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संपादकीय

ऐ लोगों यह डाकुओं और लुटेरों वाली आदतें अपने आप में से निकालो -NIKAH

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निकाह के नाम पर शादी तुम करो और दो तीन सौ बरातियों के खाने का ख़र्चा लडकी के माँ-बाप उठाएे यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ?
मेहर तुम देते नहीं, उधार रखकर माफ़ करवा कर हक़ मारना यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ?

शुरुआती सात महीने तक बीवी से पूरे खानदान की नौकरी करवा कर उसे खिदमत का नाम देकर जब डिलिवरी का वक़्त करीब अाए तो उसे फिर “मायके” छोड़ आना कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ?
ज़्यादातर डिलिवरी सिजेरियन अापरेशन से हो रही हैं, पैदा होने वाला बच्चा तुम्हारा और उसका ख़र्चा लड़की के माँ-बाप उठाएे यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ?
अरे लोगों यह डाकुओं और लुटेरों वाली आदतें अपने आप में से निकालो और सुधर जाओ, और क़ौम के हर तबक़े और हर मां बाप को चाहिए कि वह बारातियों को खाना खिलाने का रिवाज बंद करें और लड़के वालों को भी चाहिए कि वो लड़की के वालिदैन से बकवास फ़रमाइशें बंद करें !!

मेहर लड़की का हक़ है जिसे लड़की खुद तय करे या फिर वो बाप भाई में से जिसे जिम्मेदारी दे वो तय करे, जहां तक हो सके मेहर को गोल्ड सोने पर तय करें,
लड़के वालों को भी चाहिए कि वो भी कोशिश करें कि मेहर हाथों हाथ लड़की को दे दें,
मेहर पर सिर्फ ओर सिर्फ लड़की का हक़ होता है वो जो चाहे वो करे जिसे चाहे उसे दे !!
मेहर अदा करने के बाद मेहर की रकम पर लड़के का या लड़के के घर वालों का कोई हक नहीं !!
आइये हम अहद करें कि हम अपने बेगैरती के लिबास पर ग़ैरत की चादर डाल कर शादियों के नाम पर होने वाले तमाम फ़ुज़ूल के कामों को रोक कर निकाह को आसान और ज़िंदगी को ख़ुश गवार बनाएंगे और यह भी तय करें कि हमारी वजह से कोई लड़की किसी बाप पर बोझ न बने !!

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