मस्ज़िद ए अक़्सा को दोबारा आज़ाद कराना सुलेमानी के एजेंडा में था जिसके तहत लगातार वो इज़राइल सेना को टार्गेट कर रहे थे इसराइल के खिलाफ़ लड़ने वाले हमास को सपोर्ट भी कर रहे थे। सीधे तौर पर क़ासिम सुलेमानी इज़राइल और अमेरिका के दुश्मन थे और निशाने पर थे। जिसके वजह से अमेरिका ने उनपर हमला किया।
इराक़ की राजधानी बग़दाद के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अमरीका द्वारा किए गए आतंकी हमले में ईरान के टॉप कमांडर क़ासिम सुलेमानी को उनके आठ साथियों के साथ शहीद कर दिया। क़ासिम सुलेमानी ईरान के बहुचर्चित कुद्स फ़ोर्स के प्रमुख थे !
इस ख़बर को तमाम मीडिया जगत अमेरिकी हवाई हमला बताकर प्रसारित/प्रकाशित कर रहा है। पूरी दुनिया का मुसलमान मीडिया के इसी दोगले रवैय्या का शिकार होता आया है। मीडिया ने आतंकवाद शब्द सिर्फ ‘मुसलमानों’ के लिए नामांकित किया हुआ है।
अब अमेरिका से यह सवाल कौन करेगा कि युद्ध के मैदान के बाहर दुश्मन देश के कमाण्डर अथवा सैनिक की हत्या करना कौनसी युद्ध नीति है_???
कौन सवाल करेगा कि इसे अमेरिकी आतंकवाद क्यों न कहा जाए_???
जब एक आतंकी हमले को मीडिया द्वारा आतंकी हमला भी न कहा जा रहा हो तब ऐसी उम्मीद रखना अपने साथ धोखा करने से कम नही है।
आप पेरिस की विवादित मैग्ज़ीन शार्ली हेब्डो के दफ्तर पर हुआ हमला याद कीजिए, तब पूरी दुनिया में उस आतंकी हमले की न सिर्फ निंदा हुई, न सिर्फ मोमबत्ती जुलूस निकाले गए बल्कि इसे बेशर्मी के साथ इस्लामिक आतंकवाद बताकर प्रचारित/प्रसारित और प्रकाशित किया गया।