में आ रहा है कि उडिसा के संताल अब ‘हरि बोल ‘ की जगह कुछ संताली शब्द इस्तेमाल करने लगे हैं! 20 साल बाद उनके बच्चे यही कहेंगे कि यही हमारी आदिम संस्कृति है ! फिर इस बात के लिए लोगों से लड़ते फिरेगे
मुझे भी यही कहा गया कि सिन्दूर लगा के रखो नहीं तो दिकु क्या कहेंगे!! मतलब सिन्दूर लगाने का प्रेशर इसलिए कि दिकु दोस्तों को बुरा न लगे जाये! क्योंकि उनकी नजर में शादी शुदा औरतों के लिए सिन्दूर बहुत जरूरी चीज थी !
– Rajni Murmu